शनिवार, 4 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२१४ : #प्रतिभा_को_भी_होती_कद्रदान_की_दरकार #बनाती_जो_आभास_गांगुली_को_किशोर_कुमार



प्रारंभिक गायकों पर अपने से पूर्व के सुपर हिट गायक ‘के.एल.सहगल’ का इतना गहरा प्रभाव था कि वे रिकॉर्डिंग के समय उसके असर में आकर अपनी मौलिक आवाज़ को भूलकर उसकी तरह ही गाने लगते और ये हादसा ‘आभास कुमार गांगुली’ के साथ भी हुआ इसलिये १९४८ में अपने जीवन की पहली फिल्म ‘जिद्दी’ का पहला फ़िल्मी गीत जब उन्होंने गाया तो अच्छे-से-अच्छे सुनने वाले भी न जा सके कि ये ‘के.एल.सहगल’ की आवाज़ नहीं है क्योंकि, प्रतिभा तो उनमें जन्मजात थी बस, उसको निखारकर उभरने की लिये किस कद्रदान की दरकार थी वो जब मिला तो फिर इतिहास बन गया जिसने उसे हरदिलअजीज सदाबहार हरफ़नमौला फ़नकार ‘किशोर कुमार’ बना दिया जिसके आगे आज तक कोई पहुँच पाया कारण कि सबने उसके जैसा बनने की कोशिश की लेकिन, जो पहले से ही हो उस जैसे दूसरे की जरूरत ही क्या जिस तरह ‘के.एल. सहगल’ के होते हुये किसी नकली ‘सहगल’ की नहीं थी तो ऐसे में अपनी खुद की पहचान को दुनिया के सामने लाने किसी ऐसे पारसमणि सदृश मार्गदर्शक की आवश्यकता होती जो हमारी हमसे ही मुलाकात कराये जिस तरह ‘जामबंत जी’ ने ‘हनुमान’ की कराई थी

‘किशोर कुमार’ के जीवन में ये भूमिका ‘गुलज़ार’ ने निभाई जिन्होंने उनके गीतों की दिशा व रेंज बदल दी और उनसे वे गीत गवाये जो लोगों को लगता था कि उनके द्वारा गाया जाना संभव नहीं और आश्चर्य की बात कि वे खुद भी तो यही समझत थे लेकिन, ‘गुलज़ार’ ने जब उनको अपने शब्द दिये तो फिर उनके भीतर का वो गायक भी जाग गया जो उससे पहले तक देव आनंद, राजेश खन्ना या अमिताभ बच्चन जैसे सुपर सितारों के लिये गाते-गाते उनकी ही आवाज़ बन गया था जबकि, गुलज़ार ने उन्हें उनकी उस आवाज़ से मिलवाया जो उनके भीतर ही कहीं छिपी थी परंतु, अब तक बाहर नहीं निकली थी तो उन्होंने अपनी जादुई कलम से एक से बढकर एक गाने उनके लिये लिखे जो आज तक ‘किशोर’ के सर्वाधिक लोकप्रिय व मधुर गीतों में गिने जाते और मील के पत्थर कहलाये जाते है और इन गीतों में इनकी संजीदगी भी झलकती जो बताती कि एक कलाकार को केवल अवसर ही नहीं उसकी वास्तविक पहचान की भी आवश्यकता होती जिसके रूप में उसके जाने के बाद उसे याद किया जाये

वो संजीदा ‘किशोर दा’ इन गीतों में दिखाई देते है...

हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम
हम अनजान परदेसियों का सलाम

वो शाम कुछ अजीब थी
ये शाम भी अजीब हैं
वो कल भी आस-पास थी
वो आज भी करीब है

कोई होता जिसको अपना
हम अपना कह लेते यारों
पास नहीं तो दूर ही होता
लेकिन, कोई मेरा अपना

मुसाफ़िर हूँ यारों
न घर है न ठिकाना
मुझे चलते जाना है
बस, चलते जाना है

भोर आई गया अंधियारा
सारे जग में हुआ उजियारा
नाचे-झूमे ये मन मतवाला


दिए जलते हैं फूल खिलते है
बड़ी मुश्किल से मगर, दुनिया में दोस्त मिलते है

मैं शायर बदनाम मैं चला...

नदिया से दरिया
दरिया से सागर
सागर से घर जाम
जाम में डूब गयी यारों
मेरे जीवन की हर शाम

ओ मांझी रे...
अपना किनारा
नदिया की धारा है

मैं प्यास तुम सावन
मैं दिल तुम मेरी धडकन
हैं न, हूँ तो...

तुम आ गये हो, नूर आ गया है
नहीं तो चरागों से लौ जा रही थी

इस मोड़ से जाते है
कुछ सुस्त कदम रस्ते
कुछ तेज कदम राहें...

    
इसके अलावा घर, देवता, पलकों की छाँव में, बसेरा, गोलमाल, थोड़ी-सी बेवफ़ाई, गहराई, रत्नदीप, किनारा, नमकीन आदि फिल्मों में इनके संगम ने लाज़वाब गीतों का सृजन किया जिन्हें सुनना ही मानो सुकूं पाना हैं तो आज उनके जन्मदिवस पर यही कहेंगे कि ‘तेरे बिना जिंदगी से शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं... तेरे बिना जिंदगी भी लेकिन, जिंदगी तो नहीं’... वाकई, उनके बिना जिंदगी, जिंदगी नहीं पर, उनके गीतों से गुलज़ार हैं... जन्मदिन मुबारक किशोर दा... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०४ अगस्त २०१८

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