शनिवार, 21 मार्च 2015

सुर-७८ : "सिर्फ आया नहीं नया साल... लाया सौगातें भी बेमिसाल... !!!"

नया दिन
नया सूरज
नया सबेरा
नया सज गया  
देखो... कुदरत का थाल
.....
और... बस...
बदल गया महा-काल
लो आ गया एक नया साल
अब मिला लो समय के साथ ताल...
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मित्रों...,

‘चैत्र प्रतिपदा’ के साथ ही हम भारतीयों के ‘नूतन वर्ष’ का शुभारंभ हो जाता हैं जो कि कोई कैलेंडर की एक तारीख बदलने के समान सहज नहीं हैं, न ही ३६५ दिनों का कोई आकलन कि बस, इसके बाद अगला बरस आ जायेगा ये तो बड़े ही वैज्ञानिक ढंग से अनुभवी विद्वानों और हिंदू धर्म के पुरोधाओं के द्वारा निश्चित किया गया दिवस हैं जिसके आने की सूचना सारे ब्रम्हांड में प्रकृति के बदलाव के साथ ही देखी जा सकती हैं क्योंकि फागुन के जाते ही सर्द मौसम का खात्मा होने लगता और धीरे-धीरे दिन अधिक ऊर्जावान और बड़े जबकि रातें छोटी होने लगती हैं यही तो होता दो ऋतुओं का अद्भुत संगम या संधिकाल जो हमें इस नवीनता की सूचना देता हैं अब तो सारी दुनिया भी हमारे इस विधि-विधान को जानकर चमत्कृत हैं कि हमारे यहाँ कोई भी तीज-त्यौहार या पर्व किसी दिन विशेष से नहीं बल्कि तिथियों से नियत होते इसलिये तो भले ही लोगों को लगता कि ये तो कभी-भी आ जाते लेकिन जब बड़े-बड़े वैज्ञानिक घड़ी-पल की गणना से उसी निष्कर्ष पर पहुंचते जिस पर हम लोग सदियों पहले ही पहुच चुके थे तो वे भी इसे अपना लेते तभी तो जिन मंत्रों या श्लोकों को जपना छोड़कर हमने उनके रॉक-स्टार की तरह चिल्लाना शुरू कर दिया हैं वही उन्होंने हमारे यहाँ के ध्यान-चिंतन और हर रीति-रिवाज़ को अपनाना शुरू कर दिया हैं तभी तो हमें ही अपने यहाँ के लोगों को जताना पड़ता कि जागो... देखो हमारे यहाँ सब कुछ हैं हमारे तो खाने-पीने और रहन-सहन की शैली में भी जो गूढ़ रहस्य और अर्थ छुपे हुए हैं उनको जानकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता कि ये भारतीय जो जमीन पर बैठकर हाथ से उँगलियाँ चाटकर खाते हैं तो ये असभ्य नहीं हैं बल्कि अपने स्वास्थ्य  के प्रति जागरूक हैं तभी तो इनकी हर छोटी-छोटी आदत के पीछे एक गहन शौध हैं पर, हम लोगों का हाल ये हो चुका हैं कि जब तक कोई परदेसी हमारी किसी चीज़ पर अपना ठप्पा लगाकर उसे महत्वपूर्ण न बता दे हम सोते रहते हैं और जब वो हमारे यहाँ की खोजों को अपने नाम से पेटेंट कर लेते तो रोने लगते हैं इसलिये जरूरत हैं कि हम सब न सिर्फ इन बातों की केवल उपरी तौर पर देखने बल्कि इनकी महत्ता को समझते हुये अपने आपको एक भारतीय कहलाने में गर्व महसूस करें न कि सिर्फ शौकिया इस जुमले का प्रयोग कर खुश होते रहे सच, बड़ी पीड़ा होती जब हम देखते कि हमारे आयुर्वेद और पुरातन ज्ञान को वो लोग न सिर्फ इस्तेमाल कर रहें बल्कि पैकिंग कर हमें भी बेच रहे हैं

‘विक्रम संवत्सर’ का प्रारंभ पूरी तरह से खगोलीय आंकड़ों और गणनाओं पर निर्भर करता हैं और इसका प्रतिपादन भी सृष्टि की रचना के साथ-साथ आगे बढ़ता रहता तभी तो हमारे सनातन हिंदू धर्म में जो चारयुग और काल का विभाजन हैं वो भी इतना सैधांतिक हैं कि जब हम उसका अध्ययन करते तो उसे महसूस भी कर पाते और जो कलयुग अभी चल रहा हैं उसके बारे में भी हमें ज्ञात होता कि जो कुछ भी अभी जैसा चल रहा हैं उसकी वजह क्या हैं जिसे हम ही अनदेखा कर रहे हैं जबकि जिस तरह की आसुरी प्रवृतियाँ दिखाई दे रही हैं वो सब उसी परिवर्तन के कारण हैं जो हम सबने दूसरों की देखा-देखी कर अपना लिया और अपनी मूल प्रवृति को छोड़ दिया तभी तो आज हमारे देश में भी वही सब अनाचार और घटनाक्रम नज़र आ रहा हैं जो सारी दुनिया में चल रहा हैं जबकि कभी हम ही सबको शांति का संदेश देते थे लेकिन अब हम ही उसे भूलते जा रहे हैं तो फिर किस तरह हमारी आने वाली पीढ़ी या संतति हमारे उस गौरवशाली अतीत को जान पायेगी उस स्वर्ण काल को जो अब केवल वेदों या धर्मग्रन्थों में कैद हैं और जिसे पढ़ना तो दूर कोई खोलता तक नहीं पर, जिनके भीतर अकूत ज्ञान का ही नहीं जानकारियों का खज़ाना भरा पड़ा हैं अब वक़्त आया कि हम स्वयं अपने आपको दोहराये और फिर समस्त विश्व में उसी तरह अपना नाम पहचान बनाये जिसके कारण हमें लोगों ने हमारे नाम से जाना नहीं तो हमारी अपनी भारतीय संस्कृति और परम्परायें भी पशु-पक्षियों की तरह लुप्त हो जायेंगी क्योंकि सम्भवतः ये अंतिम पीढ़ी हैं जो अब तक विरासत की उस डोर को मजबूती से थामे हैं और अपने नौनिहालों को उसके बारे में बता रही हैं लेकिन फिर भी कितने बच्चे हैं जो पालथी मारकर हाथों से खाना भूल चुके हैं... पत्तल तो दूर अब तो थाली में भी खाना नहीं लेते प्लास्टिक का प्रयोग चल रहा... इसी तरह घरों के भीतर का रहन-सहन भी उस भारतीय शैली का नहीं रहा जो हर हिंदू घर की पहचान था अब तो घर से रसोईघर, गुसलखाना, पूजन कक्ष सब नदारद रहते उनकी जगह मोड्यूलर किचन, अटेच बाथ और स्टोर रूम आ चूका हैं तो हम न सिर्फ अपनी जड़ों की तरफ लौटे बल्कि भारतीय सभ्यता के उस मुरझाते पेड़ को भी फिर से हर-भरा करें जिसमें हम अपने वास्तविक स्वरूप में नज़र आते हैं जहाँ हर घर एक आंगन में तुलसी और चारों तरफ़ एक पवित्र वातावरण झलकता हैं             

आज से माँ आदिशक्ति के साधना पर्व ‘नवरात्र’ की भी शुरुआत होती जो इस बात का सूचक हैं कि हम इस बदलती ऋतू के साथ सामंजस्य बिठाने के लिये अपने अंदर भी बदलाव लाये क्योंकि कुदरत को तो उपरवाला बदल देता लेकिन अपने आपको तो हमें खुद ही बदलना होगा और इन ऊर्जा से भरे नौ दिनों में हम भक्ति और उपासना से शक्ति का संचय कर आने वाले दिनों के लिए अपने आपको तैयार कर सकते हैं इसलिये तो हमारे यहाँ हर ऋतू परिवर्तन के साथ एक नवरात्र भी आती इस तरह चार नवरातें होती जिसमें से वासंतीय और शारदीय तो हम सब मनाते हैं और लेकिन दो गुप्त हैं... इन दिनों का एकमात्र उद्देश्य हमारा अपने आप को सुदृद बनाना और अगली पीढ़ी को अपने संस्कार सौपना हैं... तो सबको हिंदू नववर्ष और जगतजननी के नवरात्र की अनंत शुभकामनायें... :) :) :) !!! 
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२१ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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