शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२१३ : #सूटकेस_में_बंद_ज़िंदगी



  
आज सुबह-सुबह
खोला जब अख़बार तो
सुर्खियों पर नजर पड़ी
जहाँ लिखा था कि,
सूटकेस में बंद
एक नवजात बच्ची मिली
धड़का लगा जोर से
अनायास नम हो गई आँखें भी
जेहन की सुई गई अटक
उफ, एक ज़िंदगी जिसने अभी
पलकें तक न खोली
कोख से सूटकेस में आ गई
कोई बच्चे को तरसता
तो कोई इस तरह उसे फेंकता
मानो, वो कोई सेनेटरी नेपकिन
या अनुपयोगी सामान हो
कभी उसे कचरे के ढेर में तो कभी
कोख के भीतर ही मार देते
जो बच भी गयी तो
कमी नहीं दरिंदों की यहाँ
जीते-जी उसे वो लाश बना देते
न जाने कब तक बेटियां
अपने आपको साबित करेंगी
न जाने कब सोच बदलेगी
जब बेटा-बेटी केवल
विज्ञापन की इबारत में नहीं
सच में एक समान होंगे
कब तक ऐसी खबरें छपेंगी
सूटकेस में बंद ज़िंदगी
खुलकर जीने को तड़फेंगी
न जाने कब तक ???
इन अनुत्तरित सवालों के जवाब
कब तक बेटियां पूछेंगी
कब वो पूर्णतया सुरक्षित होंगी
घर के भीतर न घुटेंगी
ये बच्ची बच भी गई अगर,
कौन इसकी मां बनेगी
या ये भी मेरी तरह
रेड लाइट पर भटकेगी
रात की रानी बनेगी
नहीं, इसे बचाना होगा ताकि,
बची रहे ममता, बचा रहे ममत्व
नाउम्मीद होकर न ईश्वर
बंद करें सृजन ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०२ अगस्त २०१८

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