‘काला कानून’
बनकर आया था
‘काल’
और...
एक ही पल में
असंख्य लोग
न देख सके
आने वाला कल...॥
----------------------●●●
___//\\___
मित्रों...,
फिरंगी सरकार की ‘फूट डालो राज्य करो’ नीति एकदम से नहीं बनी वो तो जब उन्होंने देश में एक साथ
अलग-अलग धर्मों के लोगों को मिलकर प्रेम से रहते हुये देखा तो उनको लगा कि यदि ये
सब इसी तरह एकता के सूत्र में बंधे रहे तो बहुत जल्द ही उनका तख्तापलट हो सकता हैं
तो उन्होंने भारतीयों की कमियों जिन्हें कि हम अक्सर ‘कमजोर नब्ज’ कहते हैं को ढूंढना शुरू किया और बहुत जल्द उन्हें समझा में
आ गया कि ‘धर्म’ से बड़ा और कुछ नहीं हैं किसी के भी लिये तो बस, फिर क्या उन्होंने इसी मजहब की कठोर दीवार को जो पहले सभी
धर्मों की ईट लगाकर बनाई गयी थी में दरार करने की ठानी और धीरे-धीरे लोगों के
दिलों-दिमाग में ‘धार्मिक मतभेद’ का बीजारोपण करना शुरू किया जिससे कि सभी धर्मों की शाखायें
अलग-अलग हो जाये तो फिर वो एक ही प्रहार से ‘अनेकता में एकता’ के इस विशाल मजबूत दरख्त को गिरा दे इसलिये उन्होंने ऐसे
काम करने शुरू किये जिससे कि देश की जनता के बीच वैमनस्य बढ़े । इसी कड़ी में उनके
द्वारा पहले कदम में तो देश के ‘पंजाब’ प्रांत में सर्वप्रिय ‘महात्मा गांधीजी’ और साथ ही उस समय के कुछ अन्य प्रभावशाली नेताओं के आगमन को
रोकने हेतु फरमान जारी किया गया जिससे लोगों में रोष की एक लहर दौड़ गयी और वे सभी
क्रोध में आकर उसका विरोध करते कि उसके पहले ही दुसरे कदम में अंग्रेजी हुकूमत ने
अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर को जबरन हुकूम देकर ‘पंजाब’ के ही
दो लोकप्रिय जननेता ‘डॉक्टर सत्यपाल’ एवं ‘सैफ़ुद्दीन
किचलू’ को न
सिर्फ गिरफ्तार करवा दिया बल्कि उन्हें ‘काला पानी’ की सज़ा
भी सुना दी गयी थी । जिसके परिणामस्वरूप सरकार को अपना प्रतिरोध जाहिर करने जनता
ने शांतिपूर्वक एक जुलूस निकाला जिसे देखकर सरकार द्वारा उसे रोकने की कोशिश में
भीड़ पर गोलियां चलवा दी गयी जिसमें कुछ बेकुसूर लोग मारे गये जिसकी वजह से जनता
भड़का गयी और उसने गुस्से में आकर सरकारी इमारतों में आग लगा दी और चंद अंग्रेज
ऑफिसर भी मारे गये बस, यही बात
सत्तासीन ब्रिटिश सरकार को नागवार गुजरी और जब उसे ‘अमृतसर’ अपने
हाथ से जाता दिखा तो उसने १० अप्रैल, १९१९ ई. को उस शहर की बागड़ोर और प्रशासन सैन्य अधिकारी
ब्रिगेडियर ‘जनरल डायर’ के हाथों में थमा दी ।
सरकार द्वारा ‘रोलेट एक्ट’ नाम से एक ‘काला कानून’ बनाया गया और इसका विरोध करने पर सभी बड़े नेताओं सहित ‘गांधीजी’ को पहले
ही पकड़ कर जेल में डलवा दिया था जिससे कि देश के लोग जो इतने वर्षों से विदेशियों
के अत्याचार और अन्याय सहते-सहते अब जवाब देना सीख गये थे इसलिये सबने मिलकर
अंग्रेजों से निपटने के लिये १३ अप्रैल, १९१९ ई. को जबकि ‘बैशाखी’ का पर्व
भी मनाना था, उसी के
साथ ही ये भी निश्चित किया कि वे सभी उसी दिन शाम को ‘अमृतसर’ के ‘जलियाँवाला बाग’ में इकट्ठा होकर एक सभा करेंगे जिसमें ‘डॉक्टर किचलू’ एवं ‘सत्यपाल’ की रिहाई के अलावा उस निर्दयी कानून ‘रौलट एक्ट’ के विषय
में निर्णय लेते हुये आगे क्या किया जाना चाहिये ये भी सुनिश्चित करेंगे । चूँकि
उस दिन ‘रविवार’ था तो अगल-बगल में बसे गाँव से भी बड़ी संख्या में सभी
धर्मों के लोग ‘बैसाखी’ का उत्सव मनाने उस बाग में चले आये थे और इस तरह उस शाम
लगभग २०००० हजार से अधिक लोग एकत्रित हुये जिसकी खबर होने पर सरकार ने इसे ‘अवैधानिक’ घोषित
कर इसकी निगरानी का जिम्मा ‘जनरल
डायर’ को सौंप
दिया था । वो अपने साथ सैनिकों की एक टुकड़ी लेकर उस बाग़ में पहुँच गया जो चारों
तरफ से ऊंची-ऊंची एक-दूसरे से सटी दीवारों से बंद था और यूँ तो वहां प्रवेश करने
के लिये कई मार्ग थे लेकिन सभी बंद होने से केवल एक ही रास्ता शेष था अतः ‘जनरल डायर’ ने
कुटिल नीति से काम लेते हुये अपने साथ आये सिपाहियों को इसी इकलौते द्वार पर तैनात
कर बिना किसी चेतावनी के अपने सिपाहियों को गोलियाँ चलाने का क्रूरतम आदेश दे दिया
जिससे कि वो जघन्य हत्याकांड आरंभ हुआ जो इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय हैं और जो
निहत्थे निरपराध चीखते-चिल्लाते, दौड़ते-भागते
नन्हे-नन्हे मासूम अबोध बच्चों, सीने से
अपने नवजात को चिपकाये अबला माँ और निर्दोष महिलाओं की पीड़ा, असहाय बुजुर्गों की लाचारगी से भरी असमय नृशंस मौत से लिखा
गया हैं । ब्रिटिश शासन के अभिलेख में तो इस घटना में केवल २०० लोगों के घायल, ३७९ लोगों की शहादत का ही उल्लेख हैं जिसमें से ३३७ पुरुष, ४१ नाबालिग किशोर लड़के और एक ६ सप्ताह का बच्चा भी था जबकि
अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार १००० से अधिक लोग तो मारे गए थे और लगभग २००० से भी
अधिक घायल हो गये थे ।
इस हत्याकांड ने ही ‘अंग्रेज सरकार’ के गिनती के शेष दिनों की और इशारा कर दिया था क्योंकि इसके
कारण अब सभी एकजुट हो गये और देश के
सम्मानित व्यक्तित्वों ने भी खुलकर अंग्रेजों का विरोध किया गुरुदेव ‘रवीन्द्र नाथ टैगोर’ ने इस घटना के विरोध में अपनी 'नाइटहुड' की
उपाधि वापस कर दी साथ ही ये कहा कि "समय आ गया है कि सब देशवासी एक साथ सामने
आये अतः मै सभी विशेष उपाधियों से रहित
होकर अपने देशवाशियो के साथ खड़ा होना चाहता हूं।" हालांकि उस समय देश में
संचार के इतने आधुनिक साधन नहीं थे फिर भी ये खबर आग की तरह सारे देश में फ़ैल गयी
और इस वीभत्स काण्ड ने सभी देशवासियों के मन में अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र देखने
के स्वप्न को साकार करने की इच्छा बलवती कर दी तथा देश में अनेक ‘भगतसिंह’ और ‘उधमसिंह’ जैसे
जोशीले उग्र युवा क्रांतिकारियों को जनम दिया जिन्होंने ‘जलियांवाला बाग’ की शहीदी पावन मिटटी का तिलक अपने माथे पर लगाकर अंग्रेजो
से निरपराध मारे गये साथियों की दर्दनाक मौत का बदला लेने अनवरत संघर्ष कियाऔर
गांधीजी ने १९२० में ‘असहयोग आंदोलन’ की शुरुआत की अंततः
१५ अगस्त १९४७ को अपने देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ा ही लिया... सभी
शहीदों को नम आँखों से नमन... :) :) :) !!!
____________________________________________________
१३ अप्रैल २०१५
© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
●--------------●------------●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें