रविवार, 1 फ़रवरी 2015

सुर-३२- "हर मौसम कुछ कहता हैं... सुनो न...!!!"


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मित्रों...,

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हर मौसम
साथ अपने सिर्फ़
बाहरी बदलाव ही नहीं
एक सूक्ष्म संदेश भी लेकर आता
.....
लेकिन.....
अफ़सोस कि हर कोई समझ नहीं पाता ।।
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यूँ तो हम सभी मौसम पर तोहमत लगते कि इसका कोई भरोसा नहीं पल-पल बदलता रहता और इस कारण हम इंसान को भी कभी-कभी उसकी संज्ञा से नवाज़ देते पर यदि हम थोडा गंभीरता से इनको देखे और प्रकृति के इन परिवर्तित मनोभावों को अंतरदृष्टि से पढ़कर मनन करें तो इसमें छिपे के जीवन के बड़े गूढ़ रहस्यों को भी बड़ी आसानी से समझ सकते हैं । यूँ तो हम सभी इसके पीछे के सैद्धांतिक और वैज्ञानिक कारणों की पड़ताल कर चुके हैं और स्वयं को उसके अनुसार ढालकर उसके जैसे बनने का उपरी दिखावा भी भली-भांति कर लेते हैं लेकिन कभी भी हम उसे नहीं सुनते वो जो हमसे कहना चाहता  न ही उसके बदलाव को अंतर से महसूस करते हैं । वैज्ञानिकों ने तो जीवन के सिद्धांत को खोजते-खोजते ये तो पता लगा लगा लिया कि किस तरह से जीव और जीवन की उत्पत्ति हुई और किस तरह कुदरत में आने वाले परिवर्तनों ने मानव विकास को प्रभावित किया । साथ-साथ उन्होंने ये तक भी पता लगा लिया कि जो भी सजीव इन प्राकृतिक हेर-फेर के साथ ताल-मेल नहीं मिला पाये वो लुप्त हो गये केवल जिन्होंने संघर्ष किया वही अपने आपको और अपनी आने वाली संतति को सुरक्षित रख पाये यहीं कारण हैं कि हम उन विलुप्त प्रजातियों के बारे में केवल अब पढ़कर या सुनकर ही जानकारी प्राप्त कर पाते हैं ।

अब यदि हम इन सभी खोजों से प्राप्त विश्लेषणों से कुछ सीखना चाहे तो हम बड़े अनूठे और कीमती मशवरे पाते हैं जो हमें बड़ी ही अनमोल सीख दे जाते हैं कि इस जगत में जीने के लिये सिर्फ़ सांस लेना या खाना-पीना आना ही जरूरी नहीं हैं बल्कि प्रतिकूल परिस्थिति का डटकर सामना करना भी आना चाहिये क्योंकि जो लोग इन विपरीत हालातों से घबरा जाते हैं वो कभी भी जीवन का युद्ध जीत नहीं पाते बल्कि एक कमजोर योद्धा की भांति घुटने टेककर खुद को हालातों के हवाले कर देते हैं लेकिन जो इनसे मुकाबला करते हैं वो विजेता की तरह सीना तानकर जीते हैं । इसी तरह यदि हम बदलते हुयें मौसम को भी गौर से देखें और उनसे शिक्षा ग्रहण करें तो कुछ ऐसा अद्भुत और अनोखा सीख जाते हैं जो कोई भी किताब या ज्ञानी भी हमें नहीं बता पाता जैसे कि सर्दी, गर्मीं, बरसात, पतझड़, बसंत ये हमें सिर्फ इनके साथ खुद को ढालना ही नहीं सीखाते बल्कि छोटे-छोटे से संदेश भी देते हैं जैसे अभी जो सर्द हवायें चल रही हैं, पत्ते भी झड़ रहे हैं ये कह रहे हैं कि कभी-कभी हमारे जीवन में इतनी अधिक असहनीय स्थिति आ जाती हैं कि सांस लेना भी दूभर हो जाता हैं और दिलों-दिमाग में अनवरत चिंता की लहरें दौड़ती रहती हैं लेकिन यदि हम सब्र का दामन छोड़े नहीं, उन जानलेवा दिक्कतों से घबराये नहीं बल्कि पेड की तरह तनकर उसके वार को सीने पर सह ले वक़्त के गुजरने का इंतज़ार करें और बिना रुके अपनी मंजिल की और बढ़ते रहे भले ही धीमे कदमों से ही सही तो एक दिन उसी तरह हम काम्याब होते हैं जैसे कोहरे की चादर हटाकर देर से ही सूरज निकलता हैं ।

हालंकि उस वक़्त जीना दुश्वर-सा लगता हैं लेकिन जब धुंध छंट जाती हैं तो अच्छा भी तो महसूस होता हैं पर इस दिन को देखने के लिये कठिन रास्ते पर धैर्य की नाज़ुक ड़ोर पर कदम रख कर गुजरना ही पड़ता हैं क्योंकि जो डर गया वो मर गया... ये सिर्फ एक फ़िल्मी संवाद नहीं बड़ी कठोर हकीकत हैं... आज़माने पर ही अंदाज़ा होता हैं... और ख़ामोशी से सुनते रहे हर मौसम कुछ कहता हैं... :) :) :) !!!
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०१ फरवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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