सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

सुर-५४ : "अधूरी तमन्ना की हाला...'मधुबाला' !!!"

बुत
नहीं थी वो
जीती-जागती
धड़कती जलती
भभकती शमां थी वो
जी हाँ, ‘मधुबालाथी वो
और...
दिल की बीमारी से ही बुझ गई लौ॥   

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मित्रों...,

वैसे तो कोई भी न तो मुगल-ए आज़मफिल्म न ही उसकी अनारकलीहिंदी सिने जगत की जीती-जागती सौंदर्य मूर्ति वीनस कहलाने वाली मधुबालाको ही भूला होगा तो फिर उसी चलचित्र में उसके प्रवेश का दृश्य जिससे वो किरदार पर्दे पर अवतरित होता हैं उसे भी नहीं भूल सकता कि किस तरह उस दृश्य में सलीमके आने की ख़ुशी में राज दरबार में यह ऐलान किया जाता हैं कि एक ऐसी मूरत बनाई जाये जिसे देखकर सलीमखुश हो जाये । तब उस राज दरबार का एक समर्पित और जुनूनी मूर्तिकार अपनी मूर्ति बनाने के पहले यह दावा करता हैं  कि-- मै एक ऐसा मुजस्मा (मूर्ति) बनाऊंगा, जिसे देख शहंशाह अपना ताज़, सिपाही अपनी तलवार और इंसान अपना दिल उसके क़दमों में उठा कर रख देंगे। तब वो एक बुततराश की ज़िद पर ख़ुद को बुत में तब्दील कर उसकी जगह खड़ी हो जाती हैं यहाँ तक कि तीर चलाये जाने पर भी तनिक भी घबराती नहीं वैसे ही ख़ामोश पुतले की भांति खड़ी रह जाती हैं कहने को तो ये सिर्फ फिल्म का एक सीन था लेकिन कहीं न कहीं असलियत में ये उसकी पहचान बन गया था क्योंकि आज भी मधुबालानाम की अभिनेत्री का यदि जिक्र आये तो उसके नाम से पहले कोई किसी न किसी सौंदर्य विशेषण को लगाना नहीं भूलता मतलब कि मधुबालाएक तरह से अद्वितीय सुंदरता का प्रतीक बनकर रह गई जिसके आगे हर किसी ने अपना दिल निकालकर तो रख दिया लेकिन इस तिलस्म के पीछे उसकी अपनी असल पहचान कहीं खो सी गई । 

बड़ी नाज़ुक उमर-से उन्होंने मजबूरी के चलते इस सिने जगत में कदम रखा था अपने बड़े परिवार का पेट भरने की खातिर लेकिन फिर ये पेशा ही उनकी सारी जिंदगी बनकर रह गया और जब उन्होंने इस दुनिया में पदार्पण किया तो हर कोई सिर्फ उसके बेपनाह सौंदर्य को ही तकता रह गया और न जाने कैसी-कैसी उपमायें और संज्ञाओं को ढूंढ ढूंढकर उसे नवाज़ा गया पर, शायद ही कोई था जिसने मादक होश उड़ाने वाली हंसी तो सुनी हो लेकिन उसके भीतर की ख़ामोश बच्चों-सी मासूम मुस्कान को भी देखा हो, उन नशीली आँखों के अंदर छिपी पाकीज़गी को देखा हो और सबसे बढ़कर जो भी उसके करीब आया होगा वो उसके सीने में धड़कते दिल की केवल धड़कन ही सुन पाया होगा लेकिन कोई भी उस भावपूर्ण ह्रदय की कोमल ख्वाहिशों का अंदाज़ा लगा पाया हो इस पर विश्वास नहीं होता क्योंकि गर, ऐसा होता तो वो हस्ती जिसकी सारी दुनिया दिवानी थी जिसकी खूबसूरती हर किसी के लिये रश्क़ की वजह थी । जिसके आस-पास सारी सुख-सुविधायें तमाम खुशियों का सामान बिखरा पड़ा हो वही नाज़ुक दिल शहज़ादी अपने रत्ती भर दिल का बोझ न ढो पाई और उसमें ही छेद हो गया जिसमें से उसके सभी अरमां लहू बनकर रिस गये और जब रक्त की अंतिम बूंद भी बह गई तो फिर भला वो किस तरह पत्थर दिल लोगों के दरम्यां जीवित रह पाती और इस ज़ालिम दुनिया में और जीने की उम्मीद करती । जब अपनों के बीच अजनबी बनकर ही ताउम्र जीना ही जीने का सबब बन जाये तो बेहतर हैं कि इंसान चुपचाप इस बेमुरव्वत जहाँ से अलविदा कह चला जाये और वही उस संजीदगी की जीती-जागती चलती-फिरती उस काया ने भी किया जिसे लोगों ने सिर्फ एक कठपुतली ही समझ लिया था ।

कभी-कभी अत्याधिक सुंदर होना भी वरदान नहीं अभिशाप बन जाता हैं जहाँ किसी इंसान की अपार सफ़लता व उसकी प्रसिद्धि का सारा दारोमदार उसके अपने किसी विशेष हूनर और उसकी छिपी हुई अंदरूनी प्रतिभा की जगह सिर्फ उसके अप्सरा जैसे अनुपम चेहरे को दे दिया जाता हैं याने कि उसने अपनी काबिलियत से जो कुछ भी हासिल किया उसकी वज़ह उसका वो बेमिसाल सौंदर्य हैं उसमें उसका अपना कोई भी कमाल नहीं । सुनकर कुछ अटपटा लगता हैं लेकिन जिसके साथ ये पल-पल होता हैं वो ही इस दर्द को समझ पाता हैं जहाँ उसका मन चीख-चीख सबको बताना चाहता हैं कि जो ऊपर दिख रहा हैं वो पर्दे पर निभाये किरदार की तरह नकली हैं और वो सिर्फ़ एक चेहरा नहीं, एक बेजान सुंदर पुतला भी नहीं बल्कि हुनरमंद प्रतिभाशाली अस्तित्व हैं जिसे सबने खुबसूरत लिबास के नीचे ढंक दिया हैं लेकिन जहाँ सब जोर-जोर से एक ही जुमला दोहरा रहे हो वहां उस शोर में उस पतली मधुर ध्वनि को सुनने का माद्दा भला किसमें हो सकता हैं । मधुबालाको भी अपनी पहली बड़ी सफ़लता महलफिल्म में निभाये जिस रहस्यमय पात्र से मिली आजीवन वो उसी तरह एक पहेली ही बनी रही भले ही सब समझते रहे कि उन्होंने वो सरल-सी पहेली सुलझा ली हैं लेकिन वो सब खुद अनजान हैं कि आज भी वो उसके मदहोश कर देने वाले सौंदर्य के मोहजाल में ही फंसे हैं जिससे बाहर निकले तो जाने कि जैसे महलफिल्म में कोई आत्मा नहीं बल्कि एक नादान ख्वाहिश से मज़बूर जीवंत लड़की थी वैसे ही हम जिसे मधुबालाकहते हैं वो सिर्फ उसका बाहरी आवरण हैं जिसके भीतर जाकर उसकी हकीक़त को जानने का अवसर सबने खो दिया । 

१४ फरवरी १९३३ को जन्मी मुमताज़ जहाँ बेगम देहलवीजिसे कि फिल्मिस्तान ने मधुबालानाम दिया २३ फरवरी को १९६९ को दिल की बीमारी की वजह से अपने जज्बात अपने भीतर ही छुपाये इस जगत से खामोश चली गई और हम आज भी मल्लिका-ए-सौंदर्य कह उसे याद कर रहे... तो आज उसी संवेदनशील लेकिन जिंदादिली से भरपूर इक अधूरी तमन्ना  मधुबालाको उनके सभी मुरीदों का <3 से स्मरण... और मेरी ये शब्दांजलि... :) :) :) !!! 
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२३ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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