गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

सुर-५० : "देश की पहचान... छत्रपति शिवाजी महान...!!!"

चारों और
छाया था अँधेरा
तब वो निकला बन के
आशाओं का चमकता सवेरा
फ़हराया धर्म का परचम सुनहरा ॥

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मित्रों...,

ये देश हैं वीर जवानों का... इस देश का यारों क्या कहना... सुनते ही लहू में एक जोश आ जाता हैं और जब इस मिट्टी में जनम लेने वाले वीर-बहादुर भारत-माता के सच्चे सपूतों की हौंसलों से भरी संघर्ष भरी दास्तान पढ़ती या सुनती हूँ तो हमेशा अंतर में एक जोशीला अहसास होता जो मस्तक को गर्व से ऊंचा कर देता हैं । ऐसे ही इतिहास में दर्ज हैं एक समय जब हिंदुस्तान की धरती पर मुगलों का शासन बढ़ गया था और हिंदू लोगों पर उनके नित बढ़ते अन्याय-अत्याचार से लोगों का मनोबल भी कुछ हताश होने लगा था ऐसे समय में १९ फ़रवरी, १६३० ई. को शिवनेरी, महाराष्ट्र में शाहजी भोंसलेऔर जीजाबाईके यहाँ इस महान आत्मा का जन्म हुआ था । उनके पिता एक प्रभावशाली सामंत थे पर उनको बाल्यकाल से ही अपने पिता की जगह माँ की ममता और सरंक्षण ही अधिक प्राप्त हुआ था अतः जब कभी-भी शिवाजी का नाम लो या उनकी गाथा पढ़ो तो यही ज्ञात होता हैं कि वो जो कुछ भी बने उसमें उनकी माता जीजाबाईऔर उनके गुरु समर्थ रामदासका ही पूरा योगदान था । जिन्होंने उसे बचपन से ही किताबी शिक्षा के स्थान पर व्यावहारिक ज्ञान दिया और सदैव माँ, स्वदेश, स्वधर्म, गौ-माता और नारी का सम्मान करने का पाठ पढ़ाया और उनकी रग-रग में साहस का ऐसा लावा भर दिया कि वो एक शेर की तरह निर्भीक और जाबांज लड़ाकू बने जिसका उद्देश्य अपनी मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करा पुनः अपने धर्म और देश के मान को उसके स्थान पर प्रतिष्ठित करना था । जिन्होंने अपने जीवन में न तो कभी किसी पर अत्याचार किया न ही किसी को उसे सहने का ही उपदेश दिया बल्कि उन्होंने तो यही संदेश दिया कि भारत माँ के हर सपूत को अपने धर्म और वतन की रक्षा के लिये कोई भी शत्रु हो उसका सामना करने हमेशा तैयार रहना चाहिये किसी भी परिस्थिति या हालात या कितना भी क्रूर विरोधी हो उससे घबराना नहीं चाहिये बल्कि ख़ुद को हर हाल में मज़बूत रखकर हर चीज़ का मुक़ाबला करना चाहिये ।

यही वजह रही कि उस समय के उस कठिन दौर में भी जब हर तरफ़ मुगलों का प्रशासन था उन्होंने मराठा साम्राज्यकी नींव रखी सिर्फ इस बात से ही हम उनके उस स्वदेश प्रेम के बेमिसाल जज्बे और उनके भीतर भरे निडरता के शोलों की आग की आंच को महसूस कर सकते हैं जिसने आज तक हर एक युवा के लहू में उस ऊष्मा को बचा रखा हैं क्योंकि बहुत कम आयु में ही लगभग सोलह वर्ष की कोमल आयु में ही उन्हें इस बात का पूर्ण विश्वास हो गया था कि उन्हें भगवान ने किसी विशेष कर्म के लिए भेजा हैं अतः उन्होंने अल्पायु से ही अपने ध्येय की प्राप्ति हेतु अपने जैसे ही बहादुर स्वामिभक्त साथियों को अपनी सेना में शामिल किया जो सर पर कफ़न बांधकर चलते थे और भारत-माता के लिये जान देने हरदम हरपल तैयार रहते हैं । कहते हैं कि उस वक़्त तक मराठे भी अपनी अलग पहचान बनाने के लिये जागरूक होने लगे  थे ऐसे समय में शिवाजी ने उन सबको एक साथ एक जगह पर एकत्रित किया और उनके भीतर अपने आत्माभिमान का भाव जागृत कर उनका स्वाधीनता प्राप्ति का लक्ष्य भी स्पष्ट किया । अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने कम आयु में ही लगभग १८ वर्ष की नाज़ुक अवस्था में पूना के निकट अनेक दुर्गम पहाड़ी क़िलों पर विजय प्राप्त कर ली जैसे- रायगढ़, कोडंना और तोरना । इस तरह उनका ये जीवनकाल हम सबको ये भी बताता हैं कि जब जीवन में अपनी मंजिल निर्धारित कर ली जाय तो फिर उसके लिये मार्ग का निर्धारण और उसे प्राप्त करने के साधन की व्यवस्था कर हमें सीधे उसे प्राप्त करने के प्रयासों में जुट जाना चाहिये और जितने भी सफ़ल लोगों की हम कहानियां पढ़ते हैं तो यही पाते हैं कि उन सबके सामने अपना 'टारगेट' एकदम साफ़ था और इसलिये उन्होंने बड़ी ही कुशलता से उसे प्राप्त करने हर जतन किया तभी वो उस जगह पहुंच सके जहाँ तक जाने का दूसरे लोग बैठे-बैठे आजीवन सिर्फ ख्वाब देखते रहते हैं ।

एक सेनानायक और राजा के रूप में शिवाजीका शासनकाल उनकी गौरवशाली गाथा का बखान करता हैं जिसके कारण उन्हें छत्रपतिका ख़िताब दिया गया और वो इस देश की आन-बान-शान बन गये जिसे हम भारतवासी कभी भी भूला नहीं सकते और अपने आस-पास जब ऐसे ही हालात देखें जब हमारे धर्म और पहचान को मिटाने हिंसक आतंकवाद का सहारा लिया जाये तो हमें भी निडर शिवाजीकी भांति उससे टकराने का हौंसला रखना चाहिये क्योंकि ये देश ऐसे वीर-साहसी लोगों की अमर कथाओं से भरा पड़ा हैं जिन्होंने मुश्किल से मुश्किल वक़्त में भी खुद को या अपने देश या धर्म की झुकने नहीं दिया... तो फिर आज शिवाजी की जयंतीपर हम भी उनको हृदय से नमन करें और अपने श्रद्धासुमन अर्पित करें... आज भले ही वो हमारे साथ नहीं लेकिन उनकी वो प्रेरक अमिट स्मृति तो सदा ही हम सबका मार्गदर्शन करने एक अदृश्य साये की तरह हमारे साथ हैं... तो फिर हम कैसे भूल जाये उनको... देश याद करता जिनको... वंदे मातरम... :) :) :) !!!
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१९ फरवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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