राह में
चलते-चलते
रुक गये थे कदम
एक हसीन रहगुज़र पर कहीं...
.....
फिर हुआ यूँ कि
रफ़्ता-रफ़्ता ही सही
पहुँच गये मंजिल तक राही
सभी
और... हम एकाकी खड़े रह गये
वहीँ...॥
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मित्रों...,
बचपन में हम सबने ही ‘कछुए’ और ‘खरगोश’ की कहानी सुनी हैं जिसमें तेज-फ़ुर्तीला दौड़ने वाला और खुद को सबसे ज्यादा चतुर-चालाक एवं समझदार समझने वाला नन्हा ‘रेबिट’ स्वयं को पहले से ही विजेता मानकर एक दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेता हैं लेकिन बीच रास्ते में बड़े-बड़े छायादार फल से लदे वृक्ष के अलावा चलती हुई ठंडी-ठंडी हवा के झोकों से मदहोश होकर सोचता हैं... बेचारा रेंग-रेंगकर चलने वाला वो ‘कछुआ’ मेरी बराबरी नहीं कर पायेगा अतः तनिक विश्राम कर लूँ फिर जीत तो मेरी हैं ही अभी दो छलांग मार कर पहुँच जाऊँगा पर हुआ क्या ? उसकी सारी हेकड़ी और चौकड़ी मारकर भागने की ईश्वर प्रदत्त काबिलियत धरी की धरी रह गयी अंततः जीत धीमी गति से चलने वाले ‘कच्छप’ की ही हुई वजह...? केवल दो पल की नींद का लालच और अपने आप पर झूठा गुमान उसके उपर सदा के लिये ‘पराजय’ का निंदनीय ठप्पा लगा गया... और हम सब पीढ़ी दर पीढ़ी महान गुरुदेव ‘विष्णु शर्मा’ द्वारा लिखित मुर्ख राजकुमारों को ज्ञानवान बना देने वाली पक्षियों-जानवरों के माध्यम से बड़ी सरलता से बड़े-से-बड़े सबक देने वाले संजीवनी ग्रंथ ‘पंचतंत्र’ की इस अमर कथा के साथ-साथ अनगिनत रोचक संदेशयुक्त कहानियों को पढ़ते-सुनते आ रहे हैं लेकिन सबक तो उसी ‘खरगोश’ की तरह भूलते जा रहे या बोले कि हम भी इसी भरम में जीते कि हमें सब पता हैं और हम देर-सवेर सब व्यवस्थित कर लेंगे लेकिन जब तक समझ पाते बड़ी देर हो चुकी होती ।
सिर्फ यही एक किस्सा नहीं
हमारे ‘धर्मग्रंथ’ और ‘साहित्य’ ऐसे न जाने कितने उदाहरणों
एवं दृष्टान्तों से भरे पड़े हैं जो महज काल्पनिक नहीं बल्कि हकीकत का हिस्सा हैं
पर हम सब की आदत बन चुकी हैं कि हम उन सबको पढ़कर उनसे मिलने वाली सीख को बड़ी आसानी
से नज़रअंदाज़ कर देते तभी तो जिंदगी के ऐसे कई फ़ैसले ले लेते या किसी ऐसे मोड़ पर
मुड़कर चले जाते जहाँ से आगे अंधकार के सिवा कुछ नहीं मिलता इसलिये जरूरी हैं कि हम
समय-समय पर उन सभी सबक को भी दोहरा ले या याद कर ले जो वक्त ने हमें सिखाये या
हमने ही अपने तजुर्बों से हासिल किये क्योंकि हमारी ‘स्मृति’ चंचल तो हैं ही साथ हमारा ‘कोष’ भी बड़ा लघु हैं जिसमें केवल चुनिंदा बातें ही सहज पाते हैं
गर, ऐसा नहीं होता तो अपनी गलतियों को दोहराते नहीं न ही उम्र
के हर पड़ाव पर मिलने वाले ज्ञान के मोतियों को भी यूँ ही छोड़ देते बल्कि हम तो
इनकी मदद से इतने अनुभवों और शिक्षा के मामले में इतने अधिक धनवान बन चुके होते कि
आज सबसे ‘अमीर’ होते क्योंकि यही तो वो
एकमात्र खज़ाना हैं जो बाँटने से बढ़ता जिसे चोरों का भी डर नहीं होता बल्कि ये तो
आजीवन हर दिन, हर पल, हर जगह से प्राप्त किया जा
सकता हैं इसलिये तो ऐसी उक्तियाँ बनी कि जिसके पास अक्ल की दौलत हैं उसे किसी भी
संपति की जरूरत नहीं न ही कभी किसी पर आश्रित होना पड़ता हैं ।
हमेशा से सुनते आये हैं कि
हर किसी को भगवान की तरफ से किसी-न-किसी अनमोल ख़ासियत से नवाजा गया हैं और उसी से
उनकी पहचान बनती जिसे अमूमन हम ‘गॉड गिफ्ट’ कहते पर, हमें लगता कि हम बदनसीब
हैं जिसको ईश्वर ये देना भूल गये लेकिन शायद, हम ही
इसे देख या समझ नहीं पाते तभी तो वो ‘खरगोश’ भी जो दौड़ने की अद्भुत क्षमता से भरा हुआ था उसका सही
इस्तेमाल नहीं कर पाया याने कि हम भी अपने उस हुनर का सदुपयोग नहीं कर रहे जो अपने
परवरदिगार की तरफ़ से हमें प्राप्त हैं... हम न जाने कितने ऐसे ‘सुपर हीरो’ की कहानियां पढ़ते जिनके
पास ‘जादुई शक्तियाँ’ या ‘यंत्र’ होते जिनसे वो अपनी सभी
इच्छायें पूर्ण कर लेते और कुछ लोग 'अलादीन' की तरह उसी 'जादुई
चिराग़' के मिलने का इंतजार करते रहते जबकि यदि हम अपने में ही
मौजूद ताकत को जानने का प्रयास करें तो अपनी शख्सियत को ‘कोहिनूर’ की तरह नायाब बना सकते
मुश्किल तो कुछ भी नहीं क्योंकि कमी केवल हमारी ही सोच या फिर लापरवाही की होती जो
हमें अपने लक्ष्य से भटका देती अतः हमें हर काम को न सिर्फ़ बड़ी सावधानी से बल्कि
सजगता से करना चाहिये क्योंकि एक छोटी-सी गलती या एक छोटा ही सही गलत प्रयास हमारे
ख़्वाब को साकार होने से, भविष्य की तस्वीर को साफ होने से रोक सकता हैं या फिर हमारी
छवि को बिगाड़ सकता हैं बिल्कुल उसी तरह जैसे कि ‘कुम्हार’ की एक भी त्रुटि उसके द्वारा बनाये जा रहे पात्र को
टेड़ा-मेडा या बेडौल कर देती... तो फिर ख़ुद से गाफ़िल न रहो... न ही अपनी ही जगह पर
बैठे रहो... हर कदम खूब देखभाल कर चलो... अपनी मंजिल ख़ुद गढ़ों... :) :) :)
!!!
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१६ अप्रैल २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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