गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

सुर-९८ : "सूरज सा चलो हर दिन... अनवरत, अथक.. !!!"

हर
जीवन
अलग-अलग
और...
फलसफ़ा भी
जीने का सबका
अपना-अपना... ॥
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मित्रों...,

जीने का असली आनंद तो तभी आता हैं जब हम उससे किसी तरह की कुछ ख्वाहिशें जोड़ लेते हैं जी हाँ... जब तक जीने का कोई मकसद’, किसी भी मंजिलको पाने की आरजू न हो तो वो कितना नीरस और बेजान होता होगा न बस, खाते-पीते और सोते जागते ही गुजर जाता होगा और अहसास भी न होता होगा कि कितना अनमोल अवसर हमने बड़ी ही आसानी से गंवा दिया । वाकई गंभीरता से सोचे तो लगता हर जीवन एक मौकाही तो हैं अपने आपको साबित करने और अपने सपनों को साकार करने का वरना... जीते तो वो सभी हैं जो इस सृष्टि में पैदा हुये लेकिन कितने हैं जो इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा पाते केवल चंद क्योंकि वो सबकी तरह एक सामान्य जीवन नहीं जीते बल्कि कुछ ऐसा कर गुजरते जो दूसरा करने के बारे में सोचता भी नहीं या कभी भूले-भटके उसके दिमाग में कोई ख्याल आ भी आ जाये तो वो उसके लिये कुछ कर गुज़रने का माद्दा नहीं रखता ।

तभी तो बहुत से लोगों के पास एक जैसी सहूलियतें और साधन होने पर भी वो सभी एक सामान ध्येय प्राप्त नहीं कर पाते जो स्वतः ही सिद्ध करता कि यदि सभी लोग शारीरिक या मानसिक और आर्थिक रूप से भी एक जैसे ही सक्षम हो तो भी जरूरी नहीं कि सबको एक ही लक्ष्य दिये जाने पर वे सब उसे एक ही साथ प्राप्त भी कर ले इसलिये तो जो एक बार सफल होता वो और भी अधिक सफल होता जाता इतना कि आकाश की ऊँचाई भी छोटी लगने लगती काम्याबी के हर मुकाम को वो अपनी कार्यक्षमता से हासिल करता जाता और सोपान दर सोपान उपर की और ही बढ़ता जाता जो उसके कद को इतना ऊंचा कर देता कि उसके सामने हर कोई बौना नज़र आता क्योंकि एक लक्ष्य संधान उसके भीतर अगले को साधने का उत्साह और ऊर्जा भी भर देता जबकि जिसके भीतर कुछ भी पाने की तमन्ना नहीं होती या कुछ भी बनने का ख़्वाब नहीं होता तो ज़ाहिर हैं उसकी चलने या बढ़ने की गति भी वैसी ही होगी कोई रोमांच  न होगा जीने का क्योंकि उसे कहीं पहुंचना ही नहीं, उसे कुछ बनना ही नहीं केवल जो उसके पास हैं उसमें ही वो संतुष्ट हैं या उसमे लालसा नहीं अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की तो वो जड़की तरह एक ही जगह स्थिर रह जायेगा और उसका होना न होना कोई मायने ही न रखेगा । कुछ ऐसे भी होते जो शेखचिल्ली टाइपजो बैठे-बैठे कल्पना के घौड़े तो बहुत तेज और बहुत दूर-दूर तक भगाते लेकिन खुद अपनी जगह से हिलना भी नहीं चाहते और सोचते कि काम्याबी ख़ुद उसके पास चलकर आये, माजिल खुद आगे बढ़कर उसे गले लगा ले लेकिन ये भूल जाता कि कल्पनाकेवल जीने के प्रति हमारे मन में उमंग जगाती पर उसको सचमुच पूरा होते देखने के लिये किया गया प्रयास ही किसी मिट्टी के पुतले सी नज़र आने वाली बेजान उम्मीद में प्राण फूंककर उसे किसी जीते-जागते इंसान जैसी ताबीर में तब्दील करता हैं ।

कभी न कभी तो सबके साथ ही ऐसा होता जब उसके जेहन का ट्यूबलाइटएकदम से जल जाता होगा क्या नहीं ? पर, सिर्फ उसका जलना ही तो पर्याप्त नहीं उसको जलाए रखने या उसकी चमक को और बढ़ाने के लिये भी तो कुछ करना होगा यही तो वो चीज़ हैं जो एक को दूसरे से अलग कर देती हैं । सब चाहते कि उनका जीवन सुखी हो और उसके पास हर तरह की सुविधा हो लेकिन केवल चाहने से ही हर चीज़ हासिल हो जाती तो कर्म का संदेश देने भगवानस्वयं धरती पर नहीं आते और जब-जब भी उन्होंने किसी भी रूप में अवतार लिया अपने आचरण से यही दर्शाया कि कर्महीन, उद्देश्यहीन जीवन निरर्थक हैं अतः हमें हर पल सतत कर्म में रत रहना चाहिये फिर भी जो न समझना चाहे तो वो अपनी बात साबित करने कुतर्क ढूंढ लेता लेकिन ये भूल जाता कि इस तरह से सत्य न बदल जायेगा ।  सच किसी भी तर्क का मोहताज़ नहीं होता वो तो सूरज की मानिंद स्वतः सिद्ध हैं और उजला होकर अपने अस्तित्व की खुद ही गवाही दे देता ऐसे में असत्य का अनुशरण करने से आदमी गर्त में ही गिरता भले ही शुरुआत में उसे इस बात का अहसास नहीं होता लेकिन जब तक अंजाम तक पहुँचता ये कटू सत्य भी उसके समक्ष उज़ागर हो जाता कि गलत सदैव गलत होता उस पर सच का मुलम्मा चढ़ा देने से उसकी अपनी खासियत नहीं बदलती यही तो जीवन के गुण धर्म हैं जिन्हें खुबसूरत पैकिंग से नहीं बदला जा सकता हैं ।

हमें केवल अपने विश्वास पर दृढ़ होना चाहिये तो फिर देर-सबेर जैसे भी हो हमारा स्वपन जरुर साकार होता... कभी भले ही निराशा की वजह से ये महसूस होता कि उम्मीद का पुष्प कभी भी पल्लवित नहीं होगा लेकिन एक ही पल बाद किसी सकारात्मक विचार या दृश्य से मन के भीतर की ये नकारात्मकता अपने ही आप मिट जाती... उसी तरह जैसे कभी-कभी उदास रात की कालिमा में लगता कि शायद अब सुबह  कभी होगी ही नहीं पर, वो तो होनी ही हैं हर हाल में तो फिर आप क्यों बैठे रहते थक-हारकर... आराम हो गया जितना होना था रात में... सूरज के साथ ही बढ़ चलो अपने सफर पर हर सुबह... यही तो कहता हैं वो हमसे... मैं हूँ न... राह दिखाने पर... चलना तो तुमको ही होगा हैं न... :) :) :) !!!        
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०९ अप्रैल २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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