शनिवार, 4 अप्रैल 2015

सुर-९२ : “काव्य रचना श्रृंखला : ‘अंतिम दिन... अंतिम रचना...!!!"


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मित्रों...,


आज पिछले तीन दिनों से चलाई जा रही काव्य श्रृंखलाका अंतिम दिवस हैं और आज मैं इस विजयी रथ की कमान अपनी सखी 'आभा गुप्ता' के हाथों में थमाती हूँ... इस उम्मीद और पूर्ण विश्वास के साथ कि वे अब इस रथ को रुकने नहीं देगी बल्कि आगे अगले चार दिनों तक इसी प्रकार अलग-अलग रचनाओं के माध्यम से नये रचनाकारों के नामांकन की परंपरा से इसे आगे बढ़ायेगी... मैं आज इस श्रृंखला के अंतिम  दिवस  में फिर एक गुस्ताखी करने जा रही हूँ इसे माफ़ ना करें... कृपया जरुर पढ़े... एक बार पुनः ‘गुलज़ार साहब’ के द्वारा इज़ाद की गई काव्य विधा ‘त्रिवेणी’ में अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करने का प्रयास  कर रही हूँ

‘गुलज़ार साहब के कथनानुसार इस तरह की काव्य विधा में तीन पंक्तियाँ होती हैं जो कि स्वतंत्र होते हुये भी आपस में जुडी होती हैं तथा प्रथम एवं अंतिम पंक्ति में एक ही भाव का विस्तार किया जाता हैं तथा जब इसे पढ़ें तो अर्थपूर्ण तो हो ही साथ पहली और आख़िरी या पहली एवं दूसरी या फिर मध्य और अंतिम जिसे भी एक साथ पढ़े वो दोनों मिलकर अपने आप में मुकम्मल प्रतीत हो और अपने अर्थ को स्पष्ट करें अतः सुधिजनों से अपेक्षा हैं कि वो अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी से मुझे अनुग्रहित करने की ये जहमत उठाये तो मैं उसे सुधार पाने में सक्षम हो सकती हूँ... :) :) :) !!! 
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०४ अप्रैल २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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