शुक्रवार, 27 मार्च 2015

सुर-८४ : "आई महाष्टमी की रात... मांग लो मनचाहा वरदान...!!!"

कुलदेवी
का महापूजन
परिवार का मिलन
होता एक साथ   
जब आती ‘अष्टमी’ की रात
----------------------------------------●●●

___//\\___ 

मित्रों...,

‘नवरात्र’ के आने से पहले ही माहौल में आध्यात्मिकता का पावन रस घुल जाता और जैसे-जैसे ये दिन-रात आगे बढ़ते लोग प्रतिदिन की साधना-उपासना हवन-पूजन से उतने ही ज्यादा भक्ति भाव से सराबोर होते जाते और आस-पास के वातावरण में भी उसी धार्मिकता का असर देखा जा सकता जिसके कारण अखिल ब्रम्हांड आदिशक्ति माँ जगतारिणी के चरणों में नतमस्तक दिखाई देता और हर जगह से समवेत स्वर में ‘जय माता दी’ के  जयकारे के साथ उनके पवित्र मन्त्रों के मद्धम स्वर सुनाई देते जिसकी प्रतिध्वनी से धरती-आकाश गूंज उठता कुछ लोग पुरे नौ दिन ही नियम-संयम का पालन करते हुयें माँ के अलग-अलग रूपों की पूजा करते और कुछ ‘पंचरात्र’ का निर्वाह करते तो कुछ भक्तगण अंतिम तीन दिन उनको समर्पित कर देते वैसे भी व्रत और उपवास दोनों के वास्तविक मायने एकदम अलग होते हैं अतः हर कोई अपने हिसाब से जितना कि वो खुद को साध सकता उसके अनुसार ही संकल्प लेकर पूजा-पाठ करता तो कोई केवल नाम जप का सहारा लेता तो कोई नित उनके दर्शन के लिये दूर किसी मंदिर को जाता या कोई रोज नंगे पांव उनके ठिकाने पर जाकर उनको जल चढ़ाता इस तरह जिससे भी जो कुछ बनता वो अपनी इस जगत माता के लिये करने तत्पर रहता क्योंकि सब जानते कि माँ केवल श्रद्धा भाव की भूखी हैं जिनको किसी भी कठिन तप या योग से नहीं केवल शुद्ध पवित्र मन से अपनी संतान के द्वारा उनके लिये अर्पण किये गये मनोभावों से ही प्रसन्नता होती हैं और जिसके अंतर में वो कोमल भावनायें होती उसे किसी भी तरह के साधन की जरूरत नहीं हैं

आज का दिन तो सबके लिये सर्वाधिक पुण्यदायी हैं क्योंकि शायद ही कोई परिवार हो जहाँ पर की घर के सारे सदस्य एकत्रित होकर अपने खानदान की कुलदेवी की वार्षिक पूजा न करते हो क्योंकि इसी से तो घर के धन-धान्य के भंडार भरे रहते कोने-कोने में शांति का निवास और सबके चेहरों पर खुशहाली दिखाई देती सभी की कोई न कोई कुलदेवी होती जिसे पूजने दूर-दूर रहने वाले पारिवारिक सदस्य भी इस दिन के लिये दौड़े चले आते इस तरह ये केवल एक औपचारिकता का निर्वहन नहीं बल्कि हमारी संस्कृति और परम्परा का पीढ़ी दर पीढ़ी चलायमान हैं और यही छोटे-छोटे रीति-रिवाज़ होते जो सकल परिवार को एक सूत्र में बांधे रखते अतः माँ का आगमन और विसर्जन दोनों ही हमारे लिये पुण्यदायिनी होता क्योंकि उनकी विदा करते समय भी सबके मन में यही कामना रहती कि माँ फिर से आये और हम सब इसी तरह एक साथ उनके चरणों में बैठकर उनके निमित्त आहुति देते हुए उनके पुनरागमन का निवेदन करें आज प्रातःकाल से ही हर एक घर में आठवाई हलवा का प्रसाद बनाकर उनको भोग लगाया जाता और रात्रि में जागरण कर उनकी आराधना की जाती कि वो सबके मध्य स्नेह भाव बनाये रखे जिससे कि सब इसी तरह फिर मिल-जुलकर अपनी मातारानी का आहवान करें

नवरात्र में यूँ तो हर दिन के अलग-अलग देवी होती जैसे कि अष्टमी तिथि की देवी ‘महागौरी’  को माना गया हैं लेकिन ऐसी भी मान्यता हैं कि प्रथम तीन दिन जगतजननी माँ दुर्गा, अगले तीन दिन धन की देवी महालक्ष्मी और अंतिम तीन दिवस में विद्या की देवी माँ सरस्वती के रूपों की पूजा की जाती हैं... जिससे की भक्तगण उनसे शक्ति, ऐश्वर्य और ज्ञान प्राप्त कर अपना जीवन सफ़ल बना सके तो फिर सभी लोग आज रात माँ से निर्मल बुद्धि प्रदान करने की मनोकामना व्यक्त करें जिससे कि जीवन की गाड़ी को सहजता से पार लगाया जा सके... जय माता दी... :) :) :) !!!
____________________________________________________
२७ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: