मंगलवार, 17 मार्च 2015

सुर-७४ : "नहीं मुश्किल जीना... गर, आ गया जीना...!!!"

वैसे तो...
रहने को
सारी धरा भी कम हैं
.....
उड़ने को
सारा आकाश भी कम हैं
.....
नहीं तो...
दो गज जमीन में
हर एक का ठिकाना हैं
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मित्रों...,

यूँ तो जीने को बेहिसाब संपति और असबाब भी कम हैं लेकिन जिस सुकून और राहत की लोग तलाश करते हैं वो कभी-कभी तो एक फकीर के पास भी मिल जाता नहीं तो तमाम सुख-सुविधाओं से घिरे होकर राजमहल में रहने वाला बादशाह भी बेचैन रहता ये सबका अपना-अपना अलहदा मिज़ाज और दायरा होता जिसमें वो अपनी खुशियाँ तलाश लेता हैं क्योंकि किसी को कुछ भी मिलना या हासिल करना कुछ तो उसके मुकद्दर और कुछ उसके अपने कर्मों पर निर्भर करता लेकिन सब कहाँ इस मर्म को समझ पाते । तभी तो चंद सिर्फ अपनी किस्मत या हाथ की लकीरों को लेकर बैठे रह जाते या फिर नजूमियों के चक्कर काट उनका भाग्य बदलते और अपने को कोसते रहते और कुछ ऐसे भी होते जो इन शब्दों के मायने भी नहीं जानते केवल अपने काम पर भरोसा कर अनवरत अथक परिश्रम करते रहते फिर जो भी मिल जाता उसे अपने मेहनत की ख़ालिस कमाई मानकर सर नवाकर ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन गुज़ारते । इनमें से कुछ ऐसे भी होते जिनके लिये तकदीर या कर्म की आवश्यकता ही नहीं न ही इसे सोचने की कभी जरूरत पड़ती वो तो ऐसे खुशनुमा माहौल में पलते कि बिना हाथ हिलाये ही सब उनके आस-पास हाज़िर होता लेकिन जो असली चीज़ हैं ‘शांति’ वो तो सिर्फ़ उसके पास होती जिसे अपने सीमित साधनों और जो भी उसे मिला हैं उसमें ही खुश रहना आता हैं ।

इस हुनर में सब माहिर नहीं होते न ही किसी को इसे सीखाया जा सकता हैं क्योंकि ये तो आंतरिक अनुभूति होती जो किसी को आसमान में चमकते चाँद को देखकर मिल जाती तो किसी को बाग़ में खिले फूलों को देखकर तो किसी को आज़ाद उड़ते परिंदों को देखकर वो आनंद मिल जाता तो किसी का मन सूखी रोटी पाकर ही मगन हो नाचने लगता तो किसी को हीरे-मोती जवाहरात मिलने पर ही ख़ुशी होती याने कि ये अहसास सबका जुदा-जुदा हैं आप ऐसा कोई मुगालता नहीं पाल सकते कि फलां को इस चीज़ को पाकर संतुष्टि हो जायेगी । जो भूख से तड़फ रहा हो यदि आप उसके सामने बेशकीमती नगीनें रखकर बताये कि ये दुनिया के सबसे नायाब रत्न हैं तो उसके चेहरे पर ख़ुशी तो दूर हल्की-सी मुस्कान भी नहीं आयेगी क्योंकि उसे तो सिर्फ दो निवाले खाकर ही तृप्ति मिलेगी न कि इन सबकी चमक को देखकर इसी तरह जिस जौहरी को अनमोल कीमती पत्थरों की तलाश हो उसे कितने भी स्वादिष्ट पकवान या मिष्ठान परोस दे उसे रुचिकर नहीं लगेंगे क्योंकि उसके अंदर जो बेकली हैं वो उसी से मिटेगी जिसे वो पाना चाहता हैं । बड़ा ही अजीब फलसफ़ा हैं चार दिनों की इस लंबी सी जिंदगी का जो हर एक का अपना अलहदा हैं और उस पर अक्सर ये भी देखने में आता कि अगला दूसरे पर अपनी सोच को थोपना चाहता ये बिना जाने समझे कि उसका मन उसकी अंतरात्मा क्या चाहती हैं यही तो हैं जिसकी पूर्ति करना अलग-अलग रूचि और समझ वालों को नामुमकिन-सा लगता हैं ।

यूँ तो सबकी आर्थिक-सामजिक स्थितियां भिन्न-भिन्न होती लेकिन हर तरह की परिस्थिति में रहने का एक मूलमंत्र यही समझ में आता कि जो भी आपको कुदरतन प्राप्त हुआ हैं आप उसी में अपने आपको समायोजित करते हुये न सिर्फ रहना सीख ले बल्कि अपनी अंदर की हर तरह की बेचैनियों को भी शांत करते हुये उनका आदि बना ले फिर देखें कैसे नहीं राहत का अनुभव करते... इसका मतलब ये कतई नहीं कि आप अपनी स्थितियों को बेहतर बनाने का प्रयास न करें पर उसके कारण अपने आपको इतना हलकान या परेशान न करें कि जो आपके पास हैं आप उसको भी न तो भोग पाये और न ही उसका वो आनंद ले पाये जो लेना चाहिये था और जब जिंदगी की शाम आये तो ये महसूस हो कि जो भी किया निरर्थक रहा जिसकी वजह से आप अपने आस-पास की चीजों का स्वाद भी नहीं ले पाये... यहाँ तो कई ऐसे भी हैं जो पिंजरे में कैद रहकर भी मधुर गीत गाते और बेड़ियों में ही झंकार ढूंढ लेते जब वो जान जाते कि इससे छुटकारा नहीं ऐसे ही जीना हैं तो फिर जीना ही तो सीखना पड़ेगा न वरना रोने से किसने रोका हैं रोते रहें फिर आंसू खत्म हो जाये तो पत्थर-सी आँखें लिये मूरत बनकर बाकी की उमर बीताकर चले जाये... कुछ ऐसे हालातों में जीते कि सांस लेना भी दूभर होता लेकिन उनके मुस्काते चेहरे को देखकर आप ये यकीन नहीं कर पायेंगे कि जिस माहौल में आपका दम घुटता वहां वो सचमुच मौज करते क्योंकि वो सच्चाई को स्वीकार कर चुके होते हैं इसलिये जीना भी आ ही जाता जिसे कोई ताउम्र जीकर भी नहीं जान पाता ।

सच... बड़ा ही गोलमाल हैं इस दुनिया में प्रकृति को भी देखो तो यही कहती कि काँटों के संग रहकर जीना आ गया तो गुलाब सा खिलना भी अपने आप आ जायेगा... कीचड़ से समझौता कर लिया तो कमल सी जिंदगानी की सौगात मिल जायेगी.... मतलब कि जैसा भी जो कुछ भी आपको मिला हैं या आपने अपने काम से खुद ही पाया हैं बस, उतने में ही अपना सुख तलाश लो फिर देखो कैसे आपकी जिंदगी का गीत सुर-ताल में धीमे-धीमे बजता हैं... आपको ही नहीं आपके चारों तरफ के लोगों को भी ख़ुशी देता हैं... बस... यही तो हैं जीने का सलीका कि हर हाल में हंसते रहो... हर बात में खुश होने की कोई भी वजह बना लो... सच... और कुछ नहीं... :) :) :) !!!      
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१७ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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