मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

सुर-१०३ : "आलेख --- महिला अपराध : घर बाहर की चुनौतियां – समस्या और समाधान...!!!"


___//\\___ 

मित्रों...,

सबसे पहले तो हम महिला अपराधशब्द की व्याख्या कर ले जिसका शाब्दिक अर्थ हैं महिलाओं पर किये जाने वाले शारीरिक और मानसिक आघात या अत्याचार, जो कि घर की चारदीवारी के भीतर भी अंजाम दिए जा सकते हैं तो बाहर खुलेआम भी उसे अपनी गिरफ़्त में ले सकते हैं । जिसमें पीड़ित करने वाला भले ही कोई भी हो पर पीड़िताहर हाल में नारी ही होती हैं, अमूमन यही देखने में आता हैं कि महिलाओं पर सर्वाधिक अन्याय पुरुष द्वारा ही किये जाते हैं । आधी आबादी कहलाई जाने वाली नारीजो देश की बाकी आधी-आबादी को जन्म देती हैं, बड़ी विडम्बना की बात हैं कि उस पर इन अत्याचारों का सिलसिला उसके पैदा होने से पूर्व ही चालू हो जाता हैं जो उसकी मृत्युपर्यंत तक आजीवन उसके साथ होता रहता हैं किन्हीं मामलों में तो उसकी मौत के बाद भी ये थमने का नाम नहीं लेता और उसका नाम लेकर ही लोग उसे जलील करते रहते हैं । सुनकर बड़ा अजीब लगता हैं ना कि भारतसंस्कारों रीति-रिवाजों परम्पराओं का एक आदर्शवादी देश जहाँ पर कि नारी को देवी मानकर पूजा जाता हैं, वहाँ ही उसे सबसे अधिक पीड़ित भी किया जाता हैं क्योंकि हक़ीकत में उसे सिर्फ़ देवी की संज्ञा दी जाती हैं पर उसे तो कभी इंसान समझने की भी भूल नहीं की जाती ।

अक्सर उसे सिर्फ़ पैदाइश का एक जरिया, शरीर की आग बुझाने का एक साधन और घर को सँभालने वाली गृहिणी से इतर नहीं समझा गया भले ही वो ख़ुद को साबित कर चुकी हैं, जमीन ही नहीं अन्तरिक्ष में भी अपनी सफ़लता के झंडे गाड़ चुकी हैं मगर उसकी घर में ही उसकी कोई कद्र नहीं हैं । आज के इस अत्याधुनिक युग और पढ़े-लिखे सभ्य समाज में भी कन्या भ्रूण हत्याका घिनौना खेल घर और बाहर दोनों ही जगह बड़ी निर्दयता से खेला जा रहा हैं । इससे अधिक घृणित निंदनीय शर्मनाक और वीभत्स बात और क्या हो सकती हैं कि हमारे यहाँ अजन्मी कन्या से लेकर जन्मी तक सभी शोषण की शिकार होती हैं । कन्या भ्रूण हत्याका ये काम तो अक्सर घर पर ही उसके पति महोदय की लात-घूंसों से ही संपन्न हो जाता हैं गर ऐसा ना भी हो पाये तो फिर सास-ननदों के लगातार तानों-उलाहनों, काम के अतिरिक्त दबाब या गलत दवाई के सेवन से करा दिया जाता हैं उसके बाद भी यदि घर के भीतर ही अपनाये ये सब तरीके कारगर साबित ना हो पाये तो फिर बाहर कुछ और खौफ़नाक हथकंडा आज़माया जाता हैं । इसे रोकने के लिये कानून बनने के बावज़ूद भी अस्पताल में लगी तख्ती यहाँ कन्या भ्रूण की जाँच और गर्भपात जैसा जघन्य अपराध नहीं किया जाता हैंके नीचे ही इसे बड़ी सरलता से बेखौफ़ पूरा कर दिया जाता हैं । रखे रहो तुम अपने सभी नियम-कानूनों को किताबों में बंद, कचहरी के दायरे में गुम अपराधी को उससे कोई लेना-देना नहीं क्योंकि वो इनकी खोखली हक़ीकत को अच्छी तरह से जानता हैं कि कानून बेचारा तो तब कुछ करेगा ना जब उस तक कोई खबर पहुंचेगी, जिस पर इस अपराध को अंजाम दिया गया वो तो अपने परिवार और लोक-लाज के डर से मुंह खोलेगी नहीं और किसी को इसकी परवाह नहीं इसलिये धडल्ले से इन कानूनों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं ।

जैसे-तैसे गलती से बेचारी पैदा हो भी जाये तो क्या अपराधों का ये खतरनाक सिलसिला थम जाता हैं बल्कि अब तो और भी ज्यादा बड़े स्तर पर उसे आये घर-बाहर इनका सामना करना पड़ता हैं । उफ़, कहते और लिखते कलम भी लजाती हैं पर हर तरह का अत्याचार इसी दुनिया में उस पर किया जाता हैं उसके लिये तो दोजख़ और कहीं नहीं... यही हैं... यही हैं... यहीं हैं... । पैदा होने के बाद पक्षपात, भेदभाव, हीनभावना का रोपण, पर्याप्त और सही भोजन का अभाव, काम का बोझ, पढाई न करने देना, हर बात में रोकना-टोकना, पाबंदियां लगाना मतलब कि बिना किसी अपराध के घर की काल-कोठरी में कैद करके रखना ना कोई सुनवाई, ना अपील, ना रिहाई बस, सज़ा-ए-उम्र कैद वो भी अपनों के ही द्वारा । इतने सारे अत्याचारों को सहते-सहते वो सख्त जान किसी तरह बड़ी हो गई तो बस कैदखाना बदल जाता हैं और उसे प्रताड़ित होने के लिये मायके से ससुराल में भेज दिया जाता हैं, जहाँ पर अत्याचारी और भी निर्मोही, पराये और दुष्ट प्रवृति के होते हैं । यहाँ उसके पति, सास-ससुर, ननद, जेठ-जेठानी के अलावा और भी कई तथाकथित रिश्तेदारों को भी अपनी जोर आज़माइश का मौक़ा दिया जाता हैं कि कही वो बेचारे उसे परेशान करने से वंचित ना रह जाये , जैसे कि वो कोई जीती-जागती हाड़-मांस की बनी इंसान नहीं बल्कि रबर की गुडिया हो जिससे सब खेलना चाहते हो । यहाँ भी उस पर अपमानित करना, ताने देना, बातें सुनाना, काम करवाना, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना देना जैसे सभी अत्याचार किये जाते हैं, कभी-कभी तो दहेज या फिर बेटा ना होने की वजह से उसे जान से तक मार दिया जाता हैं या फिर उसके चरित्र पर इल्ज़ाम लगाकर उसे तलाक़ देकर दर-बदर की ठोकर खाने छोड़ दिया जाता हैं क्योंकि चरित्रहीनतावाला पॉइंट सबसे दमदार होता हैं, जिसके बाद आदमी को उसे खर्चा भी नहीं देना पड़ता जबकि वो ख़ुद दूसरी शादी कर अत्याचारों की एक नई किताब शुरू कर सकता हैं आखिर औरत सबसे सस्ती वस्तु भी जो हैं हमारे इस समाज में एक छोड़ो दूसरी हाज़िर हैं अपनी जान देने के लिये ।    

ये तो वो अपराध हैं जो घर के भीतर होते हैं, जब वो कभी बाहर निकले किसी काम से या पढने को ही तो फिर सभी अंजानो को भी उस पर अत्याचार करने का अवसर अपने आप मिल जाता हैं । यहाँ उसे राह, बस, टैक्सी, ट्रेन, सरेआम, स्कूल, कॉलेज, ऑफिस सभी जगह छेड़-छाड़, अपहरण, बालात्कार, शारीरिक और मानसिक शोषण, एसिड अटैक, एम.एम.एस, जबरदस्ती यानी कि चौतरफ़ा अत्याचारों के पैने तीरों का सामना वो भी बिना किसी सुरक्षा कवच के करना पड़ता हैं । कभी-कभी कोई व्यक्ति अधिक खूंखार हुआ तो वो सिर्फ़ छेड़ने जैसा छोटा-मोटा अपराध कर अपनी बेइज्जती नहीं करवाता सीधे बलात्कार करता हैं, अधिक हिंसक हुआ तो उसके बाद उसे मारकर फेंक खाना खाकर चादर तानकर सो जाता हैं, आख़िर अगले दिन किसी और के साथ यही मेहनत करने के लिये भी तो ख़ुद को तैयार करना हैं । कभी भूल-चूक से पकड़ा भी गया तो उसे अच्छे से पता हैं कि हमारी कानून व्यवस्था कितनी लचर हैं, कोई उसे फांसी पर तो चढ़ा नहीं देगा भई उसने सिर्फ़ दुराचार किया हैं, वो कोई आतंकवादी तो हैं नहीं कि देश को नुकसान पहुंचाया हो, यहाँ तो आतंकवादी को भी फांसी की सज़ा में रियायत मिल जाती हैं जबकि बलात्कारी का टैग तो उसे संसद में भी पहुँचाने का माद्दा रखता हैं । स्त्री के साथ सर्वाधिक किया जाने वाला अपराध बलात्कारही हैं जो सिर्फ़ बाहर के गुंडे-मवाली ही नहीं घर के भीतर मौज़ूद उसके ही अपने शराफ़त का चोला ओढ़े पापा, चाचा, ताऊ, ससुर, भाई जैसे लोग भी करते हैं ।

कभी ऐसा हुआ कि किसी प्रकरण में लडकी ने हिम्मत कर थोडा दम दिखा ही दिया और किसी तरह ख़ुद को बचाने में कामयाब हो गई या किसी गैर सरकारी संगठन या फिर कानून के किसी रखवाले तक भी पहुँच गई तो ख़ुद को महारानी लक्ष्मीबाईसमझने की भूल ना करे क्योंकि पुरुष कोई कच्चा खिलाडी नहीं वो तो बचपन से ही हम भी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे वाला सूत्र अपनाता हैं । गर, लड़की आसानी से पट गई, हासिल हो गई तो ठीक नहीं तो उसके पास एक ही ब्रम्हास्त्रहोता हैं उसे चरित्रहीन साबित करना और जैसे भी हो उसका शोषण करना क्योंकि हमारे समाज में इज्जत का ठेका सिर्फ़ और सिर्फ़ औरतों के ही पास होता हैं इसलिये उसके चरित्र पर ऊँगली उठाना या उसे दागदार करना भी बड़ा आसां होता हैं केवल एक अफ़वाह उड़ाना हैं और लोग लडकी को खराब का तमगा दे देते हैं । यदि किसी वजह से ये भी ना  हो पाये तो कहीं उनकी शान में बट्टा ना लग जाये इसलिये फिर चाहे वो शादी के मंडप में ही क्यों ना बैठी हो, या चाहे ब्याह कर विदेश ही क्यों ना चली गई हो उसे ढूंढकर उसके मुंह पर तेजाब फेंक देंगे या फिर उसे मार डालेंगे पर अपनी नाक नीचे ना होने देंगे क्योंकि किसी औरत से हार उन्हें कुबूल नहीं भले ही सारी बिसात उन्होंने ही बिछाई हो उसे ना चाहते हुए भी उनके इस घिनोने खेल का हिस्सा बनना पड़ता हैं जहाँ जीत सिर्फ़ मर्दकी होती हैं । कितने अपराध गिनवाऊ यहाँ तो पल-पल कुछ-न-कुछ हो रहा हैं, प्रेम, शादी, नौकरी के नाम पर हर तरह उसे बड़ी ही आसानी से अपने जाल में फंसाया जा सकता हैं और आज के समय में तो मोबाइल, कंप्यूटर इंटरनेट जैसी आधुनिकतम सुविधाओं ने उस पर किये जाने अपराधों में और भी अधिक इज़ाफा कर दिया हैं इस कारण आजकल MMS बनाकर उसे ब्लैकमेल करना, किडनैप कर लेना, झूठी ID बनाकर शादी या प्रेम या नौकरी का झांसा देना, चैटिंग से उसे गलत जानकरी देना, उसके फोटो को गलत तरह से दर्शाना, उस पे दबाब बनाना, उसे बदनाम करना आदि शायद ही कोई क्षेत्र, कोई स्थान, कोई नौकरी हो जहाँ उसके साथ गलत काम ना हुआ हो ।    

अब यदि बात करें इन सभी समस्याओं और चुनौतियों के समाधान की तो इसके लिये सबसे सशक्त और पुरजोर कदम स्वयं महिला को ही उठाना होगा और अब उसे ख़ुद पर होने वाले इन सभी ज़ुल्मों का विरोध खुलकर करना होगा । मुखर लहजे में इसे बर्दाश्त ना करने का आहवान करना पड़ेगा, इस तरह बड़े-बड़े ना सही मगर घर-बाहर होने वाले छोटे-छोटे अन्यायों को तो रोका जा सकता हैं, अपनी पढाई, अपने सपनों, अपने प्रति पक्षपात के रवैया, छेडछाड, जबरदस्ती का जवाब अब उसे ख़ुद देना पड़ेगा । कन्या भ्रूण हत्या के लिये वो इंकार कर सकती हैं, कानून का सहारा ले सकती हैं, कोई भी साथ ना हो तो ख़ुद पर भरोसा कर संतान को जन्म देने का निर्णय ले सकती हैं । उसे अपने उस डर पर भी काबू पाने की जरुरत हैं, जो उसे इन सभी जुल्मों को चुपचाप सहने के लिये मजबूर करता हैं, उसे समझना होगा कि समाज, घर-परिवार, ससुराल की मान-मर्यादा ये सब खोखले भय हैं जिनकी वजह से वो ना चाहते हुए भी इनका विरोध नहीं कर पाती । एक बार गर वो ये जान ले कि इन सबके बिना भी उसका अस्तित्व कायम रह सकता हैं, उसने ही इन सबको पैदा किया हैं, वही जननी हैं फिर उसे अपने ही अंश को पैदा करने का अधिकार क्यों नहीं ?

जितने भी तरह के अपराध उस पर किये जा रहे हैं उतने ही तरह के हल भी उसे खोजने होंगे क्योंकि कोई उसे बचाने नहीं आयेगा उसे अपनी रक्षा स्वयं ही करनी होगी और जब वो बोलना शुरू कर देगी तो अपने आप माहौल में भी परिवर्तन आयेगा और इसकी शुरुआत उसे जन्म देने से ही करनी पड़ेगी । यद कानून का पालन सही ढंग से नहीं किया जाता हैं तो उसे दृढ़ता से इस बात को बोलना चाहिए अपने ससुराल के डर से मुंह बंद कर नहीं बैठना चाहिए । बलात्कार जैसे मामलों में भी जब कानून कुछ नहीं कर पा रहा तो अब औरत को ये समझ लेना चाहिए कि इसका हल उसे ही खोजना हैं, उसे ही ख़ुद को इतना मजबूत बनाना होगा कि इन जालिमों को सबक सिखा सके, जहाँ तक संभव हो अकेले कहीं ना जाये, जिन अपराधों को सावधानी या जानकारी होने के कारण रोकना संभव हैं वहाँ उसे सतर्क रहना चाहिए, ब्लैकमेल होने की दशा में भी एक बार के बाद अपने डर पर काबू पाना चाहिए ना कि किसी के हाथ का मोहर बन जाना चाहिये, बहुत से जगह तो वो सिर्फ़ अपने आप में बदलाव लाकर कुछ घटनाओं को तो रोक सकती हैं । इसके अलावा समाज की सोच में भी परिवर्तन जरूरी हैं जो हर प्रकरण में औरत को ही दोषी समझता हैं और उससे ही चरित्र का प्रमाण-पत्र मांगता हैं, कोई उसे छेड़े, उसके साथ दुराचार करें, उसे उठा ले जाये, धक्का मारे तो पहली ऊँगली उस पीड़िता पर ही उठाई जाती हैं उसे ही सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया जाता हैं उसमें ही दोष ढूँढने की कोशिश की जाती हैं सबसे पहला सवाल उससे यही पूछा जाता हैं कि ये सब तुम्हारे साथ ही क्यों हुआ ? इन्हीं कारणों से तो औरतों पर जुल्म करना सबसे सुविधाजनक होता हैं क्योंकि यहाँ हर हाल में पीड़िता ही दोषी ठहराई जाती हैं और अन्यायी सीना तानकर घूमता हैं ।       

जब तक कानून को थोडा-सा सख्त न बनाया जायेगा अपराध पर अंकुश न लग पायेगा अन्यथा जनता के द्वारा दीमापुरजैसी घटनाओं को दोहराया जायेगा... फिर संविधानही लजायेगा ।
____________________________________________________
१४ अप्रैल २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: