शुक्रवार, 13 मार्च 2015

सुर-७१ : "मन को बनाये जम्बुरा... मदारी नहीं...!!!"

झोली
हसरतों की
कभी भरती नहीं ।
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दुआ
मन्नत भी
काम आती नहीं ॥
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मित्रों...,

ख़्वाबदेखना जरूरी हैं क्योंकि बिना उसके आपके जीवन का ध्येय और मंजिल का पता चलता नहीं और ये उसे साकार करने की ज़िद ही तो होती हैं जो हमें गतिमान बनाये रखती हैं लेकिन इसके साथ ही हमें ये भी जानना जरूरी हैं कि जो भी अरमान हमने पाले हैं या जो भी हमारी ख्वाहिशें हैं वो सहीहैं या गलतमतलब कि उनके नैतिक और अनैतिक होने के बारे में भी यदि हम जरा-सा ही सही विचार कर ले तो उसके परिणाम के प्रति भी सजग हो सकते हैं क्योंकि चाहतों के नतीज़े सदैव सकारात्मक नहीं होते वरन कभी-कभी नकारात्मक भी होते हैं । हम उनके बीच के इस सूक्ष्म अंतर को अक्सर देख नहीं पाते क्योंकि हमें यही लगता कि हम या हमारी सोच कभी-भी ख़राब नहीं हो सकती कि हमें किसी बुरे मार्ग पर लेकर जाये तभी तो जब वो चरम पर पहुँच जाती और हमारे सर पर सवार हो जाती तो एकदम से घातक रूप धारण कर लेती हैं जिसके कारण आजकल हम आये दिन अख़बार की सुर्ख़ियों में ऐसे कारनामों की दास्ताँ पढ़ते हैं जिनमें किसी की आंतरिक कामना न सिर्फ उसकी बल्कि किसी और की भी जिंदगी का खात्मा कर देती ।

ऐसे में बहुत जरूरी हैं कि हम अपनी इन्द्रियों के नहीं बल्कि अपने मन के स्वामी बन जाये और जैसा भी हम चाहे वैसा उन्हें निर्देश देकर उनसे काम करवा ले न कि उनके इशारों पर इस तरह से कठपुतली बनकर नाचे कि वो हमें किसी अंधे कुयें में गिरा दे और हम जीवन भर बाहर निकलने के लिये हाथ पैर मारते रहे लेकिन अपनी इन अनंत इच्छायों की भूल-भुलैया में इस तरह से गुम हो जाते  कि उस जाल में फंसते ही चले जाते और एक दिन उसी में हमारा दम घुट जाता और बेमौत मारे जाते । कहने की भले ही हमारी ये इंद्रियां हमारी वजूद के सामने बड़ी नगण्य नज़र आती हैं लेकिन इनकी ताकत किसी से भी छूपी नहीं कि जब ये हमारे ऊपर नियंत्रण कर लेती तो फिर हमारा व्यक्तित्व चाहे कितना भी शक्तिशाली और जेहन कितना भी ज्ञानवान क्यों न हो सारी ताकत और सारी बुद्धिमता ताक पर रखी रह जाती वो इस कदर हमारे मन-मस्तिष्क पर अपना प्रभाव डालती हैं । तभी तो इतनी सारी कहानियाँ और मिसालें जो हम पढ़ते जो हमें केवल यही बताती कि जब भी आदमी का खुद पर काबू नहीं रहता उसका सर्वनाश हो जाता हैं फिर भी शायद कोई किसी से भी कोई शिक्षा ग्रहण नहीं करता तभी तो रोज-रोज इतने सारे हादसे होते रहते हैं जो सोचने पर मजबूर कर देते हैं ।

जिस तरह का वातावरण आजकल हमारे आस-पास हैं उसमें ये निहायत जरूरी हैं कि व्यक्ति अपनी बागड़ोर अपने ही हाथों में लेकर चले न कि उसे अपनी हसरतों के हवाले कर दे और फिर वो जिधर चाहे उधर आपको ले जाये और ये कोई इतना मुश्किल काम भी तो नहीं केवल थोड़ा-सा ध्यान-चिंतन और एक पवित्र माहौल में खुद को रखना हैं ताकि किसी भी तरह की  कमजोरी हमें अपने लक्ष्य से भटका न सके क्योंकि देखें तो पाते हैं कि हमारे चारों तरफ ऐसी-ऐसी चीजें और साधन हैं जो बड़ी ही आसानी से हमें अपने वश में कर लेते हैं फिर हमें पता भी नहीं चलता और हम बहुत कुछ कर गुजरते हैं । ये सब कुछ इतना अचानक और प्रवाह में होता हैं कि संभलने का भी अवसर नहीं मिलता जिस तरह से हम इस आभासी दुनिया में ही देख रहे कि नितांत अपरिचित लोग आपस में मित्र बनते फिर उनके बीच थोड़ी-बहुत बातचीत होती जो कभी-कभी इतनी अनौपचारिक और अव्यवहारिक हो जाती कि बंदे / बंदी को इस दुनिया से अलविदा ही करना पड़ता या कभी-कभी उसे सामने लाकर उसका इतने बुरे तरीके से ख़ुलासा किया जाता कि अगले को कहीं मुंह छिपाने जगह ही नहीं मिलती और वो शर्म से मौत के काले साये में ही पनाह लेता हैं । आज भी एक ऐसी ही सच्ची घटना पढने में आई जहाँ एक लड़की को ब्लैकमेल किये जाने पर उसे ऐसा ही खौफ़नाक कदम उठाना पड़ा क्योंकि उसने भी अपनी हसरतों की सीमाओं को पहचाना नहीं और कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गई ।

इस तकनीकी युग में सब कुछ बेहद आसान हो गया हैं जिसके कारण अपराध भी बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में जिस तेज रफ़्तार से लोग भाग रहे हैं उनके पास न तो कुछ सुनने न ही सोचने का ही समय हैं बल्कि समझाये जाने पर वे आपसे दूर भी भागते हैं... अतः ऐसे रास्ते अपनाये जाने चाहिये कि उसे इसकी गंभीरता का अहसास हो और पाठ्यक्रम में भी इसका शुमार किया जाना चाहिये ताकि आने वाले समय में किशोरों द्वारा किये जाने वाले अपराधों के बढ़ते ग्राफ को नीचे किया जा सके क्योंकि सर्वाधिक समस्या यही आयु वर्ग हैं जो अपने आप और अपनी चाहतों पर नियंत्रण रख पाने में असर्मथ हैं... अब उसको इस बात का अहसास दिलाना जरूरी हैं क्योंकि पानी धीरे-धीरे खतरे के निशान के ऊपर होता जा रहा हैं जो पूरे समाज के लिये अहितकारी हो सकता हैं... तो फिर जाने और जताये भी कि मन को बॉसबनने देना अपने आपको ही उसका गुलाम बना लेना हैं... जबकि आप खुद अपने मालिक बन  सकते हैं... यदि अपनी चाहत को जान ले तो... मुश्किल नहीं कुछ भी... आख़िर... आप कोई जम्बुरेतो नहीं जो उसका हुकूम मानते रहें... सच... :) :) :) !!!       
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१३ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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