रविवार, 1 मार्च 2015

सुर-६० : "कहानी : लीव फॉर... आत्मचिंतन" !!!


माय डियर मम्मा,

जब से मेरा बारहवी का परीक्षा परिणाम आया हैं मुझे न जाने क्यों लग रहा हैं कि अब तक यदि मैं हर कक्षा में प्रथम श्रेणी लाता रहा या सर्वाधिक अंक प्राप्त करता रहा तो इसमें मेरा कोई भी योगदान या उपलब्धि नहीं बल्कि इसके पीछे की वजह सिर्फ़ आप और मेरे पापा या थोडा बहुत मेरी दादीजी के रुतबे का योगदान था क्योंकि जब तक आप मेरे स्कूल की ‘चेयरपर्सन’ थी तब तक किसी एग्जाम तो क्या मैं कभी किसी टेस्ट तक मैं कम अंक नहीं लाया भले ही बिना पढ़े लिखे ही मैंने पर्चा दिया हो पर हमेशा मुझे पूर्णांक ही प्राप्त हुये और मैं समझता रहा कि ये तो मेरे आला दर्जे के दिमाग का कमाल हैं कभी एक पल भी ऐसा नहीं लगा कि इसका श्रेय किसी और को भी मिल सकता हैं पर जिस दिन हायर सेकेंडरी का रिजल्ट आया तो मैंने देखा कि मुझे हर एक विषय में जीरो अंक मिला हैं आप विश्वास नहीं करेगी मम्मी कि उस दिन पहली बार मुझे अहसास हुआ कि अब तक जो भी मुझे मिला वो आपकी वजह से मिला क्योंकि आपके पद और दबदबे के कारण हर शिक्षक आपके बिना कहे भी मुझे ही सर्वोच्च अंक देते थे पर मैं ही कभी ये स्वीकार नहीं करता था कि आपकी या पापा की पदवी ने मुझे यहाँ तक पहुँचाया हैं

आप ही सोचो ये ख्याल आता भी तो कैसे जब से मेरा जनम हुआ मैंने खुद को एक ‘शहज़ादे’ की तरह पाया यहाँ तक कि अपने आस-पास भी कभी गया तो सबको मेरी किस्मत और शक्तिशाली परिवार के प्रभाव के आगे सर झुकाता पाया ऐसा कोई न था जो हमारे यहाँ न आता हो आखिर दादीजी थी भी तो इतनी बड़ी हस्ती शाही खानदान की विरासत की डोर को गर्व से संभाले हर काम खुद ही करती थी भले ही राज-महाराजाओं का ज़माना न रहा हो लेकिन मुझे तो हमेशा यही लगा जैसे मैं कोई ‘राजकुमार’ हूँ और हर बड़े-से-बड़े रईसजादे को दादी के चरणों में शीश झुकाकर आशीर्वाद लेते पाया पर न जाने किस की नजर लग गई कि दादी अचानक हम सबको छोड़कर चली गई और फिर पापा को अचानक ही उनकी जगह लेनी पड़ी जबकि वो तो अपनी प्राइवेट जॉब में ही बड़े खुश थे उन्हें न जाने क्यों ये शानो-शौक़त ये आलीशान महल जैसा घर नहीं भाता था पर दादी के जाने के बाद न चाहते हुये भी उन्हें उनकी राजगद्दी संभालनी पड़ी

मैं एकदम अलमस्त अपनी ही जिंदगी से बेखबर जिये जा रहा था फिर से एक बार मेरी तकदीर से किसी को जलन हुई या मेरी ही नज़र लगी कि इस बार मेरे पापा जो अनिच्छा से दादी के कामकाज को देख रहे थे दिन-रात के बढ़ते तनाव को झेल न पाये और दादी के पास चले गये ऐसे समय में आपने बिल्कुल भी हिम्मत न हारी यहाँ तक कि रिश्तेदारों को आपका इस तरह एकदम से सारी रियासत की मालकिन बनना पसंद न आया तो भी आप हम बच्चों के लिये सब सहन करती रही और हमारे स्कूल की जबाबदारी भी आपके जिम्मे आ गई पर आपने हिम्मत से हर काम किया घर, रियासत, स्कूल सबका काम करती रही लेकिन पिछले साल विद्यालय की समिति के अन्य सदस्यों द्वारा बार-बार परेशान किये जाने से आपने गुस्से में आकर इस्तीफ़ा दे दिया और उसके बाद पल-पल मैंने वहां सबकी बदलती नजरें और नजरिया देखा तो भी ये न समझ पाया कि ये किसी बड़ी तब्दीली की तरफ़ इशारा हैं ये ख्याल भी मेरी बुद्धि में किस तरह आता आख़िर अब तक जो खानदान का असर मेरे दिमाग पर सवार था पर, जब बोर्ड का परिणाम आया तो मैं जैसे आसमान से बिना खजूर में अटके सीधे जमीन पर गिर गया बस, उसी दिन मुझे ये विचार आया कि इस मौके को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिये वरना कल को मेरा भविष्य ही ख़राब हो जायेगा इसलिये मैं अपने सही-गलत का आकलन कर भावी जीवन की रणनीति तय करने कुछ समय एकांत में बिताना चाहता हूँ अतः आप मुझे ‘आत्मचिंतन’ के लिये अवकाश देने की अनुमति दे दे ताकि मैं अपने पूर्वजों की जन्मस्थली जाकर अपनी जड़ों में लौटकर अपना आप पहचान सकूं और नूतन ऊर्जा के साथ आगे कदम बढ़ा सकूँ

मुझे आशा ही नहीं वरन पूरी उम्मीद हैं कि आप मेरी भावनाओं को समझ मुझे ऐसा करने की सहर्ष इज़ाजत देंगी  

आपका अपना प्यारा बेटा... ‘पप्पू’ :) !!!  
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०१ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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