रविवार, 22 मार्च 2015

सुर---७९ : 'विश्व जल दिवस... किस तरह हो सार्थक...???"

कहते सब
जीने के लिये
प्रेमहैं सबसे जरूरी
पर, जी सकता हैं इंसान
प्यार के बिना
लेकिन...
नहीं जी सकता
कोई भी पानीके बिना...॥
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मित्रों...,

चंद भविष्य की झलकियाँ :
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दृश्य__०१ : (सन् २०२५ - पारिवारिक परिदृष्य) रीना अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता एवं अन्य परिजनों से मिलने मुंबई से उज्जैन अपने मायके जाना चाहती हैं, पर जलसंकट के कारण वे नहीं चाहते कि रीना अपने घर आये।

दृश्य__०२ : (सन् २०३० - राजनीतिक परिदृष्य) पानी का चुनाव पर असर नेताओं ने वादा किया कि यदि जनता उन्हैं वोट देगी तो वे उन्हैं पानी देंगे इस तरह पानी ने चुनाव में मुख्य भूमिका निभाई।

दृश्य__०३ : (सन् २०३५ - पारिस्थितिकीय परिदृष्य ) सभी पेड़-पौधे एवं पषु-पक्षी जलसंकट के कारण समाप्त। जंगलों, वनों में वनस्पति एवं जनजीवन का अंत।

दृश्य__०५ : (सन् २०४० - भारतीय परिदृष्य) पानी 50 रू. लीटर आम आदमी की पंहुच से बाहर और एक व्यक्ति ने पानी के लिये दूसरे की हत्या की।

दृश्य__०४ : (सन २०४० विश्व परिदृष्य) अमेरिका ने कनाडा पर जल के लिये आक्रमण कर दिया हैं और कनाडावासी अपने तालाबों को बचाने के लिए अमेरिका से संघर्ष कर रहैं हैं ।

ये महज कल्पना या भयभीत करने करने वाला लेखन नहीं बल्कि चंद ऐसे खतरनाक और कठोर सच्चाई से भरे वास्तविक दृश्य हैं जिनके माध्यम से आने वाले समय में जल की कमी के प्रभाव को हर एक परिदृश्य में समझने का एक प्रयास किया हैं जो अभी तक हुआ तो नहीं लेकिन कभी भी ऐसी स्थिति आ सकती हैं जिसे अभी भी रोकना हमारे वश में हैं तभी तो २२ मार्च को विश्व जल दिवसघोषित किया गया हैं । ताकि लोग न सिर्फ जलसंकट के प्रति सचेत  और जागरूक हो बल्कि उसके लिए अपना जो कुछ भी हो सकता हैं वो योगदान दे ताकि हम सब अपनी संतति को ही नहीं बल्कि सारे ब्रम्हांड को बचाने के पुनीत यज्ञ में अपने कर्मो की आहुति देकर एक सच्चे नागरिक बन सकें क्योंकि ये सब बहुत दूर नहीं बल्कि बड़ी जल्द ही देखने में आ सकता हैं और बहुत सी जगह तो नज़र आने भी लगा हैं । आज भी हमारे देश में बहुत-से स्थानों पर महिलाओं को जल लेने के लिए ६-७ किमी जाना पड़ता हैं और बहुत से हिस्सों में तो इसके लिये रोज लड़ाई-झगड़ा होना आम बात हैं अतः अभी भी देर नहीं हुई कि हम इसके विषय में बात करने के स्थान पर कुछ काम भी करें क्योंकि नये जल संसाधनों को स्थापित करना तो नाममात्र का हैं ही साथ प्राकृतिक जलस्त्रोत भी जिस तेजी से खत्म हो रहे हैं वो चिंताजनक हैं जिसकी वजह से अस्तित्व संकट भी पैदा हो गया हैं ।

चंद विश्वप्रसिद्ध उक्तियां’ :
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१.    अगली सदी में युद्ध पानी को लेकर होंगे।
           इस्माइल सेरागेल्डिन' (वाइस प्रेसीडेंट, विश्व बैंक 1995)

२.    हजारों लोग प्यार के बगै़र जिन्दा रहैं हैं, पर पानी के बिना एक भी नहीं।
          डब्ल्यू एच ऑडेन' (एंग्लो अमेरिकी कवि)

३.    जो भी व्यक्ति जलसंकट का समाधान करेगा, उसे दो नोबेल पुरूस्कारमिलेंगे। एक विज्ञान के       लिए और दूसरा शांति के लिए।
          जॉन.एफ. केनेडी'  (पूर्व अमेरिकी राष्टपति)

जलसंकटके समाधान के बारे में मेरा सोचना हैं कि हम नागरिकों के अपने प्रयासों के अलावा  यदि सरकार इस पर कड़ा नियंत्रण लगाये तो इसे पूरी तरह हल किया जा सकता हैं क्योंकि अभी भी स्थिति एकदम नियत्रंण के बाहर नहीं हैं। सरकार अगर जलप्रदाय पूरी तरह अपने हाथ में रखें और सभी लोगों को सुबह और शाम सिर्फ एक-एक घंटा जल वितरित करे, जिस तरह कि वह बिजली के लिये करती हैं तो लोग पानी का दुरूपयोग नहीं कर पायेंगे। लोग के घरों मे जेटपंप और टयूबबेल आदि साधनों से जो सहजता से और आवश्याकता से अधिक पानी उपलब्ध हैं, तथा वे लोग जिनके घरों मे स्विमिंग पुल, शोवेर, झरने और पानी के दुरूपयोग के जो अनावश्यक साधन हैं उन्हैं पूरी तरह प्रतिबंधित कर देना चाहिये । सरकार को अमीर-गरीब का भेदभाव किये बिना जल वितरण अपने द्वारा करना चाहिये क्योंकि यदि असंतुलन रहा तो इसे संकट को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकेगा । जिस तरह भूटानविश्व का प्रथम देश  हैं जिसने धुम्रपान एवं तंबाकू के विक्रय पर प्रतिबंध लगाया है और न्यूजीलैंडविश्व  का प्रथम देश हैं, जिसने ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण हैतु कर लगाया हैं और हमारे यहाँ तो तमिलनाडु सरकारने 2004 में जल संरक्षण के लिये एक आदेश जारी किया कि तीन महीने के अंदर सारे शहरी मकानों और भवनों की छतों पर वर्षा जल संरक्षण’ (‘वजस’) यंत्रों का लगाया जाना अनिवार्य हैं । सारे सरकारी भवनो को भी इसका पालन करना पड़ा पूरे राज्य में इस बात को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया साथ ही यह चेतावनी भी दी गई कि यदि नियत तिथि तक इस आदेश का पालन नहीं किया गया तो सरकार उन्हैं दी गई सेवाएं समाप्त कर देगी। साथ ही दंडस्वरूप नौकरशाहों के पैंसे से ही इन संयंत्रों को चालू करवाया जायगा। परिणाम चैंकाने वाले और सुखद थे अगले एक साल के अंदर ही तमिलनाडु के लगभग हर भवन मे वजसलग चुके थे कुओं मे पानी का स्तर बढ़ चुका था, खारापन भी कम हो गया था।

कुछ समाधान :
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जल-प्रदाय केवल नगरपालिका द्वारा लोगों के निजी जेट, टयूबवेल आदि पर प्रतिबंध।
मकानों की सिंचाई मे पानी अधिक खर्च होता हैं अतः बारिश के मौसम में ही भवन निर्माण किया जाये।
स्विमिंग पुल, वाटर पार्क एवं पानी का व्यवसायीकरण प्रतिबंधित किया जाये।
कुयें, बावड़ी, नहर, तालाब एवं हैंडपम्प बढ़ाये जाये जिससे कि खेती की जा सके ।
नहाने एवं कपडे़ धोने का जल एकत्रित कर उसका पुर्नउपयोग किया जाये।
समुद्री खारा पानी नेनोफिल्टर द्वारा पीने योग्य बनाया जाये।
अन्य देषों की तरह भारत में भी टायलेट पेपरके उपयोग को बढ़ावा दिया जाये जब हमारा देश हर बात में पश्चिम का अंधानुकरण कर रहा हैं तो इसमें क्या बुराई हैं पानी की बचत ही है।
अगर स्पंज बाथ से काम चले तो पानी बचाया जाये और सभी बच्चों को एक साथ नहलाये जाये।
सरकार सभी सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ हर व्यक्ति जो कि इस देष का नागरिक हैं बाध्य करें कि वो केवल उतना ही पानी खर्च करें जितना औसतन एक व्यक्ति के लिये आवश्यक होता है।
अधिक जल उपयोग पर रोक लगाये और दंड का प्रावधान भी किया जा सकता है।

सरकार यदि इस तरह से सभी जगह आदेश जारी करे और सख्ती से उसका पालन किया जाय तो कुछ समय बाद ही सही पर इसके सुखद परिणाम देखने को मिलेंगे। निजी कंपनियां जो पानी का व्यवसाय करती हैं उनके लिये भी कुछ नियम निर्धारित किये जाये सिर्फ सोचने से इस समस्या को हल नहीं किया जा सकता न केवल जन समुदाय ही इसमें पहल कर सकता हैं। सरकार को भी आगे आना चाहिये और इस तरह के आदेश जारी करने के पूर्व जल-प्रदाय अपने हाथ में रखना चाहिये। इसमें कुछ समय एवं खर्च अवश्य आयेगा पंरतु इससे जो परिणाम मिलेगा उसकी तुलना में यह आर्थिक खर्च कुछ भी नहीं। विशेष प्रशिक्षण, शिविर, अभियान का आयोजन करना चाहिये, पोस्टर, पम्पलेट आदि का वितरण करना चाहिये जिनमें की पानी बचाने के उपायों का वर्णन हो । सरकार ज्यादा अच्छे तरीके से इस पर अंकुश लगाकर जनसमुदाय को मजबूर कर सकती हैं कि वह न केवल पानी बचाये वरन् नये संसाधनों के बारे में भी सोचे और साथ ही साथ सरकार द्वारा उन व्यक्तियों को पुरूस्कृत करना चाहिये जो इस कार्य में उल्लेखनीय सहयोग करते हैं क्योंकि जब-जब भी किसी भी देश की सरकार ने इस तरह का आदेश पारित किया हैं उसका देशव्यापी असर हुआ है ।
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२२ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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