शनिवार, 14 मार्च 2015

सुर-७२ : "एकल नाटक : ०१ !!!"

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मित्रों...,

आज आप सबके सामने एक ‘सोलो प्ले’ की ‘स्क्रिप्ट’ प्रस्तुत कर रही हूँ, जिसे ‘स्कूल’या किसी भी कार्यक्रम में किसी बच्ची के द्वारा आसानी से ‘प्ले’ किया जा सकता हैं---

वेशभूषा लहंगा चुनरी ।

प्रॉपर्टी रस्सी, मोबाइल, छड़ी

निर्देश विलुप्त हो रही कठपुतली की कहानी को दर्शाना है और साथ ही कठपुतली की तरह ही अभिनय करना है ।

एकल नाट्य : ‘मैं एक कठपुतली’
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बोल री कठपुतली डोरी कौन संग बाँधी
सच बतला तू नाचे किसके लिए...

बावली कठपुतली डोरी पिया संग बाँधी
मैं नाचूँ अपने पिया के लिए...

बोल री कठपुतली...!!!

भूल गए क्या?

मुझे नहीं पहचाना क्या ?

मैं एक कठपुतली हूँ... मेरा नाम रज्जोहैं... जब सिनेमा,टी.वी. या मनोरंजन का कोई भी साधन नहीं था तब मैं ही तो थी जिसने आप सब लोगों को ना सिर्फ हंसाया बल्कि ज्ञान की और दूर देश की बातें भी बताई... कितने अच्छे दिन थे वो जब लोग गाँव-कस्बों में हमारी टोलियों का इंतज़ार करते थे सारे काम धाम छोड़कर चोपलो में इकट्ठे हो जाते थे और हम सब लोगों को मजेदार खेल दिखलाते थे... कभी इतिहास से कोई कहानी निकाल लाते तो कभी अपने आसपास से ही कोई कहानी बना लेते... जब सिनेमा आया तो हम उसके साथ भी अपना अस्तित्व बनाकर रखा क्यूंकि तब लोग सिनेमा को उतने सम्मान को दृष्टि से नहीं देखते थे ना ही हर कोई उसे देखने के लिए पैसा खर्च कर सकता था पर हमारा नाटक देखने के लिए तो किसी को भी कुछ भी अलग से नहीं करना पड़ता था नाममात्र के पैसों में हम उन्हें भरपूर खुशियाँ देते थे... और सिनेमा के जो गाने या डायलाग हिट होते उन्हें भी हु-ब-हु सबके सामने पेश कर देते थे...

मुझे आज भी याद है की एक फिल्म आई थी तीसरी कसमउसमे नौटंकी के गाने थे उसका एक गाना पान खाए सईयाँ हमारो... तो इतना जबरदस्त हिट हुआ था की एक बार मैंने भी वो कर के दिखाया था... अब जब उसकी याद आ ही गयी हैं तो क्यूँ न हम आप सबको एक बार फिर उस गीत की एक झलकी दिखा दे तब आपको पता चलेगा की भले ही हम ‘कठपुतली’ हैं पर कमाल का अभिनय, नृत्य और गीत गाते हैं... वो भी बिना किसी कैमरे और शूटिंग के तो हो जाए वही सदाबहार गीत....चलो बजाओ न....

पान खाए सैयां हमारो
सांवरी सुर्तियाँ होंठ लाल-लाल          
हाय-हाय मलमल का कुरता
मलमल के कुरते पे छीट लाल-लाल....!!!

(नाचती हैं...)

देखा हम किसी से कम नहीं... और जो मनोरंजन हम कर सकते है वो कहीं और नहीं पर आजकल के लोगों को तो हमारे लिए वक़्त ही नहीं... नयी पीढ़ी तो हमें जानती ही नहीं इसलिए आज रज्जोको ही ख़ुद आना पड़ा सब लोगों को अपनी दास्तान सुनाने के लिए... और ये बताने के लिए की हम सिर्फ नाच-गाकर ही नहीं भरी-भरकम डायलाग सुनाकर भी आपको हंसा सकते हैं.... मुझे याद आ रहा है की एक फिल्म आई थी... आनन्दजो उस दौर के पहले सुपर स्टार राजेश खन्नाकी बेहतरीन अदाकारी के साथ अपने संवादों के लिए भी मशहूर हुयी थी जिसमे एक संवाद हम कठपुतलियों के माध्यम से बोला था बड़े है ख़ास अंदाज़ में काकाजीआज वो तो नहीं रहे पर उनका कहा गया ये वाक्य मुझे याद आ रहा हैं...

बाबू मोशाय, जिन्दगी और मौत ऊपर वाले के हाथ है जहांपनाह, जिसे न आप बदल सकते हैं न मैं... हम सब तो रंगमंच की कठपुतली हैं, जिसकी डोर ऊपरवाले के हाथ बंधी है... कब, कौन, कैसे उठेगा, यह कोई नहीं जानता” ।
  
मैंने भी इसे बोलकर खूब वाह-वाही लुटी थी... पर, आज मैं इसे कुछ अलग ही अंदाज़ में आप लोगों को बताना चाहती हूँ---

“इंसानों की जिंदगी और मौत जरुर ऊपर वाले के हाथ हैं जिसे सिर्फ वही बदल सकता हैं....पर हम तो आप इंसानों के रंगमंच की कठपुतली हैं और हमारी डोर तो आप इंसानों के हाथ में हैं... आप भले ही न जाने की कब, कौन, कैसे उठेगा पर हमें तो पता हैं की कब हमारी डोर आप लोग खीच लोगे... तो बस अब मेरी डोर खीचने का समय भी आ गया तो चली आप सबकी प्यारी... दुलारी... रज्जोपर अब मुझे मत भुलाना और जब जी चाहे मुझे भुला लेना... दबंगकी ‘रज्जो’ को भले ही थप्पड़से नहीं प्यार से डर लगता हैं पर... आपकी इस ‘रज्जो’ को तो बस आप लोगों के मुह फेरने से डर लगता हैं आपके प्यार से नहीं.....आई लव यू.... आई मिस यू...... और मुझे मत भूलना’.....टा..टा.... बाय... बाय... :) :) :) !!!
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१४ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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1 टिप्पणी:

Richa Choudhary ने कहा…

Ati sundar.dil ko chhoone wali.