सोमवार, 9 मार्च 2015

सुर-६७ : "अमानवीय व्यवहार... मानवता की दरकार...!!!"

बची तो
यहाँ वो भी नहीं
जो जन्मी नहीं...
और...
जो पैदा हो गई
वहीँ कौन-सी
बच गई... :( :’(
-----------------------●●●

___//\\___ 

मित्रों...,

‘नागालैंड’ के ‘दीमापुर’ इलाके में अभी जो क्रूरतम दिल दहला देने वाला हादसा हुआ जिस पर सभी ‘न्यूज़ चैनल्स’ ने बहस छेड़ रखी हैं कि जो भी हुआ वो ‘इंसानियत’ के नाम पर काला धब्बा हैं उसने हमारे देश को दुनिया के सामने शर्मसार कर दिया... उग्र भीड़ को इस तरह उन्माद में आकर एक बलात्कारी या गुनाहगार के साथ हर्गिज... हर्गिज ऐसा नहीं करना था... जबकि वो कानून की गिरफ़्त में था मतलब जो भी उस अपराधी ने किया उससे हमारा देश गौरवान्वित हुआ था लेकिन जो कुछ जनता ने किया वो अनैतिक होने के साथ-साथ गलत तो बताया ही जा रहा लेकिन कहीं-कहीं तो उसके अपराध को कमतर बताने का प्रचार-सा भी प्रतीत हो रहा हैं इस मुद्दे ने बहुत सारी बातों पर सोचने को मजबूर कर दिया कि जब देश की अदालतों में इतने सारे प्रकरण लंबित पड़े हो, आये दिन बच्चियों / युवतियों / महिलाओं के साथ सिर्फ दुष्कर्म ही नहीं बल्कि अमानवीयता की सभी हदों को पार किया जा रहा हो और ये सब करने वाला कटघरे में आराम की ज़िंदगी जी रहा हो इसके अलावा इस जन्म तो क्या अगले जन्म भी न्याय मिलने की उम्मीद दूर-दूर तक नजर न आ रही हो तो लोगों के सब्र का बाँध टूटना लाज़िमी हैं

माना कि जो कुछ भी हुआ ये सही नहीं हैं लेकिन इसके पीछे की वजह पर गौर करें तो उन लोगों की मानसिकता को समझ पाते हैं जिनकी अपनी बेटियां / बहनें इसका शिकार होकर मौत के घाट उतार दी गई हो और वे सब केवल बेबस होकर मूकदर्शक बनकर न्याय की चौखट पर ऊम्मीद लगाये हर बार जाये और वहां से एक तारीख और आँखों में आंसू लेकर मन मारकर वापस चले आये कितनी पीड़ा होती होगी उनको जो अपनी निर्दोष कन्या जिन्हें उसने बड़े लाड़-प्यार से पाला हो. जिसके भविष्य के अनेक सुनहरे स्वप्न देखे हो जो साकार होने से पहले ही किसी वहशी की दरिंदगी की भेंट चढ़ जाये और उसके बाद भी उन्हें अपनी जुबां को बंद कर रखना पड़े तो आख़िर कोई कब तक आँखों पर पट्टी बांधी मूरत से ये आस लगाये कि वो उस सत्य को देख पायेगी जिसे अंधेरों की कालिख़ में कब्र के नीचे दफ़न कर दिया गया हो क्योंकि हम सब देख ही रहे हैं कि ऐसे अनगिनत मामले हुये पर इंसाफ एक में भी नहीं मिला न ही कानून में ही वो सख्ती देखने में आयी जो इन दानवों की रूह को कंपा दे और वो इस तरह का कदम उठाने से पहले एक बार तो सोचे

जब भी इस तरह का कोई भी मामला सामने आता तो पता नहीं कहाँ से सभी न्यायवादियों, समाज सुधारकों और कानून बनाने वालों के हृदय में करुणा का स्त्रोत फूट जाता और वो सभी एक स्वर में उस बलात्कारी के प्रति नरम पड़ जाते और यही अपेक्षा करते कि उसने जो किया सो किया लेकिन हम उसके साथ अमानवीयता न करें... ये बात किसी को भी हज़म नहीं होती कि जिस शख्स ने एक बार भी एक पल को भी वो जघन्य कृत्य करते विचार न किया हो सब उसके लिये अपने-अपने दिल में थोड़ी सी इंसानियत जगा ले और उसे माफ़ कर दे यदि वो नाबालिग हैं तो इसकी भी जरूरत नहीं क्योंकि आप चाहे न चाहे अपराधी ने कितना भी संगीन जुर्म किया हो उसे बड़ी आसानी से रिहाई मिल जाती आखिर बच्चा हैं अभी-अभी तो अपराध जगत में कदम रखा हैं जरा, परिपक्व तो हो जाने दे फिर देखेंगे कि उसके साथ किस तरह से पेश आना हैं याने कि जब हर कोई ‘मुलजिम’ नहीं ‘मुज़रिम’ की तरफ़ हो जाये तो फिर सोचने की बात ही हैं कि सब तो यहाँ ‘गौतम बुद्ध’ के अवतारी या उन्हें मानने वाले नहीं जो बड़ी आसानी से इस तरह के राक्षस को माफ़ कर दे या उसके उस वहशीपन को भूला दे

अमूमन तो यही होता कि समय के साथ हम सब उस मसले को भूल जाते लेकिन जिसकी छाती में कील गड़ी हो जो उसे हर पल चुभती हो तो वो चाहकर भी इस बात को स्वीकार नहीं कर पाता इसलिये जब देश के किसी हिस्से की अवाम को ये समझ में आ गया कि एक दिन इस मामले में भी यही होने वाला हैं तो उसका गुस्सा भड़क गया और फिर जो हुआ वो सबके सामने हैं मैं इस बात की पक्षधर नहीं कि ये जो कुछ हुआ सही हैं लेकिन इस बात से मुझे बड़ा गुस्सा आता जब दूसरों के साथ हिंसा करने वाला या किसी को बुरी तरह से जान से मारने वाला स्वयं के लिये अभय दान चाहता और हमारी सरकार भी अपने ‘वोट बैंक’ के लिये बड़े मजे से उसे रिहा कर देती क्योंकि वो जानती हैं कि यहाँ लोगों की याददाश्त ‘गज़नी’ के ‘आमिर खान’ की तरह हैं जो बड़ी जल्दी सब कुछ भूल जाते हैं यहाँ किसी ने अपने शरीर पर ‘टेटू’ नहीं लगाये कि उसे वो सब कारनामें याद आ जाये और यदि कोई इन सब मामलों को अपने जेहन में ताज़ा रखने सचमुच ‘टेटू’ बनवा भी ले तो उसकी देह छोटी पड़ जायेगी क्योंकि यहाँ तो हर सेकंड ऐसी २० से अधिक घटनायें हो जाती हैं... दुखद लेकिन उतना ही कड़वा सत्य :(
____________________________________________________
०९ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: