बुधवार, 18 मार्च 2015

सुर-७५ : "चूको न अवसर... बार-बार न आता दर पर... !!!"

एक अवसर
सबको ही मिलता
पर, हर कोई समझ न पाता
शोर में डूबा आदम उसकी आहट न सुनता
इसलिये बड़ी ही ख़ामोशी से वो चला आता ॥
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मित्रों...,

जीवन में हर कोई सफ़लता चाहता जिसके लिये न जाने कितने जतन भी करता पर, फिर भी जब कोई मुकाम न पाता तो थक-हारकर दूसरों की काम्याबी को देख-देख कर खुद में कमियां निकालता और उनको अपने आप से अधिक भाग्यवान समझता लेकिन जब कभी एक पल भी फुर्सत में बैठकर ये सोचता कि उसने कहाँ पर कौन-सी गलतियाँ की तो उसे अहसास होता कि चाहे किस्मत कहे या उपरवाले की मेहरबानी या फिर उसकी अपनी ही मेहनत के परिणामस्वरूप उसे कहीं कोई एक या अनेक बार मौका तो मिला था जिसे या तो शायद, वो ही समझ न पाया या उस वक़्त उसने ही अपनी कमअक्ली की वजह से उसे नकार दिया था । हम सबको बचपन से ही घुट्टी में मिलाकर ये सबक सिखाया जाता कि हमें बड़े होकर कुछ तो बनना हैं तभी तो उम्र के हर पड़ाव पर ये सवाल पूछा जाता कि तुम बड़े होकर क्या बनोगे ???

उस समय हर बार हमारा जवाब कुछ नया होता जो उस दौर की हमारी पसंद हमारे मिज़ाज पर निर्भर होता इसलिये हर दफ़ा बदलता रहता फिर इसी तरह धीरे-धीरे जैसे-जैसे हमारी उमर और बुद्धि कुछ परिपक्व होती तो एक वक्त ऐसा भी आता जब हमारी आँखों के सामने हमारा ख़्वाब   थोड़ा-सा साफ़ नज़र आने लगता और अब हमारी सोच भी अधिक पुख्ता हो जाती हैं पर, सबके साथ ऐसा नहीं होता वो अभी भी भ्रमित रहते और सोचते ही रहते कि आखिर उन्हें अपनी जिंदगी से और अपने आप से क्या चाहिये और किस तरह वो उसे हासिल कर सकते हैं इसी उधेड़बुन में उनके जीवन में वो काल गुज़र जाता फिर जब होश आता तो करने के लिये कुछ भी न बचता । हमारे यहाँ तो अधिकतर ऐसा भी देखने में आता कि संतानों के जनम लेने से पहले ही उसका भविष्य उसके पालकों द्वारा निश्चित कर लिया जाता और उसके बाद उसी तरह से उसका लालन-पालन किया जाता जहाँ उसे एक पल को भी सोचने या समझने की मोहलत ही नहीं दी जाती कि वो अपनी ख्वाहिश को जान भी सके क्योंकि यही माना जाता कि एक बच्चे में ये समझ नहीं होती कि वो अपना भला-बुरा समझ सके अतः ये माता-पिता का फर्ज़ हैं कि वो ही इस दायित्व को निभाये जबकि उन्हें उसकी इस तरह से परवरिश करना चाहिये कि उसका पूरी तरह से विकास हो ताकि वो अपनी जिंदगी के भावी निर्णय स्वयं लेने के काबिल बन सके । अमूमन ऐसा होता नहीं एक परंपरागत तरीके से ही हमारे यहाँ बच्चों को पाला-पोसा जाता और उसकी सोच को अपने हिसाब से ही ढालने की कोशिश की जाती जिसमें अपने परिवार के रीति-रिवाजों के अनुसार उसको इस तरह से पाला जाता कि वो भी वही सपने देखता जो उसके जेहन में भर दिये जाते जिसमें हमारे यहाँ की एक ही लीक पर चलने वाली शिक्षा प्रणाली भी अपना रंग भर देती तभी तो वो बहुत देर बाद अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान पाता इस पर भी सबमें नहीं होती इतनी हिम्मत इतना हौंसला कि वो अपनी मर्जी का कैरियर चुन सके क्योंकि जोखिम लेने का माद्दा सबके पास नहीं होता ।

जयादातर लोगों से आप मिले तो यही पता चलेगा कि वो अपनी घर-गृहस्थी की गाडी को चलाने के लिये भले ही वो काम कर रहे हैं लेकिन उनका मन वहां रमता नहीं यदि उनका वश चले तो वो इस छोड़कर कुछ और करें पर, यदि उन्होंने ऐसा किया तो फिर उनका अपना और उनसे जुड़े लोगों का जीवन अधर में लटक जायेगा और बस, यही सोच उन्हें बढ़ा हुआ कदम भी पीछे खींचने के लिये मजबूर कर देती हैं । हम जब सफलता के शीर्ष पर पहुंचे लोगों की कहानियां पढ़े तो पाते कि वो लोग इसलिये वहां तक पहुंचे कि उन्होंने अपने दिल की सुनी और मुश्किल हालातों से डरे नहीं क्योंकि उन्हें जिद थी कि उनको हर हाल में किसी भी तदबीर से न सिर्फ अपनी तयशुदा मंजिल को पाना हैं बल्कि अपनी चाहत को भी पूरा होते हुये देखना हैं फिर कैसे न सफ़लता उनके पास खुद चलकर आये । ऐसा नहीं कि सब लोग अपने उन हालातों से संतुष्ट हो जिसमें उन्हें जीना पड़ रहा हैं लेकिन कुछ लोग उसे ही अपना नसीब समझ आगे कोई प्रयास करना छोड़ देता हैं तो कुछ सिर्फ़ रोटी-कपड़ा-मकान की पूर्ति को ही जीवन समझते और जब ये मिल जाता तो कुछ और नहीं करना चाहते लेकिन चंद लोगों के अंदर की बेचैनी उन्हें खाने-पीने या सोने नहीं देती पर, फिर भी वो लोग उसी तरह जिये जाते क्योंकि बात वही साहस की आती जो सबके भीतर नहीं होता इसी वजह से वो लोग ताउम्र एक समझौते भरी जिंदगी गुजारते जी हाँ, गुजारते हैं गर, ऐसा नहीं होता तो आज वो लोग भी वही बन जाते जो उनके अंदरूनी हिस्सों में कुलबुलाता पर, नहीं हो सका ऐसा कि वो डरकर बैठे ही रह गये अपनी चारदीवारी में जिसने उनको इस तरह कैद किया कि कोल्हू के बैल की तरह घूमते रहे सुबह से शाम और ऐसी ही हो गयी उनकी उम्र तमाम ।

हम सबको ही अपनी उस दिली तमन्ना को पूर्ण करने का एक मौकाजरुर मिलता पर, अफ़सोस कि हम लोग ही उसे लपक कर पकड़ने की हिम्मत नहीं कर पाते इसलिये तो बाद में पछताते पर, कुछ नहीं कर पाते... इसलिये हमें शुरू से ही बड़ी-ही गंभीरता से अपने साथ होने वाली हर एक घटना को जांचना-परखना चाहिये क्या पता, समय के इस समंदर में किस सीप के भीतर वो पल छिपा हो जिसमें रब ने हमारी कामना का मोती भरा हो... तो हर सीप को आजमाये... फ़िज़ूल न वक़्त गंवाये.. थोड़ी-सी तो हिम्मत दिखाये... जरा-सा जोखिम उठाये... और, अपना मनचाहा पा जाये... इससे पहले कि पाषाण बन जाये... आमीन... :) :) :) !!!       
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१८ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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