शनिवार, 7 मार्च 2015

सुर-६५ : "आधी नहीं... पूरी आबादी की जन्मदात्री... नारी---०६ !!!"

नारी,
तुम केवल ‘नारी’ हो
जीती-जागती
सक्षम, सबल और
अहसासों से भरी हुई ‘मानव’
.....
लेकिन,
बोल बोलकर
रूपमति, स्वप्नसुंदरी  
ये जग भरमाता तुमको
दूर करता ख़ुद की पहचान से
तो तोड़ दो ये खूबसूरती के झूठे मानक  
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मित्रों...,

रूप, हुस्न, सौंदर्य, सुंदरता, खुबसूरती... यदि एक शब्द में इनको अभिव्यक्त किया जाए तो वो होगा ‘स्त्री’ जो धीरे-धीरे इन सबका पर्याय ही बन गई पता नहीं कब से ये सिलसिला आरंभ हुआ जिसने उसके अंतर्मन में भी इस तरह अपनी गहरी जड़ें जमा ली कि वो भी खुद को इसके परे देखना नहीं चाहती और यदि कोई उसकी तारीफ़ न करें तो न जाने क्यों उसे ख़ुद में अहसास-ए-कमतरी होने लगता जबकि ये उपरी आवरण या जो भी नज़र आता वो कुदरत की ही देन हैं जिसकी वजह से ‘नर-नारी’ की बाहरी पहचान होती हैं कभी-कभी लगता कि ये भी एक तरह की जंजीर या बेड़ियाँ हैं जो नज़र तो नहीं आती लेकिन उन्होंने बड़े कसकर जकड़ रखा हैं हर एक औरत को और साथ ही जन्म दिया ‘सौंदर्य प्रतियोगिता’ और ‘सौंदर्य प्रसाधन’ के एक विशाल वैश्विक बाज़ार को जिसने भले ही उसे इस अखिल ब्रम्हांड में मान-सम्मान तो दिलाया लेकिन कभी गंभीरता से सोचे तो अहसास होगा कि कुछ छीन भी तो लिया हैं जो मिला वो तो सबको दिखाई दे रहा हैं पर, उसके बदले में जो चला गया वो सिर्फ़ किसी एक ‘सुंदरी’ को नहीं बल्कि सभी को भोगना पड़ रहा हैं क्योंकि इन सबके कारण संपूर्ण स्त्री जात पर एक तरह का अनचाहा दबाब भी बन गया कि वो हमेशा ही सबको सुंदर नज़र आये और इस तरह इन सौंदर्य प्रतिमानकों की शमा ने हर एक नारी को इसके इर्द-गिर्द परवाने की तरह नाचने कब मजबूर कर दिया उसे भी न पता चला जो न सिर्फ़ घातक हैं बल्कि एक बड़े वर्ग के लिये जीवन-मरण का प्रश्न भी बनता जा रहा हैं

स्त्री की कोमलता, नज़ाकत, अदायें, अंग-प्रत्यंग सब कुछ ईश्वर का बनाया हुआ हैं जिसमें उपमाओं के जुमले जोड़कर कि वो किस तरह के होना चाहिये या उन्हें किस तरह से निखारा जा सकता हैं जिससे कि वो सर्वाधिक खुबसूरत नज़र आये और इन सबके लिये अलग-अलग अलंकारों की भी बेड़ियाँ तैयार की गई और फिर इस तरह मीठी-मीठी बातें कर उसे इन प्रकृति प्रदत्त नैन-नक्शों को संवारते रहने की ख्वाहिशों में बड़ी ही चतुराई से उलझाकर रख दिया गया हैं इसका एक और फ़ायदा ये भी हुआ कि उसका सभी दूसरी महत्वपूर्ण बातों एवं मसलों से ध्यान हट गया साथ ही औरतों के मध्य भी एक अनजानी प्रतिस्पर्धा भी चालू हो गई जिसने सबको एक-दूसरे से सुंदर दिखाई देने की होड़ में इस तरह मशगूल किया कि उसने इसी में अपनी ख़ुशी ढूंढ ली लेकिन यदि वो इस जाल से निकल जाये तो अपने अंदर की सारी ऊर्जा और ताकत सिर्फ अपने ध्येय को प्राप्त करने में लगा देगी और तब उसे ये सब बेमानी नज़र आने लगेगा जिसकी शुरुआत उसे ही करनी होगी तब ही वो जान पायेगी कि ये प्राकृतिक ‘सुंदरता’ जो भी उसे मिली हैं वो पर्याप्त हैं जिसे एक सीमा तक ही परिवर्तित किया जाये तो ठीक हैं लेकिन सिर्फ उसी काम में लगे रहना या खुद को सजाते रहना तो अपने आप से दूर होना हैं क्योंकि ये कृत्रिमता कहीं न कहीं उसके नैसर्गिक कोमल संवेदनाओं को भी तो रंगती होगी न जबकि ‘प्रकृति’ को देखो वो अपने आप में कितनी मुकम्मल हैं

आजकल तो ‘हॉट’ / ‘सेक्सी’ जैसी अश्लील उपमाओं से भी उसका श्रृंगार किया जाता और मैंने देखा हैं कि बहुत-सी कमसिन बालायें जो नादान हैं वो इसे सुनकर खुश होती हैं जबकि उन्हें ऐसा कहने वालों की मानसिकता पहचानकर उनसे दूरी बना लेना चाहिये जो कि उसे इस तरह की नज़रों से देखते और ऐसा ही समझते हैं शायद, इसका एक बड़ा कारण सौंदर्य प्रतियोगिताओं की विजेता और फ़िल्मी जगत की अभिनेत्रियाँ व मॉडल्स भी हैं जो अपने पेशे का हवाला देकर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़कर इस तरह की बातों को बढ़ावा देती हैं और जब नवयुवती की आदर्श या ‘रोलमॉडल’ वो ही ‘नायिका’ हो तो भला वो इस तरह की संज्ञा से नवाजे जाने से ख़ुशी का इज़हार क्यों न करें अतः हर महिला को इन सबका भी विरोध करना होगा और दुनिया को बताना होगा कि उसकी जन्मजात सुंदरता उसकी अंदरूनी ऊर्जा हैं जो उसे घर-बाहर सब जगह खुद को साबित करने के साथ-साथ हर एक काम को पूर्ण लगन और समर्पण के भाव से करने की प्रेरणा देती हैं न कि वो किसी के मनोरंजन का साधन हैं । जो कदम स्त्री स्वयं उठा सकती हैं और आगे बढ़कर बदलाव ला सकती हैं उसे खुद उसकी शुरुआत करनी ही चाहिये... इसके लिये सामने आकर अपनी बात कहना चाहिये... कि मैं कोई शोकेस में सजी गुड़िया नहीं न ही सिर्फ एक मूरत या किसी की कल्पना हूँ... मैं सिर्फ एक नारी... सिर्फ़ नारी... जीती जागती... तब ही सार्थक होगा ये नारा... ‘स्त्री शक्ति जिंदाबाद’... :) :) :) !!!
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०७ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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