गुरुवार, 5 मार्च 2015

सुर-६४ : "आधी नहीं... पूरी आबादी की जन्मदात्री... नारी---०४ !!!"

कोई-सा
भी हो त्यौहार
उसे मायने देता
नारी का निश्छल प्यार
पूर्ण समर्पण से किया कार्य
परिवार की ज़िंदगी देता संवार
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मित्रों...,

हमारा देश विविध प्रकार के तीज-त्योहारों के आध्यात्मिक-सामाजिक महत्व से भरा हुआ अनेकता में एकता का राष्ट्रीय प्रतीक हैं यदि थोड़ा-सा गौर से देखा जाये तो यहाँ हर दिन ही कोई पर्व होता हैं भले ही कहने को कुछ उत्सव सबके बीच अपनी सर्वाधिक उपस्थिति दर्ज करवाते हो लेकिन हर दिवस से जुडी कोई-न-कोई धार्मिक कथा उसको एक अलग ऊर्जा से भरकर विशेष बना देती हैं हमारे सारे हिंदी महीने, उसके दोनों पखवाड़े और उसकी प्रत्येक तिथि अपने आप में ही किसी-न-किसी पर्व की गाथा बखान करते हैं और इन सबको यदि आज भी किसी ने सार्थकता देकर इनके मूल्यों के साथ जीवंत रखा हैं तो उसका पूरा का पूरा श्रेय एकमात्र ‘नारी’ को जाता हैं क्योंकि वो न सिर्फ इन दिवस को उसी तरह मनाती हैं जैसा कि धार्मिक ग्रंथों में वर्णित हैं या उसे उसके पूर्वजों के द्वारा सिखाया गया हैं बल्कि अपनी संतति को भी अपने रीति-रिवाजों एवं संस्कृति से परिचित करवाती हैं और इस तरह अपनी ख़ानदानी विरासत अपनी आने वाली पीढ़ी को सौंप जाती हैं तभी तो उसे अपने घर की धुरी कहा जाता हैं जिसके चारों तरफ़ उसका परिवार घुमता हैं जिसके सभी सदस्यों को वो एक सूत्र में बांधकर रखती हैं । इसलिये ये कहना न तो गलत हैं या अतिश्योक्ति की हमारे सभी त्यौहारों को ‘स्त्री जाति’ ने ही जीवित रखा हैं जिसने पूर्ण आस्था से हर नियम को पूरे संयम से निभाते हुये कड़े-से-कड़े व्रत एवं उपवास में भी खुद को टूटने न दिया बल्कि यही तो उसके भीतर नूतन ऊर्जा भरता हैं जिससे वो अपने छोटे-से संसार को हर कष्ट सहकर भी हंसते-हंसते चलायमान रखती हैं ।

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लुप्त हो गये होते...

चैत्र प्रतिपदा  
यम द्वितीया
हरतालिका तीज
करवा चौथ
ऋषि पंचमी
छठ की पूजा
संतान सप्तमी
महा-अष्टमी
राम नवमी
विजयादशमी
निर्जला एकादशी
प्रदोष व्रत
बैकुंठ चतुर्दशी
शरद पूर्णिमा
सोमवती अमावस्या

गर,
इन सबको       
अर्थ देने वाली
इनमें जीवन भरने वाली
आराधिका आपके साथ न होती
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ये तो महज़ चंद नाम हैं जो हमें हमारी तिथियों के बारे में बताते हैं जिनसे हम ये जान पाते हैं कि आज भी यदि हम इन सब नामों को दोहरा रहे और इनको मना रहे हैं तो इसलिये कि ये सब सिर्फ़ दिन विशेष के नाम नहीं बल्कि हर किसी का अपना-अपना महत्व हैं... जब-जब ये आते हैं तो हम सब के भीतर की उदासी दूर भाग जाती और हम उमंग से भर जाते लेकिन वही एक पल को ही सही जरा ये सोच कर देखिये कि यदि इस दिन कोई भी ‘स्त्री’ न हो तो इनमें से सारा उत्साह-उल्लास गायब हो जाता... क्योंकि हर त्यौहार की जान होती हैं ‘नारी’... जिसके बिना लगती नीरस दुनिया सारी... फिर कहने में न करें जरा-सा भी संकोच... ‘स्त्री-शक्ति जिंदाबाद’... जो करती घर-दुनिया आबाद... :) :) :) !!!     
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०५ मार्च २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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