बुधवार, 22 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२३२ : #कैसे_कहूँ_ईद_मुबारक #बन_आई_बकरे_की_जान_पर




ईश्वर ने जानवरों को मूक बनाया तो इसका मतलब ये नहीं कि उन्हें भावनारहित और हर दर्द, हर पीड़ा से प्रूफ भी बनाया उनके भीतर हर एक संवेदना या अहसास उसी तरह होते जैसे कि हमारे अंदर और उनके अंग या तंत्र भी याने कि हर एक शारीरिक सिस्टम भी सब कुछ हमारी तरह ही होता इसलिये वो भी हमारी तरह चलते-फिरते, दौड़ते-भागते, खाते-पीते केवल, हमारी तरह ऐसा खतरनाक मस्तिष्क नहीं उनको दिया जिसके चलते हम शातिर या धूर्त बन जाते और उन निरीह, कमजोर व अबोले चोपायों को अपनी जागीर समझ जैसा चाहे वैसा अत्याचार करते भले, देश में उनके लिये कानून है पर, इसी देश में कसाई खाने भी तो है जहाँ इन भोलेभाले मासूम जानवरों को बड़ी निर्दयता से मारा जाता किसलिये ?

सिर्फ़, अपनी चटोरी जीभ के लिये जिसे हम दूसरी तरह से भी संतुष्ट कर सकते है लेकिन, हमने तो आदिम युग में मजबूरी में जो एक बार कोई शिकार कर खा क्या लिया हमने ये जान लिया कि हम इनका भक्षण कर सकते तो बस, उस दिन से ये सिलसिला शुरू हुआ जो आज तक जारी जबकि, हम सभ्य हो चुके और उनके बारे में सभी तरह की जानकरियां प्राप्त कर चुके पर, हमारी जीभ को तो ऐसा खून लगा कि एक के बाद एक सब को आज़माकर देख लिया तब भी लालसा खत्म न हुई बल्कि, हमने तो अपनी भूख को कायम रखने तरह-तरह के शोध व दावे प्रस्तुत तक कर दिये कि फलां बीमारी या कमी के लिये किस जानवर के किस अंग का उपयोग करना हैं यदि किसी ने हमें टोका या इसे गलत बताया तो अपने कुतर्कों से उसे ही धराशायी कर दिया याने कि अपने चालाक दिमाग का हमने भरपूर प्रयोग कर ये सिद्ध कर ही दिया कि मांसाहार श्रेष्ठ है ताकि, अगली दफा कोई हमें टोके नहीं, न ही हम पर जीव हत्या का आरोप लगाये क्योंकि, पेट भरना किसी भी कानून में जुर्म नहीं तो फिर उसे भरने किसी की जान लेना गलत क्यों ? 

कहने का तात्पर्य कि जो हमसे सवाल करे हम उस पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देते और जो इतने पर भी अगला हमको अहिंसा या शांति का संदेश दे तो फिर ‘मज़हब’ की आड़ लगा देते जिसका कोई तोड़ नहीं और जिसके आगे हर तीर-तलवार और हर हथियार बेकार बोले तो अपनी मनमानी करने के लिये हमारे पास सारे अस्त्र-शस्त्र है यदि वाकई हमने शास्त्र पढ़े व समझे होते तो जानते कि उनमें लिखी बातों का हम वही अर्थ निकालते है जो हम चाहते न कि वो जो उसमें लिखा होता किसलिये ? क्योंकि, यहाँ सब अपनी मान्यता को सही मानते तो उसे स्थापित करने बार-बार दोहराते ताकि, कोई उसे पढ़ने की जेहमत न करे और हम जो कहे उसी ही अंतिम सत्य मान ले यदि ऐसे नहीं होता तो ‘बकरीद’ पर बेबस बकरे की कुर्बानी को सही ठहराने वाले इस सम्बन्ध में ‘क़ुरआन’ में जो कहा गया है कि- 'न उनके (अर्थात् क़ुर्बानी के जानवर के) ग़ोश्त अल्लाह को पहुँचते हैं, न ख़ून, मगर, अल्लाह के पास तुम्हारा तक़बा (मानसिक पवित्रता) पहुँचता है’ उसके वास्तविक मायने समझते ।

जिसका स्पष्ट अर्थ यह है कि अल्लाह के पास केवल इन्सान के दिल की कैफ़ियत पहुँचती  है जो निसंदेह करुणामय नहीं होगी यदि होती तो एक निर्दोष मूक जानवर को जिबह करने की बजाय मन की सफ़ाई करते उसमें ऐसी पाक भावनायें भरते जिससे समाज व देश को तरक्की की राह पर आगे ले जाया जा सके न कि धर्मग्रंथों में लिखी इबारतों की गलत व्याख्या कर मानवता के खिलाफ जंग छेड़ी जाये कहने का तात्पर्य केवल इतना कि जब इंसान स्वयं ही अल्लाह का नेक बंदा बन जायेगा तो वो कुर्बानी में किसी की जान न लेकर अपने अंतर्मन की पवित्र भावनायें समर्पित करेगा और इंसानियत को बचाने अपना आप कुर्बान करने की तमन्ना करेगा पर, यहाँ तो मांस सेवन को जायज ठहराने न केवल उसे धार्मिक उत्सव का रूप दे दिया गया बल्कि, उसके लिये कुरआन की आयतों को भी अपनी तरह से बदल दिया गया आज के दिन न जाने बकरों पर क्या गुजरती होगी ???

मुझे पता आप में से अधिकांश कहेंगे, उसे तो पैदा ही इसलिये किया गया तो उसे कुछ भी महसूस क्यों होगा भला ? क्या वाकई भगवान् ने जानवर खाने के लिये बनाये ? क्या उनका कोई अन्य प्रयोजन नहीं ? क्या ये सच नहीं कि हम बेहद लालची जिसने जानवर ही नहीं कुदरत की हर सक शय को अपनी संपत्ति समझकर उसे बर्बाद कर दिया ? अब इस वजह से जब खुद मौत की कगार पर पहुंच रहे तब भी उसे भी नहीं देख रहे कि किस तरह प्रकृति से खिलवाड़ करने का भुगतमान हमें आपदाओं को भोगकर देना पड़ता क्या लगता आपको कयामत इससे कुछ अलग होगी ?

ये उसका ट्रेलर है जनाब, अब भी संभल जाइये वरना, प्रकृति के आगे किसी की नहीं चलती वो जब बिगड़ती तो फिर समूल नष्ट करती बद्दुआ सिर्फ हमें ही नहीं इन मूक पशुओं को भी देना आता है जिनकी प्रभु डायरेक्ट सुनता । पृथ्वी अत्याचारों से मजबूर होकर ‘गाय’ का रूप धारण कर ही अपनी पुकार लेकर जाती तब हम मूक होकर उसके द्वारा बिना हलाल किये ही मारे जाते जिसका सेवन गिद्ध भी नहीं करते सड़-सड़कर जान गंवाते है ।    

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ अगस्त २०१८

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