शुक्रवार, 6 मार्च 2015

सुर-६५ : "आधी नहीं... पूरी आबादी की जन्मदात्री... 'नारी'...!!!"

कुदरत
ने बख्शी हैं
अद्भुत पारसमणि 
काबिलियत ‘नारी’ को
तभी तो जिस चीज़ की छू ले
पल में बना देती अनमोल उसको
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मित्रों...,

हमारे धर्मग्रन्थों में ‘स्त्री’ को ‘प्रकृति’ की संज्ञा देना ही अपने आप में ये साबित करता हैं कि लिखने वाले ने उसके भीतर छिपे हुये सहेजने-संवारने के उस अद्भुत कौशल को पहचान लिया था जिसकी वजह से उसका हाथ लगते ही सभी यहाँ-वहाँ बिखरी चीजें जिनके कारण एक पल को वो जगह और सबकुछ अस्त-व्यस्त नज़र आता हैं दूसरे ही पल सुव्यवस्थित और सजा-संवरा दिखने लगता हैं एक स्त्री के अनेक गुणों में से ये भी उसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता हैं जिसने उसे अपनी एक अलग पहचान दी हैं और इस कारण अब तो हर स्थान में उसको वरीयता दी जाती हैं क्योंकि सभी जानते एवं मानते हैं कि यदि इस कार्य को एक औरत के सुपुर्द किया जायेगा तो आदमी निश्चिंत होकर सो सकता हैं क्योंकि जब भी वो कोई काम अपने हाथ में लेती तो उसे सही ढंग से पूरा कर के ही दम लेती इस वजह से आज के समय में हम देखते हैं कि न तो कोई विभाग, न ही कोई क्षेत्र और न ही कोई रोज़गार ऐसा बचा जहाँ पर कि ‘स्त्री’ ने सशक्त तरीके से अपनी आमद दर्ज न करवाई हो और ये लिखते हुये मुझे बहुत पहले कही पर पढ़ी गयी ‘औरत’ की इस क्षमता व बुद्धिमता को दर्शाती एक छोटी-सी लेकिन अपने में उतना ही बड़ा संदेश छिपाये एक प्रेरक कथा याद आ रही हैं---
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एक I.A.S. टॉपर लडकी से साक्षात्कार में पूछा गया कि --- ‘प्रशासनिक सेवा में लडकी बेहतर है या लड़का’ ।
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उसका जवाब था --- ‘लडकी’।
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पुछा गया --- क्यों ?
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तब उसने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा---
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“जब भगवान् ने स्वयं धन के लिए लक्ष्मी’, विद्या के लिए सरस्वतीऔर शक्ति के लिए दुर्गा माँको इतने ऊंचे पोस्ट पर बैठा रखा है तो फिर हम तो ‘इंसान’ हैं” ।
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इसे पढ़कर सीधे-सीधे हर कोई इतनी सरल बात को समझ सकता हैं कि किसलिये हर जगह, हर काम में उसे प्राथमिकता दी जाती हैं जबकि अमूमन बहुत-से लोग इसी बात के लिये उसका भी मज़ाक उड़ाते हैं और उसमें खामी ढूँढने का प्रयास करते हैं क्योंकि वो लोग आसानी से उसकी तरक्की बर्दाश्त नहीं कर पाते तो फिर उस पर ऊँगली उठाकर उसे कमतर बताने का अवसर तलाशते रहते हैं । अपने आपको हर तरह से सिद्ध कर देने के बाद भी उस पर इस तरह के इलज़ाम भी आते रहते हैं कि वो अपनी खुबसूरती और नज़ाकत का फायदा उठाकर आगे बढती रहती हैं यहाँ तक कि आये दिन इस ‘आभासी दुनिया’ में भी मैंने अनेक पुरुष मित्रों की इस संदर्भ में कई ‘पोस्ट’ / ‘स्टेटस’ पढ़ी जिनमें ये शिकायत दर्ज रहती कि भले ही महिलाएं कुछ भी अनाप-शनाप लिखे बस, अपनी सुंदर-सी तस्वीर लगा दे तो सारी महफ़िल लुट लेती लेकिन मेरे वही काबिल दोस्त भूल जाते कि उस छायाचित्र पर सबसे ज्यादा ‘लाइक’ / ‘कमेंट्स’ पुरुषों के ही होते मतलब कि आपकी ही कमजोरी की वजह से ऐसी स्थिति निर्मित होती हैं याने कि गर, कोई ऐसा कर भी रही हैं तो आप भी तो खुद को रोक नहीं पा रहे तो इसमें गलती किसकी ये सोचना चाहिये न कि इस तरह से अपने मन की बात लिखकर खुद की ही झेंप को छुपाने की कोशिश करना चाहिये । आपको किसी की भी ऐसी मामूली ‘पोस्ट’ पसंद नहीं आती तो उसे नज़रअंदाज़ कर देना चाहिये न कि इस तरह दूसरे का मजाक बनाकर या उसे अपने से निम्न बताकर खुद को अपने ही मुंह मिया मिठ्ठू बनना चाहिये क्योंकि मुझे तो इस ‘आभासी-दुनिया’ में भी ये ही नज़र आया कि जो भी ‘महिला’ या ‘पुरुष’ वाकई में इस मंच का सार्थक तरीके से सदुपयोग कर रहे हैं लोग उनकी खुले दिल से तारीफ़ कर रहे हैं और यदि न भी कर रहे हैं तो आपको अपने आप पर विश्वास होना चाहिये कि आप सही दिशा में जा रहे हैं फिर कोई कुछ भी करें आपको उसकी परवाह करने की जरूरत नहीं । किसी –किसी को तो मैंने ये भी लिखते पाया कि महिलाओं को तो कलम पकड़ना ही नहीं आता न ही लिखना आता या उसमें साहित्यिक लेखन की क्षमता नहीं अरे, भई इसका आकलन तो ‘साहित्य जगत’ करेगा ये आपका सरदर्द नहीं आप तो बस, अपना काम किये जाओ इससे यही पता चलता कि ये दुनिया हो या वो दुनिया ‘औरत’ की काबिलियत को लोग आसानी से स्वीकार करते नहीं ।

‘फेसबुक’ पर भी यदि ‘महिलायें’ पुरुषों की अपेक्षा अधिक सराही जा रही हैं या उनकी मित्रता का दायरा बढ़ रहा हैं या फिर उनको अपना मुकाम हासिल हो रहा हैं और आपका मानना हैं कि इसमें यदि कहीं उनका ‘स्त्री’ होना ही उनके पक्ष में जाता हैं तो इसमें सारा दोष आपके ही माथे पर आयेगा क्योंकि उसे बढ़ावा देने वाले तो आप ही हैं जो उसे उसकी किसी अनुपम ‘कला’ की वजह से नहीं बल्कि उसके चेहरे की चमक देखकर अपना दोस्त बना रहे हैं... इसलिये मैं तो यही कहना चाहूंगी कि जहाँ भी जिस भी जगह ‘औरत’ ने अपनी काबिलियत से अपनी सशक्त पहचान बनाई हैं अपना कोई मुकाम हासिल किया  हैं तो सिर्फ अपने सौंदर्य से नहीं बल्कि अपने दम पर किया हैं... उसे कुदरत ने  बहुत सारी नेमतें बख्शी हैं और जिनका इस्तेमाल वो जब अपनी जेहनी ताकत के साथ करती हैं तो फिर उसे सफ़लता के शीर्ष पर पहुँचने से कोई भी रोक नहीं सकता... इसलिये कुतर्कों या ताकत से उसे छोटा बताने की बजाय उसके कदम से कदम मिलाकर चलें जिस तरह कि वो आपके कंधे-से-कंधा मिलाकर चलती हैं... फिर देखें किस तरह एक आपका और दूसरा उसका हाथ मिलकर सारी दुनिया अपनी मुठ्ठी में करते हैं... उसे ये कमाल हासिल हैं कि वो हर अस्त-व्यस्त चीज़ को व्यवस्थित कर सकती हैं और आपकी आदत कि आप किसी भी चीज़ को यथास्थान नहीं रख सकते तो फिर जब दोनों एक साथ हो तो सब कुछ अपने आप ही जम जाता फिर सब बोलो साथ मिलकर... ‘स्त्रीशक्ति जिंदाबाद’... करती घर-संसार आबाद... :) :) :) !!!     
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०६ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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