बुधवार, 11 मार्च 2015

सुर-६९ : "आत्मा का नाता... नहीं मुश्किल बनाना..!!!"

एकाएक
झटके से टूटी
सूक्ष्म जगत से जुड़ी 
वो नाज़ुक डोर
आत्मा-परमात्मा की
ज्यूँ कटी नाल नवजात की ॥

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मित्रों...,

तीन बरस की मासूम नन्ही शुभीबड़ी तन्मयता से अपने खिलौनों के साथ खेलने एवं उनसे बतियाने में व्यस्त थी और वही सामने बैठी उसकी माँ कोई पत्रिका पढ़ने में तल्लीन थी कि तभी अचानक वो अपने हाथ में पकड़ी गुड़िया को जमीन पर फेंककर व अपने सभी प्रिय खिलौने को जैसा का तैसा वही छोड़कर बाहर की तरफ भागी और उसकी माँ अंदर किचन की तरफ चाय का पानी चढ़ाने के लिये तत्काल अपने स्थान से उठ गई थी । जैसे ही वो रसोई से हाथ पोंछते हुये बाहर आई तो देखा सामने शुभीअपने पापा की गोद में बैठी अपनी तोतली जुबान में उन्हें न जाने क्या-क्या बातें बताती और मजे से हाथ हिलाती चली आ रही थी और उसके पापा भी उतने ही ध्यान से उसकी वो सब बातें सुन रहे थे ।

रोज शाम को उनके यहाँ ऐसा ही होता न जाने कैसे वो छोटी-सी शुभीचाहे कहीं भी बैठी हो या कुछ भी कर रही हो यहाँ तक कि टी.वी देखने में भी मगन हो पर न जाने किस तरह अपने पापा के आने की वो अस्पष्ट आहट सुन लेती और सब कुछ भूलकर दौड़ लगा देती । एक तरह से उसकी ये हरकत उसकी माँ के लिये एक सांकेतिक अलार्म बन गई थी वे भले ही उस आवाज़ को सुनने व समझने में एक पल को भूल कर जाये लेकिन उन्होंने कभी भी शुभीको एक बार भी इसे पहचान पाने में किसी तरह की गलती करते नहीं देखा था ।

मिस्टर शर्माअपने जिले के थाने में टी.आई.थे अतः घर उनके आने-जाने के समय का कोई निश्चित वक़्त तो था नहीं साथ कभी-कभी दौरे पर बाहर चले जाते तो फिर वापसी  की भी कोई तयशुदा तिथि नहीं फिर भी उनके आने के पहले ही उनका पालतू और सबसे प्रिय डॉग टाइगरन जाने किस तरह उनके आमद की खबर जान जाता और जहाँ सब अपनी बातों या काम में ही मशगूल रहते वो चुपचाप भागकर मेन गेट पर खड़ा हो जाता और यहाँ तक कि जब भी कभी वो कहीं जाते तो पहले तो नीचे से ही उनको प्यार से विदा करता और फिर वो छत पर पहुँच नम आँखों से खामोश खड़ा होकर बड़ी देर और दूर तक उनको देखता रहता । 

बहुत-से लोगों ने अपने यहाँ इस तरह के दिल को छू लेने वाले छोटे-छोटे प्यारे नाज़ुक मंजर देखें होंगे लेकिन क्या कभी सोचा हैं कि जिसे हल्के स्वर को हम सुनने से चूक जाते हैं या कभी-कभी तो सोच में पड़ जाते हैं उसे किस तरह ये अबोध बच्चे या घर में पले मूक पशु न सिर्फ उतने ही शौर भरे माहौल में सुन लेते हैं बल्कि त्वरित प्यारी-सी प्रतिक्रिया भी अभिव्यक्त करते हैं... जबकि यही बच्चा जब बड़ा हो जाता हैं तो पालक के पुकारने पर भी न तो उन्हें जवाब देता न ही दौड़कर आता इसकी वजह क्या हो सकती हैं ?

शायद... वो सूक्ष्म एकाग्रता या जुड़ाव जो बिना किसी स्वार्थ और लालसा के होता फिर जब आदमी जिंदगी की भाग-दौड़ में व्यस्त हो जाता और मोह-माया में फंस जाता तो उसके मन की छोटी-सी दुनिया इतनी बड़ी हो जाती कि अगल-बगल की भी खबर नहीं हो पाती... इसके लिये अंतरात्मा की पारदर्शिता बहुत जरूरी होती हैं जैसे-जैसे उसमें दुनियावी रंग और ख़ुद का मतलबीपन आ जाता फिर उसमें से हर एक रिश्ता और व्यक्ति धुंधला नज़र आता... लेकिन इसे हासिल भी किया जा सकता ध्यान और चिंतन के साथ-साथ मन की एकाग्रता से... केवल सच्ची लगन और कोशिशों से... सिर्फ चाहने से नहीं करने से ही ये हो पाता... बड़ी कठिन हैं बन जाना आत्मा का नाता... :) :) :) !!!    
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११ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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