शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

सुर-१०६ : "लघुकथा : ‘उगालदान’...!!!"

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मित्रों...,


आज फिर अपनी वाइफ से ये ताना सुनकर कि... तुम भले ही कंपनी के 'सी.ई.ओ.' हो लेकिन कभी भी ये मत भूलना कि ये सारी शानो-शौकत, धन-दौलत मेरे डैड की हैं... जिसकी वजह से लोग तुम्हें मान-सम्मान देते हैं"... उसने तुरंत अपने पी.ए. को बुलाकर दिमाग में ‘सोडा बोटल’ की तरह उबाल मार रहे बेइज्जती के झाग को उगल दिया था ।

फिर उसके बाद पी.ए. ने मेनेजर, मेनेजर ने सी.ए., सी. ए. ने अकाउंटेंट, अकाउंटेंट ने प्रोग्रामर, प्रोग्रामर ने अपने असिस्टेंट, असिस्टेंट ने अपने स्टेनो, स्टेनो ने चपरासी और चपरासी ने घर आकर अपनी बीबी पर क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरूप अंदर चल रहे गुस्सेल विचारों की उलटी कर दी अब सब खुद को एकदम रिलैक्स तनावरहित महसूस कर रहे थे ।
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१७ अप्रैल २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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