मंगलवार, 24 मार्च 2015

सुर-८१ : "लघुकथा : रोज मनाये... नवरात्र...!!!"


नवरात्र के प्रारंभ होते ही नन्ही-मुन्नी रिया-प्रिया बड़ी खुश हो गयी क्योंकि वे जानती थी कि इन नौ दिनों सिर्फ उनके दादा-दादी और परिवार ही नहीं बल्कि पूरा मोहल्ला उनको बड़ा प्यार करेगा और दावतें दे देकर अपने घर बुलायेगा जबकि बाकी दिन तो उनकी माँ के सिवा कोई उन्हें लाड़ करना तो दूर बात करना भी पसंद नहीं करता बस, दुत्कारता और बातें सुनाता रहता जैसे उन दोनों ने पैदा होकर कोई गुनाह कर दिया हो उनके दादा-दादी और पापा उनकी माँ को भी बातें सुनाते रहते जबकि वही लोग सारी दुनिया को ज्ञान दान कर खुद को महान शिक्षक कहलाते  लेकिन घर के अंदर आते ही जैसे उस विद्या को ही वही छोड़ आते जिस तरह का उनका बर्ताव था उसकी वजह से वो बच्चियां सिहर जाती थी

वे अक्सर अपनी माँ से कहती--- माँ ये नौ दिन हमेशा क्यों नहीं रहते देखो न सब हम लोगों के साथ कितना अच्छा व्यवहार करते कितना बढ़िया-बढ़िया खाने को मिलता हैं उनकी माँ मुस्कुराकर रह जाती वो खुद सबके दोगले व्यवहार से त्रस्त आ चुकी थी पर, कुछ भी कर नहीं पा रही थी और उसे तो रोज तीन घंटे न चाहते हुए भी अपने पति के साथ पूजा में बैठना पड़ता क्योंकि उसके पति का कहना था कि जोड़े से पूजन करने से ही वो पूर्ण होती हैं अगले दिन सुबह जब उसके पतिदेव उसे सामने बिठाकर जोर-जोर से ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ करते हुये उसका अर्थ बता रहे थे तभी उसे अपनी रिया के जोर-जोर से रोने  की आवाज़ आई और वो एकदम से उठकर जाने लगी तो उसके पति ने ऊँगली से उसे न जाने का इशार किया फुसफुसाते हुये बोले पाठ के बीच में जाना गलत हैं वो सहमकर रुक गई पर, उसका मन वहां नहीं था तभी प्रिया आई और बोली, माँ जल्दी चलो रिया सीढ़ियों से गिर गई तो उसने पति को और देखा और जैसे ही उन्होंने इंकार में सिर हिलाया पता नहीं किस तरह उसके अंदर एक ताकत आ गयी और वो झट देवी के मूर्ति के समक्ष खड़ी होकर बोली--- आप सोचते हैं कि अपनी बेटियों का निरादर कर उनकी पीड़ा को नज़रअंदाज़ कर मुझे अपने साथ बिठाकर इस पूजा मात्र से जगत माँ को प्रसन्न कर लेंगे तो यही बैठे रहे पर मेरे लिये तो मेरी बच्चियां ही साक्षात् देवियाँ हैं मैं चली उनके सेवा करने और वो तुरंत प्रिया का हाथ पकड़कर रिया के पास आ गयी और उन दोनों को अपने सीने से लगते हुये बोली--- आज से तुम दोनों के रोज नवरातें हैं
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२४ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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