रविवार, 8 मार्च 2015

सुर-६६ : "आधी नहीं... पूरी आबादी की जन्मदात्री... नारी... अंतिम किश्त...!!!"

सुनो स्त्रियों,

वक़्त आ गया
कि तुम अब निकलो
अपने ‘कम्फर्ट ज़ोन’ से बाहर
क्योंकि सुरक्षित नहीं रही वहां भी तो
फिर किसलिये खुद को बंद रखती
हर जुल्मों-सितम चुप सहती
साया बनकर साथ-साथ चलती
जब आधी दुनिया तुम्हारी पीड़ा न समझती
बना लो अपनी वो अलग हस्ती, अलग बस्ती
जिसके लिये तुम्हारी रूह तरसती
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मित्रों...,

दृश्य---०१
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परिवार के सभी लोग बाहर हाल में बैठे-बैठे टी.वी. देख रहे थे कि तभी स्क्रीन पर एक आपत्तिजनक दृश्य आया पर न तो किसी ने ही मुंह बिचकाया और न ही किसी के ही चेहरे पर शिकन का हल्का-सा अंश नज़र आया बल्कि छोटे-बड़े सबने बड़ी सहजता से उसे एक साथ देखा यहाँ तक कि पहले जो ‘पोर्न स्टार’ बेडरूम का हिस्सा थी वो भी अब मटकते-मटकते इसी ‘डायनिंग रूम’ तक चली आई थी और सबसे बड़े आश्चर्य की बात कि घर की बिटिया उसकी ही तरह न सिर्फ़ ‘बेबी डॉल में सोने दी...’ पर बिंदास नाचती बल्कि उसी की तरह अभिनेत्री भी बनना चाहती और सब उसकी बात सुनकर खुश होते वाह... कितनी तरक्की कर ली हमने कि पहले जहाँ ये सब सोचना भी नामुमकिन था अब असलियत में हर घर में हो रहा हैं      

दृश्य---०२
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कॉलेज में एक ‘अल्ट्रा मॉडर्न’ लडकी का ‘अल्ट्रा मिनी स्कर्ट’ पहने पदार्पण हुआ क्या लड़का और क्या लड़की सबने उसे ठंडी आह भरकर निहारा और अगले ही दिन से हर कोई उसके ही पीछे घूमता नज़र आया किसी ने उसे ‘हॉट’ तो किसी ने ‘सेक्सी’ और किसी ने ‘लोलीपॉप’ कहकर पुकारा उन सबका ये ‘रिस्पांस’ देखकर कुछ हीनभावना से ग्रस्त हुई तो कुछ ने उसे बेशर्म बताया जबकि अभी-अभी गाँव से शहर पढ़ने आई एक भोली-भाली बाला ने खुद को भी फैशनेबल और उसकी टक्कर का जताने अपनी रंगत को ही बदल डाला... उफ़... ये क्या ज़ुल्म कर डाला... नतीज़ा कुछ दिनों बाद सबने हॉस्टल में उसका बेजान जिस्म पलंग पर पड़ा पाया     

दृश्य---०३
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‘मल्टीप्लेक्स’ से रात के समय फिल्म देखकर लौट रहे एक जोड़े को कुछ वहशियों ने अपनी वासना का शिकार बनाया... सबने हंगामा बड़ा मचाया ‘कैंडल-लाइट’ प्रदर्शन किया... लेकिन फिल्म अभिनेता या अभिनेत्रियों ने उसकी नैतिक जिम्मेदारी लेना तक गंवारा न समझा क्योंकि वो सब बेहद आधुनिक हैं और उनका कहना हैं कि ‘स्विमिंग पुल’ में कोई साड़ी पहनकर तो जायेगा नहीं और पति-पत्नि / प्रेमी-प्रेमिका का किरदार करते समय उसमें सच्ची वाली ‘फीलिंग्स’ डालने रोमांस तो दिखाना ही पड़ेगा अब ये कोई पहले वाला जमाना तो रहा नहीं कि फूल-पत्ती दिखाकर काम चला लिया जाये... सही हैं वो भी क्योंकि अब किसी को किसी भी अहसास की कल्पना करने की जरूरत नहीं सब कुछ तो उन्हें बड़ी आसानी से स्क्रीन पर मिल रहा... और सारा ठेका सिर्फ सिनेमा वालों का ही तो नहीं कि वे ही खुद को बदले... क्योंकि ढूँढने वाला तो उसे कहीं भी पा लेगा

दृश्य—०४
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श्रीमतीजी अपने नौ साल के बेटे को साथ लेकर अपनी नव प्रसूता सहेली के नवजात शिशु को देखने और उसका हाल-चाल पूछने अस्पताल गई वे दोनों अभी आपस में थोड़ी ही बात कर पाई थी कि अचानक नन्हे जीनियस ने अपना ज्ञान बघारा और उस महिला से पूछ डाला--- ‘आंटी आपकी ‘नार्मल डिलीवरी’ हैं या बेबी ‘ऑपरेशन’ से हुआ हैं’... सहेली चौंककर देखने लगी पर तभी उसकी माँ ने गर्व से कहा---‘अरे... तुम इसे कम न समझो... इसे हर बात का नॉलेज हैं... आखिर, सारा समय ‘इंटरनेट’ जो चलता हैं... इसके आगे तुम्हारी एक न चलेगी... हमारे पास तो इसे पढ़ाने या बताने का समय नहीं इसलिये हमने इसे ‘स्मार्ट फ़ोन’ देकर बहुत ‘स्मार्ट’ बना दिया हैं... और शहर के सबसे बड़े स्कूल में भी तो पढने जाता हैं... ही इज सो इंटेलीजेंट...

दृश्य---०५
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एम.बी.ए. की पढाई खत्म होते-होते ही देश के उस विख्यात ‘इंस्टिट्यूट’ में बड़ी-बड़ी कंपनियों का ‘प्लेसमेंट इंटरव्यू’ चालू हो गया और बहुत-से लड़के-लडकियों का ‘सिलेक्शन’ हो गया जो एकदम से एक बड़ी नौकरी और बड़े शहर में पहुंच गये जिनमें से कुछ लड़कों / लडकियों ने आपस में समूह बनाकर अपने लिये मिलकर ‘फ्लैट्स’ ले लिये तो कुछ आज़ादी पाकर बहक भी गये जिनके ‘पेरेंट्स’ हाई सोसाइटी को बिलोंग करते थे और इतने अधिक व्यस्त रहते कि घर तो दूर देश में भी नहीं रह पाते और उन्हें ‘लिव-इन’ जैसी आधुनिक बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो ‘मिडल’ या ‘लोवर क्लास’ वालों की तरह ‘चीप थिंकिंग’ नहीं रखते इसलिये उनके बच्चों ने यही विकल्प अपनाया... लेकिन जब ‘प्रेगनेंसी किट’ से उसका रिजल्ट ‘पॉजिटिव’ आया तो ‘पार्टनर’ ने मुंह फिराया और बिटिया ने ‘पाइजन’ खाया तब उनको समझ में आया... पर, तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।

ये सब आज के जमाने के बड़े आम दृश्य हो चुके हैं और इनको देखते-पढ़ते-सुनते हम सब इतने आदि हो चुके हैं कि अब किसी भी खबर से हमें उतनी तकलीफ नहीं होती क्योंकि जिस तरह आप एक ही चुटकुले पर बार-बार हंस नहीं सकते उसी तरह आप कितनी भी जघन्य या दर्दनाक घटना हो उतने ही पुरजोर तरीके से उस पर अपना दुःख या गुस्सा प्रकट नहीं कर सकते और शायद यही इस ‘मीडिया’ दिया जा रहा धीमा जहर हैं कि जब सुबह-शाम वो एक जैसी खबरें दिखाता तो लोग बड़े मजे से खाना खाते हुये उसे सुनते । इस तरह अनजाने में ही हम संवेदनहीन या ‘गेजेट्स’ के साथ समय बीताते हुये ‘मशीन’ बनते जा रहे और थोड़ा-सा शोक  प्रकट कर आगे बढ़ जाते वो भी अपने शब्दों में नहीं बल्कि उधार के संदेश को ‘फ़ॉरवर्ड’ कर अपना फर्ज़ अदा कर सोचते कि हम कितने सच्चे देशभक्त या मानव हैं जबकि वो नाज़ुक हक़ीकत तो दम तोड़ती जा रही जो अभी मरी तो नहीं पर ‘वेंटिलेटर’ पर जरुर पहुँच चुकी हैं ।

इसलिये अब ये जरूरी हैं कि ‘दिवस’ कोई भी हो हम उसे मनाये तो सही लेकिन ये भी सोचे कि हम अपनी तरफ से क्या बदलाव ला सकते हैं और क्या कर सकते हैं वो भी बिना दूसरों को बदले या समझाये याने कि सभी सिर्फ अपने-अपने घर-परिवार में ही कुछ कानून-नियम बनाये तो समाज तो अपने आप बदलेगा... नारी जो कि गृहस्थी की संचालक होती यदि वो अपनी संतान को बचपन से ही नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाये उसकी गतिविधियों पर नज़र रखे और उसे भेड़चाल का हिस्सा बनने से रोके तो थोड़ा ही सही पर परिवर्तन तो होगा ही... क्योंकि जो भी अपराधी या दुष्कर्मी होते आखिर ये भी तो किसी की संतान होते तो उसका दायित्व ही सही तरह से पूरा किया जाए तो ज्यादा नहीं पर कुछ तो बदलेंगे और वही हमारी जीत होगी... हम ये न सोचे कि केवल निम्न वर्ग में ही ऐसे लोग पनपते मध्यम या उच्च वर्ग भी अब इससे अछूते नहीं और तकनीक ने तो जैसे सबके हाथों में ज्ञान का कोष नहीं बल्कि एक हथियार भी थमा दिया अतः हमें गलत को गलत कहने सदा तैयार रहना चाहिये... अपने-अपने स्तर पर अपने-अपने क्षेत्र में ही इसे अंजाम दे दिया जाए तो बहुत कुछ सुधर सकता क्योंकि आख़िरकार सारी जिम्मेदारी तो ‘सरकार’ की नहीं ।

हमें ये देखना हैं कि ये जो चंद दृश्य मैंने लिखे इसमें हम अपनी सुधारक भूमिका कहाँ और किस तरह अदा कर सकते हैं बस, इतना ही कर लिया तो कम-से-कम आप खुद की नज़रों में तो दोषी न रह पायेंगे... बहुत बारीक बातें हैं जो अमूमन कमतर नज़र आती लेकिन इनके परिणाम बड़े घातक होते तो फिर किसलिए इन्हें नज़रअंदाज़ किया जाये... तो क्यों न अभी इसी समय अपने घर से ही शुभारंभ किया जाये... ‘स्त्रीशक्ति जिंदाबाद’ को मायने दिये जाये... ये छोटे-छोटे कदम तो हमें ही उठाना हैं... हैं न... हम होंगे कामयाब... एक दिन... :) :) :) !!!    
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०८ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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