मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

सुर-११७ : "जीवन की पाठशाला...!!!"

वो भी
रोई थी
बहुत जोर-से
चीखकर
होते ही पैदा
पर...
न दिया किसी ने
दिलासा ही....
...
और...
कच्ची उम्र में
मिल गया
जीने का
पक्का सबक
कि रोने से
कुछ नहीं मिलता
रोकर या हंसकर
जैसे भी जियो
जीना तो हैं ही...!!!
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मित्रों...,

एक ही जगह पर महल और झोपड़ी में रहने वाली दो अलग-अलग शख्सियत की जिंदगी का फलसफ़ा हमें बताता कि जीना एक अलहदा सबक हैं... जिसे जीवन की पाठशाला में रहकर ही सीखा जाता हैं वो भी बिना किसी गुरु के अपने ही आप अपने मन से अपने आस-पास की हर शय को खुली आँखों से देखते हुये...


सर से पांव तक हीरों के गहने से सजी सिल्क की साड़ी पहने 'ख़ुशी' पड़ी थी मखमल से नर्म बिछौने पर महल जैसे आलिशान घर में एकाकी उदास क्योंकि जिस रईसजादे से उसकी शादी हुई थी उसके पास जरा भी वक़्त नहीं था उसे देने के लिये और उसका घर से बाहर निकलना या कोई काम करना उनके खानदान के खिलाफ़ था तो सिवा इसके कोई चारा नहीं थी कि वो चुपचाप यूँ ही बैठे-बैठे आंसूं बहाती रहें ।

जब वो पैदा हुई तो उसकी माँ मर गयी तो गुस्से में उसकी दादी ने उसे अभागी कहना शुरू कर दिया फिर यही उसका नाम पड़ गया घर में दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ तो मुश्किल से होता लेकिन अभागी बचपन से मिट्टी की गोद में पली, पत्थरों से खेली, जो मिल जाये वो खा लेती, फूलों को देख खुश होने वाली, चाँद सितारों को अपना साथी मानने वाली हर हाल में खुश रहना जानती थी दादी पिता या कोई सताता भी तो हंसती रहती जो काम कहा जाता उसे मुस्काते हुए करती क्योंकि उसने पैदा होते ही सीख लिया जीने का पहला पाठ शायद, इसलिये तो जन्म लेते ही वो बड़ी तेज आवाज़ में चीख-चीखकर रोई जैसे उसे अपनी माँ के जाने का अहसास हो गया हो पर... जब उसके रोने से किसी ने उसके मुंह में दूध न डाला फिर धीरे-धीरे उसने जान लिया कि रोने से कुछ नहीं मिलता शायद, वे बच्चे जिनके रोने पर माँ उनको दूध पिलाती हैं या उनके माता-पिता उनकी हर फरमाइश पूरी कर देते हैं वे यही समझते कि रोने से ही सब कुछ मिलता ।

अब जब जीना तो हैं ही तो फिर उसे रोते हुए क्यों बिताना कुछ मिले तो ठीक और न भी हो तो गम न करना क्योंकि ऐसा करने से भी वो नहीं मिलेगा वो बहुत रोती थी माँ के लिए लेकिन वो कभी भी उसे प्यार करने नहीं आई उलटे पिता ही दूसरी शादी कर उसे छोड़ कर चले गये पर इस बात ने उसे जिंदा रहने का गुरुमंत्र दे दिया । इसी तरह हम सबको अपने जीवन में बहुत कुछ सीखने मिलता पर हम ही अपने आप गम में गुम या दूसरों को देखकर दुखी रहते और जीना भूल जाते... जिसे सीखने के लिए कोई स्कूल नहीं पूरी दुनिया ही एक पाठशाला होती जहाँ आजीवन हर पल कुछ नूतन सीखने मिलता जो हम पर होता कि हम उसे अपनाये या भूलकर आगे बढ़ जाये... :) :) :) !!!
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२८ अप्रैल २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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