गुरुवार, 30 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२४० : #बरसात_में_मिले_गीतकार_शैलेंद्र #जिनको_गीतों_के_सब_आज_भी_फैन




बरसात में
हमसे मिले तुम सजन
तुमसे मिले हम
बरसात में...

१९४८ का दौर देश आज़ाद ही हुआ था और फिल्मों में भी नये-नये प्रयोग हो रहे थे नवयुवक राज कपूर अपनी नई कहानी ‘बरसात’ के निर्देशन की तैयारी में जुटे थे जिसमें उनके साथ काम करने वाली पूरी टीम ही लगभग उनकी ही तरह जोश व उमंग से भरी युवाशक्ति का संगम उस वक़्त तो किसी को ये इल्म नहीं था कि वे जो काम करने जा रहे हैं उसके जरिये फ़िल्मी दुनिया में ब्लाक बस्टर जैसी कोई धमाका मूवी की शुरुआत होगी जो बॉक्स ऑफिस के आंकडें ही नहीं फिल्म मेकिंग के भी सभी प्रचलित ट्रेंड बदलने वाली हैं उनकी उस टीम में केवल एक शख्स की कमी थी जिसका कविता पाठ सुनकर उन्होंने कभी उन्हें अपने लिये गीत लिखने का ऑफर दिया था परंतु, उस वक़्त तो उनके मन में मनोरंजन की इस दुनिया के प्रति न ही कोई आकर्षण और न ही कोई सम्मान था तो उसे ठुकरा दिया लेकिन, उनका तो जन्म ही इस जगत में अपने गीतों के जरिये सबके दिलों में अपनी एक अलग जगह बनाने और अपने नाम का परचम सारी दुनिया पर लहराने के लिये हुआ था तो थोड़ी देर लगी पर, एक दिन वे भरी बरसात में खुद चलकर ‘राज कपूर’ के पास आये और उस प्रस्ताव को स्वीकार किया उनकी इस यादगार मुलाकात ने उनके सृजनात्मक मस्तिष्क में कुछ ऐसा समां बाँधा कि एक गीत ‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम...’ का मुखड़ा तो वहीँ बन गया और १९४९ में जब फिल्म प्रदर्शित हुई तो क्या हुआ किसी को बताने की जरूरत नहीं उसके गाने आज भी लोगों की जुबान पर जब-तब आ ही जाते है इसके साथ ही शैलेंद्र ‘राज कपूर’ की कंपनी के स्थायी गीतकार बन गये और उन्होंने एक से बढ़कर एक गीतों की झड़ी लगा दी जिसमें जीवन के हर रंग देखने मिलते है

आवारा हूँ, आवारा हूँ
या गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूँ
आवारा हूँ, आवारा हूँ...

इसके बाद आई १९५१ में ‘आवारा’ जिसने देश ही नहीं विदेश में भी धमाल मचा दिया और ‘शैलेंद्र’ ने हर तरह के मिज़ाज के गीत लिखकर ये साबित कर दिया कि ‘राज कपूर’ ने उन पर विश्वास कर गलत नहीं किया और उनकी वास्तविक जगह यही है तो फिर जो सिलसिला शुरू हुआ उसने लगातार उनको ऊंचे पायदान पर पहुंचाते हुये अंततः शीर्ष पर स्थापित कर दिया आखिरकार उनके तरानों में साहित्य जो बसा था और उनकी कविताई में गहन जीवन दर्शन के साथ-साथ मानवीय मनोविज्ञान भी समाया था तो उन्हें सुनना एक अलग ही तरह की अनुभूति देता चाहे फिर वो ‘राज कपूर’ के लिये लिखे गये उनके गाने हो या किसी भी अन्य कलाकार या नायिका पर पिक्चराइज उनके शब्द सीधे दिल में उतरते थे जो कहानी की सिचुएशन के साथ-साथ उसी तरह की अवस्था से गुजरते किसी भी श्रोता की मानसिक अवस्था से इस तरह से फीट बैठते कि उसे अपने ही भीतर के उमड़ते-घुमड़ते भावों का सटीक अहसास होता तभी तो वो गीत उसके अपने जीवन का भी हिस्सा बन जाते फिर जब भी वो बजे तो सुनने वाले अपने आप उस समय में पहुँच जाये ऐसी ख़ासियत जिसकी भी कलम को हासिल वो अमर हो जाता जिस तरह से ‘शैलेंद्र’ अपने गीतों में जिंदा हैं और हमेशा रहेंगे जब तक लोगों के अंतर में उनको महसूस कर पाने की संवेदना शेष हैं         

छोटी सी ये ज़िंदगानी रे
चार दिन की जवानी तेरी
हाय रे हाय
ग़म की कहानी तेरी....

वाकई, जीवन छोटा हैं मगर, यदि उसमें ‘शैलेंद्र’ के गीत आपके साथ हैं तो अकेलेपन का दर्द कभी नहीं सालेगा और हर दिल यही कहेगा... मैंने दिल तुझको दिया... जन्मदिन मुबारक हो हर दिल अजीज जन मन के गीतकार शैलेंद्र... हर कोई हैं जिनका फैन... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० अगस्त २०१८

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