बुधवार, 1 अप्रैल 2015

सुर-८९ : "काव्य श्रृंखला... प्रथम दिवस...!!!"

बह रही
काव्य सरिता
निकली न जाने कहाँ से
पर, हम भी इसमें
सहयोग कर रहे
कि अविराम प्रवाहित हो
और मिल जाये सागर में नदिया
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मित्रों...,
पिछले कुछ दिनों से लगातार अपने सभी मित्रों की एक सी ही पोस्ट वाल पर दिखाई दे रही जिससे ये ज्ञात हो रहा हैं कि वे सभी बड़ी जिम्मेदारी से एक ‘काव्य रचना श्रृंखला’ की सृजन डोर को अपने अन्य साथियों के हाथों में बड़े विश्वास के साथ सौंप रहे हैं... ये आयोजन कुछ ऐसा ही लग रहा जैसा कि प्राचीनकाल में ‘अश्वमेध यज्ञ’ होता था जिसमें कि किसी भी प्रदेश का कोई महाराजाधिराज चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिये अपने घोड़े को अपनी सेना के साथ छोड़ देता और फिर वो जिस भी प्रांत या राज्य से गुजरता उस जगह का शासक यदि उनकी आधीनता स्वीकार कर लेता तो वो आगे बढ़ जाता और यदि युद्ध करना चाहता तो उस घोड़े को पकड़कर बाँध लेता और उसके साथ चल रही सेना को युद्ध के लिये ललकार देता... और इस तरह स्वैच्छा या लड़कर जैसे भी होता उस महाराज का संदेशवाहक किसी एक मुकाम पर जाकर रुक जाता और अंततः वो सकल समाज का अधिपति बन जाता

ऐसे ही इस ‘आभासी दुनिया’ में कविता की ये पावन गंगा भी कल-कल करती बह रही हैं और अपने मार्ग में आने वाले सभी रचनाकारों को किसी भी विधा में लिखने की स्वतंत्र देते हुये आगे बढती जा रही हैं जिसका उद्गम स्थल मुझे सही तरह ज्ञात नहीं हो पा रहा क्योंकि किसी पोस्ट से ये ज्ञात हुआ कि सुविख्यात कवि, कुशल चित्रकार, मधुर गायक आदरणीय ‘सुरेश सारस्वतजी’ ने इस आयोजन का आरम्भ किया हैं परंतु जब उनकी ‘समयतालिका’ का अवलोकन किया तो ज्ञात हुआ कि उनका भी किसी अन्य सुधिजन के माध्यम से इस पुनीत यज्ञ में आहुति डालने हेतु आहवान किया गया था... खैर, भले ही अभी इसके विषय में मुझे संशय हैं लेकिन जो भी हो ये एक प्रशंसनीय काज हैं अतः आज जब मेरी सखी @ऋता शेखर मधुजी के द्वारा मुझे यहाँ नामंकित किया गया तो ये मेरा फर्ज बनता हैं कि मैं उनके इस विश्वास को कायम रखते हुये इस ‘काव्य सरिता’ को आगे प्रवाहित करूं

इस ‘काव्य रचना श्रृंखला’ में आज मेरा ‘प्रथम दिवस’ है और जैसा कि मैं देख रही हूँ तो यही पा रही हूँ लगभग सभी को इसके विषय में न सिर्फ ज्ञात हैं बल्कि मेरे अधिकांश मित्र भी किसी दुसरे साथियों के द्वारा नामांकित किये जा चुके हैं... फिर भी यदि किसी मित्र को इसकी जानकारी नहीं हैं तो केवल संक्षेप में इतना ही कहना चाहूंगी कि इसके अंतर्गत पूर्व में पांच दिन तक किसी भी विधा में अपनी स्वरचित कविता को पांच दिनों तक लिखते हुए प्रत्येक दिन किन्हीं दो मित्रों को भी मनोनीत करना होता था लेकिन आज मुझे कुछ ऐसा भी देखने में आया कि इसमें कुछ परिवर्तन किया गया हैं अतः संशोधन का जिक्र भी करना बेहद ज़रूरी है अब  पांच दिन की जगह चार दिन और दो सदस्यों की जगह एक ही सदस्य को मनोनीत करना तय हुआ है... तो आज मेरी रचना के साथ मैं अपनी प्रिय सखी @anamika को लेखन की ये डोर सौंपती हूँ... मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास हैं कि वे इस काम को पूर्ण जिम्मेदारी के साथ अपने हाथों में लेते हुये आगे बढ़ायेगी... आज ‘एक क्षणिका’ से मैं अपनी अभिव्यक्ति का आगाज़ कर रही हूँ... :) :) :) !!!
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०१ अप्रैल २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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