सोमवार, 27 अप्रैल 2015

सुर-११६ : "मनोभाव और भोजन का सामंजस्य...!!!"


जैसा होता
आदमी का मिज़ाज
वैसा ही लगता
उसे खाने का स्वाद...
.....
वो अपनी
तबियत के अनुसार
जुबान की बदली तासीर से
उसके जायके को महसूसता हैं ॥
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मित्रों...,

इंसान जब तक जिंदा रहता  हैं उसके साथ जुड़ा पेट उसे बहुत कुछ करने मजबूर करता हैं तभी तो 'पापी पेट' की ख़ातिर कई बार कई  लोग कुछ ऐसा कर जाते जो उन्होंने खुद भी कभी सोचा न होता कि उनके द्वारा हो सकता हैं क्योंकि अमूमन यही होता कि मन की प्रकृति के अनुसार उसे हर शय का हर पल एक अलग ही अहसास होता... और न चाहते हुये भी जाने या अनजाने उससे अपने मौसम की तरह बदलते मूड के अनुसार एक ही बात के अलग-अलग अनुभव होते जिसका सबसे बड़ा असर उसके खाने-पीने पर पड़ता और फिर जैसा उसका अपने अंदर का मिज़ाज होता वैसा ही उसको भोजन का स्वाद भी मालूम पड़ता याने कि उसकी मनोस्थिति का प्रभाव सबसे ज्यादा उसके जीने के सामान पर पड़ता---
  
आदमी जब 'परेशान' होता हैं तो सिर्फ खाना खाने की रस्म अदायगी करता उसके स्वाद को महसूस नहीं कर पाता ।

जब 'प्यार' में होता तो बेस्वाद खाना भी बिना शिकायत के खा जाता हैं ।

जब 'खुश' होता तो कोई कमी होने पर भी हंसकर खा जाता ।

लेकिन जब 'क्रोध' में होता तो अच्छे से अच्छे स्वादिष्ट खाने में भी कमी निकाल कर बनाने वाले को अपने गुस्से का आहार बना लेता हैं ।

केवल तभी वो खाना खाता उसका स्वाद भी लेता और तारीफ़ भी करता जबकि वो 'संतुष्ट' होता हैं ।

जबकि आप छोटे-छोटे बच्चों को देखो वे हर स्थिति में खुश ही नज़र आते और भूख-प्यास जैसी भावनाओं को तो समझ भी नहीं पाते पर जो भी मिल जाये या खाने दे दिया जाय उसे खेलते-खेलते मजे में उदरस्थ कर लेते... जब भी हमें किसी परिस्थिति विशेष का सामना होता तो अपनी प्रवृति के कारण जैसा व्यवहार हम खाने के साथ करते उससे हमारी मनोदशा का आकलन करना आसान होता इसलिये जब भी आप खाना खाते हैं तो उसे अपने मनोभावों का शिकार होने से बचाने के लिये निर्विकार हो जाये और केवल औपचारिकता निर्वहन की जगह उसे महसूस करें आपका आधा तनाव तो उसी से कम हो जायेगा... फिर अपनी प्रतिकूल स्थिति से निपटने की तैयारी करें और देखें कि अब अधिक तरो-ताज़गी और नूतन ऊर्जा के साथ आप उसका सामना कर सकते हैं... बस, इसी तरह अपने आपको अपनी मानसिक दशा को पहचाने तो आप पायेंगे कि उसका हल खाने जैसी जीवन की अनिवार्य आदत में भी खोजा सकता हैं तो फिर अब से अपनी मनोदशा का प्रभाव अपने भोजन पर न पड़ने दे.. ख़ुद को समझने का इस तरह मौक़ा दे... और अपनी मुश्किलों का खाते-खाते समाधान खोजें... :) :) :) !!! 
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२७ अप्रैल २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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