गुरुवार, 23 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२३२ : #आरती_साहा_ने किया_ऐसा_काम #भारतीय_महिलाओं_की_बनी_आन_बान_शान




इतिहास रचने में भारतीय नारियों ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी जब भी उन्हें किसी ऐसे क्षेत्र में अपना हूनर दिखाने का मौका मिला जो उनके लिये प्रतिबंधित या वर्जित माना गया हो तब उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगाकर भी उसमें अपने आपको न केवल सिद्ध किया बल्कि, शीर्ष स्थान भी हासिल किया जो दर्शाता कि उनके भीतर कुछ भी करने की लगन या हिम्मत उतनी ही होती जितनी कि पुरुषों में मगर, उनका पालन-पोषण या शिक्षा उस तरह से नहीं होती तो वे अपनी काबिलियत को घर की चारदीवारी या गृहस्थी के कामों में ही सीमित कर लेती मगर, जब भी किसी माता-पिता ने अपनी बेटी पर विश्वास किया और उसे अपने फन को निखारने के लिये सभी सुविधायें मुहैया कराई व उसे दिखाने के लिये अवसर उपलब्ध करवाये तो फिर उसने भी उनके भरोसे को टूटने नहीं दिया

कुछ ऐसा ही करिश्मा कर दिखाया था आज से लगभग ७८ साल पूर्व २४ सितंबर १९४० को एक बंगाली हिंदू परिवार में जन्मी ‘आरती साहा गुप्ता’ ने यूँ तो उनके पिता ‘पंचगोपाल साहा’ सेना में एक साधारण कर्मचारी थे और जब वो केवल २ वेश की नन्ही बच्ची थी उनकी माँ उन्हें अपने पिता की गोद में छोड़कर उनसे बहुत दूर चली गयी ऐसे में पिता ने न केवल माँ का फर्ज़ निभाया बल्कि, पिता की भूमिका में खुद को पारंपरिक बेड़ियों में बांधने की जगह लड़कों की तरह बिंदास उसको पाला-पोसा और चाचा ने उंगली पकडकर उसे हुगली नदी में तैरना सिखाया जिसकी चंचल लहरों में खेलकर उसने अपने भीतर की जलपरी को महसूस किया तो उसके पिता ने भी उसकी काबिलियत को पहचान अपनी बेटी को ‘हटखोला स्वीमिंग’ क्लब में भर्ती करा दिया

जिसकी वजह से सन १९४६ में मात्र पाँच वर्ष की आयु में ‘आरती साहा’ ने ‘शैलेन्द्र मेमोरियल स्वीमिंग’ प्रतियोगिता में 110 स्वर्ण गगन के फ्रीस्टाइल में अपने जीवन का पहला स्विमिंग ‘स्वर्ण पदक’ जीतकर ये साबित कर दिया कि उनका जन्म तो तैराक बनने के लिये ही हुआ है उसके बाद उन्होंने लगातार अलग-अलग स्पर्धा में प्रतिभागिता करते हुये कोई न कोई स्थान हासिल किया जिसे देखकर उसके पिता ने उसकी नन्ही-नन्ही आँखों में ‘इंग्लिश चैनल’ तैरकर पार करने का ऐसा सपना बोया कि जवान होकर उसे ही पुष्पित-पल्लवित करने के लिये तैयारियां शुरू कर दी जिसमें कुछ आर्थिक कठिनाइयाँ आई तो सभी ने उनकी सहायता और जो कमी थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु जी ने भी उनकी हरसम्भव मदद का वादा किया

इस तरह २९ सितम्बर १९५९ को उन्होंने अपने असाध्य लक्ष्य को प्राप्त करने केप ग्रिस नेज़, फ्रांस से अपनी यात्रा शुरू की और ४२ मील की कठिनाइयों भरी दूरी को तैरते हुए १६ घंटे, २० मिनट में पार कर इंग्लैंड के तट पर पहुंच अपने भारत का झंडा फहराकर उन्होंने इतिहास रच दिया वो प्रथम भारतीय महिला बनी जिन्होंने महज़ १९ साल की उम्र में ये अभूतपूर्व कारनामा कर दिखाया जिसके लिये उन्हें १९६० में ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित किया जिसे पाने वाली भी वे पहली महिला खिलाडी थी उनकी इस उपलब्धि को सरकार ने डाक टिकट में छापकर सदा-सदा के लिये अमिट बना दिया और अपने इस असाधारण कार्य से उन्होंने महिला सशक्तिकरण की मिसाल भी कायम की जिससे प्रेरणा पाकर अन्य महिलायें भी इस क्षेत्र में आई और ये हमारा दुर्भाग्य कि आज ही के दिन २३ अगस्त १९९४ को पीलियाग्रस्त होने के कारण वे हमें अल्पायु में ही छोड़कर चली गयी लेकिन, आज भी उनकी ये कहानी हर भारतीय महिला को गर्व से भर देती है

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२३ अगस्त २०१८

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