'आत्मा'
की
'हत्या'
नहीं कोई हल... ।
...
जब
जीने को
मिले हो चार पल... ।।
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मित्रों...,
१८ अप्रैल २०१५, शनिवार की सुबह और रात में होने वाली दो स्थानों की घटनाओं
पर एक नज़र डाले---
घटना-०१ : ‘फरीदाबाद’ के सेक्टर-3सी, एनआईटी की रहने वाली युवा पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट २८
वर्षीय युवा ‘अंशु सचदेवा’ ने अपने
कमरे में लगे पंखे से लटककर खुदकुशी कर ली पुलिस से प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘शुक्रवार’ की रात नवयुवती अपने काम
से लौटकर अपने कमरे में आराम करने चली गई उसके
बाद जब उसकी मां तड़के तीन बजे उठीं तब उन्होंने पीड़िता के कमरे से कुछ
तरल पदार्थ निकलते देखा और फिर मां ने जैसे ही दरवाजा खोला उन्होंने अपनी बेटी का
शव उसके दुपट्टे से पंखे से लटकता हुआ पाया । ‘अंशु
सचदेवा’ भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) की पूर्व छात्रा थीं और
वह ‘दिल्ली’ में एक गैर सरकारी संगठन
एसटीआईआर एजुकेशन (स्कूल्स एंड टीचर्स इनोवेटिंग फॉर रिजल्ट्स) के साथ ‘एजुकेशन लीडर’ के तौर
पर काम कर रही थीं और गौरतलब हैं कि पिछले महीने २८ मार्च को ही उसकी उसके मनचाहे
साथी से सगाई हुई थी तथा मरने से पूर्व ‘अंशु’ ने अपने मंगेतर को लगातार कई बार कॉल किया लेकिन उसने उसकी
कॉल रिसीव नहीं की तब उसने उसे अंतिम सन्देश के रूप में ‘मैं जा रही हूँ’ लिखकर
भेज दिया ।
घटना-०२ : जयपुर की ‘डॉ प्रिया वेदी’ जो कि 2014 से ‘एम्स’ के ‘एनेस्थेॉसिया डिपार्टमेंट’ में ‘सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर’ थीं एवं उनके पति ‘कमल
वेदी’ भी पिछले दो साल से ‘एम्स’ में ही ‘स्किन विभाग’ में एक डॉक्टर के तौर पर काम कर रहे हैं । शनिवार को प्रिया
‘इमरजेंसी ड्यूटी’ की बात
कह कर दक्षिण दिल्ली स्थित अपने घर से निकल गईं और अगले दिन रविवार को नई दिल्ली
स्टेशन के पास स्थित पहाड़गंज के एक होटल से उनका शव बरामद किया गया पुलिस का कहना
है कि ‘प्रिया’ की कलाई कटी हुई थी
उन्होंने शनिवार रात पौने 12 बजे के करीब होटल में ‘चेक इन’ किया । इसके अलावा कमरे से एक ‘सुसाइड नोट’ भी मिला
है, जिसमें उन्होंने पति पर शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित
करने का आरोप लगाते हुये कहा गया है कि उसके पति ने खुद के बारे में ‘प्रिया’ को अंधेरे में रखा उसने और
उसे कभी नहीं बताया कि वो समलैंकिग था जबकि उन दोनों ‘प्रिया’ और ‘कमल’ की शादी पांच साल हो चुके थे । यहाँ तक कि ‘प्रिया’ ने तो शनिवार दोपहर करीब
पौने तीन बजे अपने ‘फेसबुक अकाउंट’ पर अपनी
‘टाइमलाइन’ पर एक स्टेटस भी इस संबंध
में लिखकर गयी हैं जिसके अनुसार---“‘मैं कमल
से बेहद प्यार करती थी लेकिन उसने मुझे हर छोटी चीज के लिए तरसाया । केवल एक महीने
पहले ही ‘कमल’ ने खुद को ‘समलैंगिक’ माना । इन सबके बावजूद में उसकी मदद करना चाहती थी लेकिन वह
तो मुझे टॉर्चर करता रहा। उसने एक रात पहले का जिक्र करते हुए लिखा, ‘उसने मुझे इतना टॉर्चर किया है कि अब मैं उसके साथ सांस भी
नहीं ले सकती वो इंसान नहीं राक्षस हैं क्योंकि उस ने मेरी हर खुशी छीन ली उसके
जैसे लोग केवल लड़की और उसके परिवार की भावनाओं के साथ खेलते हैं । डॉक्टर कमल
मैंने तुमसे कभी कुछ नहीं चाहा क्योंकि मैं तुम्हें बेहद प्यार करती थी लेकिन
तुमने कभी इसकी अहमियत को नहीं समझा ‘कमल’ तुम मेरे गुनाहगार हो” ।
आजकल ‘आत्महत्या’ की घटनायें बड़ी आम हो चली
हैं और अच्छे-खासे पढ़े-लिखे, समझदार, आत्मनिर्भर, सर्वसुविधायुक्त, जागरूक और समझदार युवा ऐसे कदम उठा रहे जिसने सोचने पर
मजबूर कर दिया कि जीने के लिये ‘रोटी’, ‘कपड़ा’ और ‘मकान’ जिसे कि जीवन की सबसे अहम
जरूरत माना जाता हैं अब उतना अहम नहीं रह गया क्योंकि गर, ऐसा होता तो ये लोग ऐसा कदम न उठाते क्योंकि यदि हम इनकी
जिंदगी को समझने की कोशिश करें तो वे आज के जमाने में जीने के लिये जरूरी समझे
जाने वाली सभी आवश्यकताओं से परिपूर्ण थे फिर भी कहीं कोई कमी थी जिसने इन सब
चीजों को ठेंगा दिखा दिया और इन्हें धता बताकर जाने वाला अनंत की यात्रा पर निकल
पड़ा जबकि दुनिया में अनगिनत लोग इन वस्तुओं के अभाव में कभी तो मजबूरी या कभी अपने
आप ही मर जाते और यहाँ ये लोग इनके होते हुए ही मौत को गले लगा लेते ऐसे में जरूरी
हैं कि उन कारणों का पता लगाया जाये और इस तरह की घटनाओं को यदि रोक पाना संभव हो
तो उसके लिये प्रयास किया जाये ।
हर किसी के जीवन की
ख्वाहिश और जीने का तरीका अलहदा होता तभी तो कोई सारे अंग भंग और हर तरह के अभाव
के बावज़ूद भी जीना चाहता और कहीं कोई हर तरह से सर्वगुणसंपन्न होने के साथ-साथ हर
सुख़-सुविधा से लदा होने पर भी मरना चाहता हैं क्योंकि उसके जीवन में उसे जीने की
ऊर्जा देने वाली प्रेरणा की ऑक्सीजन कम होने लगती जिससे उसका साँसे लेना दूभर होने
लगता और उसे मौत के अलावा कोई और चारा नजर ही नहीं आता यही चीज़ हैं जो खाने-पीने
से ज्यादा जरूरी होती लेकिन सभी के लिये नहीं केवल उसके लिये जो अति संवेदनशील और
भावुक होते और जिनका अपने आप पर अपनी भावनाओं पर कोई नियंत्रण नहीं होता ये किसी
भी बात से खफ़ा होने पर अपने आप से ही बदला लेते बिना ये सोचे समझे कि उनकी इस हरकत
से कितने लोग परेशान होते हैं और किसके दिल पर क्या गुजरती हैं अतः हमें अपने ही
करीबी लोगों की इस कमजोरी का पता होना चाहिये वरना एक दिन हम अपने प्रियजनों को भी
इसी तरह खो सकते हैं... मुझे ‘डर्टी पिक्चर’ का एक संवाद याद आ रहा हैं... “जिंदगी जब मायूस होती हैं तब महसूस होती हैं”... सच यही वो क्षण होते हैं जिसे झेल पाना एक इमोशनल इंसान के
लिये नागवार होते हैं और ऐसे समय में ही वो कोई ऐसा सख्त कदम उठा लेता जो उसे जीने
से ज्यादा आसान लगता... हम सब अपनी जिंदगियों में इतने मशगूल भी न रहें कि बगल के
कमरे से आ रही हमारे अपने की सिसकियों को भी न सुन सके... पड़ोसियों के घर से आने
वाली आवाज़ों को दूसरे के मामला कहकर दूर हट जाये क्योंकि यदि हम इतने कोमल नहीं
बने तो उन कमज़ोर लोगों को नहीं बचा सकेंगे और बस... अफ़सोस ही करते रहेंगे... अभी
भी देर नहीं हुई कल होने वाली ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये ही कदम बढ़ा दे... किसी
की जिंदगी बचा ले... :) :) :) !!!
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२० अप्रैल २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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