शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२१३ : #कविता_ने_चुना_जिसे_स्वयं_राष्ट्रकवि #ऐसे_थे_मैथिलिशरण_गुप्त_कलम_के_धनी




‘सोशल मीडिया’ के जमाने ने लेखन के शौकिया लोगों को अपने सृजन को प्रस्तुत करने एक-से अधिक मंच या प्लेटफार्म प्रदान किये जिसका नतीजा कि वो सब जो कभी छिपकर य अपनी डायरियों में ही अपने अहसासों को लिखा करते थे धीरे-धीरे खुलकर सामने अ गये और इसके साथ ही वे भी जिन्होंने न तो कभी लिखा या जिनके जींस में भी लेखन का कोई गुणसूत्र नहीं था एकाएक दूसरे को देखकर इस कदर प्रभावित हुये कि उनके डी.एन.ए. में छिपे हुये लेखक के गुण अचानक से उभरकर इस तरह से सामने आये कि पुरस्कार, सम्मान व प्रकाशन के मामले में वे स्थायी व प्रतिष्ठित रचनाकारों से भी कहीं आगे निकल गये मगर, इनमें से शायद, ही कोई एक कवि ऐसा हो जिसका कद आदमकद हो और जो साहित्य के क्षेत्र में स्थापित कवियों के चरणों तक भी पहुँच सके जिन्होंने अपने नाम के आगे कवि का टैग लगाने या कोई सम्मान खरीदने के लिये लेखन को नहीं चुना बल्कि, लेखन ने ही इन्हें अपने लिये चुना

इसलिये इनका लिखा हुआ एक शब्द भी निरर्थक या व्यर्थ नहीं रहा और इनकी निस्वार्थ साहित्य साधना ने इनको साधारण से आसाधारण ही नहीं महाकवि बना दिया जबकि, फ़िलहाल जो सक्रिय कवि मंचों पर भी धमाल मचा रहे और एक-एक कवि सम्मेलन के लाखों रूपये कमा रहे वो कभी-भी उस प्रसिद्धि या शिखर को नहीं पा सके और न ही अपने चाहने वालों से वो प्रेम-आदर प्राप्त कर सकेंगे जो इन लोगों ने सहज ही पा लिया क्योंकि, इन्होने किसी लालच से या खुद को सेलेब्रिटी बनाने के लिये नहीं लिखा बल्कि, इन्होने तो आत्म-प्रेरणा से ही कलम उठाई क्योंकि, इनके भीतर इश्वरप्रदत्त प्रतिभा समाई थी तो बिना लिखे ये रह भी न सकते और मिजाज में इतनी संवेदनशीलता कि परपीड़ा से द्रवित हो जाते और किसी ऐ.सी. रूम में बैठकर नहीं बल्कि, दूसरों की वेदना को अंतर से अनुभूत कर के ही कोई भी सृजन किया जिसने इन्हें उन ऊंचाइयों पर पहुँचाया जहाँ इनसे पहले कोई नहीं पहुंचा

ये ऐसे प्रतिमान बन गये फिर कोई दूसरा न इनके जैसा बन सका क्योंकि, उस दौर के सभी कवि या लेखक अपनी विशिष्ट शैली व अभिव्यक्ति की वजह से ही अपनी अलग पहचान बना सके और इस ख़ासियत ने ही इन सबको एक विशेष दर्जा दिलाया यहीं नहीं इन्होने वो ख्याति पाई कि भले ही इनको उतने पुरस्कार या सम्मान न मिले हो पर, वे स्वयं ही सम्मान बन गये जिसे प्राप्त करना भी इनके बस की बात नहीं कि कलम चलाना और अनुभूति के साथ हृदय के लहू को स्याही बनाकर कुछ लिखना दोनों ही अलहदा बातें हैं जिसमें सिद्धहस्त होना भी आसान नहीं पर, जिसे ये सिद्धि हासिल हुई वो स्वयं ही प्रसिद्धि के चरम पर पहुँच जाता और एक ऐसी मिसाल कायम करता जिसके आगे पहुंच पाना दूसरे के लिये नामुमकिन होता ऐसे ही एक कलमकार जिसने कविता को सिद्ध कर लिया था आज उनकी जयंती हैं... मन से नमन महाकवि-राष्ट्रकवि मैथिलिशरण गुप्त जी को जिनकी वजह से हम कविता को समझ सके... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०३ अगस्त २०१८

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