शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

सुर-३७ : "अमरगीतों के जगमगाते दीप....पंडित प्रदीप...!!!"

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मित्रों...,

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फिल्म ही नहीं
साहित्य जगत भी
जिस पर नाज़ करता हैं ।
.....
जिसके गीतों पर 
ये सारा का सारा हिंदुस्तान
गर्व करता हैं ।
.....
आज उसकी जन्मशती पर
ये सारा देश अपने उस महान कवि और गीतकार
पंडित प्रदीपको ह्रदय से नमन करता हैं ।।
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शायद ही इस देश का कोई भी ऐसा व्यक्ति हो जिसने कि देशभक्ति से रचा पगा ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आँख में भर लो पानीगीत न सुना हो ये वो संवेदनशील आत्मा से निकली आवाज़ हैं जिसने कि इस भारतभूमि के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरूजीकी आँखों को भी नम कर दिया था और आज भी जब किसी के कानों में इसकी दिल चीर लेने वाली मधुर तान सुनाई देती हैं तो अपने आप ही उसकी आँखें गीली हो जाती हैं । ऐसा जादू हैं उस कलम और उसके रचियता का जो स्याही से नहीं सीधे लहू से अपने जज्बात को लिखता था क्योंकि उसने भी परतंत्रता की बेबस हवाओं में जनम लिया था और अपने आस-पास अपने ही लोगों की बेचारगी को देखा और महसूस किया था तभी तो उसने अपनी कलम से लोगों के भीतर वो जोश वो रवानी ला दी कि वो नयी उमंग से आज़ादी की लड़ाई में दुश्मन को इस तरह ललकारते--- आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा हैएक ऐसा ओजपूर्ण गीत जिसने कि फिरंगी शासकों को भी चेतवानी दे डाली कि अब इस देश के क्रांतिकारी स्वदेश लेकर ही रहेंगे । ०६ फ़रवरी १९१५ को जन्मे रामचंद्र द्विवेदीने अपना सारा जीवन साहित्य सृजन को समर्पित कर दिया और अपनी कलम से समय-समय पर कुछ ऐसा सृजन किया जो अमर  बन गया जब उन्होंने लिखा कि चल चल रे नौजवान...तो हर कोई इसकी लय  पर चलने लगा जब देश आज़ाद हुआ और आज़ादी का परचम लहराया तो उनकी कलम बोल उठी-हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल केएक ऐसा गीत जिसे पाकिस्तान ने भी अपनाया । राष्ट्र के पितामह महात्मा गाँधीके निधन पर उनकी कलम भी रो पड़ी और अपने दर्द को कुछ यूँ बयाँ कर गई-दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमालजिसे आज तलक 'बापू' की याद में हम सब दोहराते हैं ये होता हैं शब्दों का असर कि लिखने वाला रहे न रहें लेकिन उसके अल्फाज़ फिजाओं में गूंजते रहते हैं इसे कहते हैं सार्थक लेखन जो सृजन को इतिहास का अंश और लेखन को 'कालजयी रचना' बना देता हैं ।

वे सिर्फ एक गीतकार या कवि ही नहीं थे बल्कि उनकी एक गायक भी थे जिसकी अपनी ही एक गायन शैली और आवाज़ थी जिसे सुनकर कोई भी पहचान सकता हैं कि ये पंडित प्रदीपकी आवाज़ हैं यूँ तो उनका वास्तविक नाम रामचन्द्र द्विवेदीथा पर सुनते हैं कि उनकी रचनाओं ने महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजीको भी अपना प्रशंसक बना लिया था इसलिये उन्होंने उनको ये नाम दिया था पंडित प्रदीप। जिन्होंने अपनी पुरकशिश ओजस्वी वाणी से जब गीत गाया आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झांकी हिंदुस्तान की, इस मिटटी से तिलक कर ये धरती हैं बलिदान की... वंदे मातरम्तो मेरे ख्याल से शायद ही कोई हो जिसने उनके सुर से अपना सुर मिलाकर हमारा सुर न बनाया हो और जोर से वंदे मातरम्का उद्घोष न किया हो । आज भी हमारे राष्ट्रिय पर्व स्वाधीनता दिवसऔर गणतंत्र दिवसपर उनके लिखे गीत ही सुनाई देते हैं जो कभी भी उनकी हमारे दिलों में उनकी याद को धूमिल न होने देंगे क्योंकि वे ये भी लिखते हैं कि – ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमाराऔर अफ़सोस कि हम इस पैगाम को ही भूले जाते हैं । उन्होंने सिर्फ देशभक्ति के रंग को नहीं बल्कि आध्यत्मिकता के भाव को भी आकार दिया और अपनी कलम से कभी उस दौर के इंसान की बदलती फितरत को निशाना बनाकर लिखा कि देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसानतो कभी उसी इंसान को ये भी कहा कि दूसरों का दुखड़ा दूर करने वाले तेरे दुःख दूर करें मेरे नामऔर कभी लिखते हैं तेरे द्वार खड़ा भगवान भगत भर दे रे झोलीतो कभी लिखा मारने वाला है भगवान, बचाने वाला है भगवानऐसे ही जब व्यक्ति हताश हुआ तो उनकी कलम ने कहा चल अकेला चल अकेला तेरा मेला पीछे छूटा रे राही चल अकेलाया फिर चल मुसाफिर चल

यहाँ तक कि उन्होंने ने तो एक पंछी के दर्द को महसूस कर यूँ पन्नों पर उतार दिया जैसे कि वे स्वयं ही उसके साथी हो पिंजरे के पंछी रे... तेरा दर्द न जाने कोयकेवल इसे सुनकर भी कोई उस पीड़ा को अपने अंतर में महसूस कर सकता हैं जो एक पिंजरे की अंदर बंद कोई परिंदे को होती होगी । जय संतोषी माँफिल्म में उनके लिखे गीतों ने ऐसी धूम मचाई कि न सिर्फ फिल्म सुपर डुपर हिट हो गई बल्कि हर एक गीत, भजन और आरती पर सभी लोगों ने भक्ति भाव से अपने मनोभावों को जोड़ लिया और मैं तो आरती उतारूँयहाँ वहां जहाँ तहां मत पूछो कहाँ कहाँ हैं संतोषी माँअपनी संतोषी माँपर नर्तन भी किया । "चलो चलें माँ... एक सपनों के गाँव में..." ये गीत हर माँ के चरणों को अर्पित एक खुबसूरत श्रद्धा भाव हैं जिसे सुनकर कोई भी भाव विभोर हो सकता हैं... तो आज उनके जन्मदिन के अवसर पर जबकि उनकी जन्मशती मनाई जा रही हैं हम सब भी उन्हें मुबारकबाद देकर उनके प्रति अपने स्नेह को अभिव्यक्त करें... आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके ये सारे गीत सदैव हमारे साथ रहेंगे और हमें उनकी याद दिलाते रहेंगे... :) :) :) !!!
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०६ फरवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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