मंगलवार, 14 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२१४ : #डिजिटल_देशभक्ति_मत_दिखाओ #सच्चे_इतिहास_को_समझो_और_बढ़ाओ





आज़ादी की पूर्व संध्या से ही हर किसी का मन देशभक्त होने लगता और मन ही मन उन सभी तरानों को गुनगुनाने लगता जिसमें वतन का जिक्र हो ये आज़ादी की बयार का असर होता जो सबके भीतर एक समान अनुभूति उत्पन्न करती जिसे देखकर लगता कि वाकई हम सब एक है जिनके दिलों में अपना देश बसता है और जिनकी धडकनों में राष्ट्रगीत गूंजता हैं जिसके सम्मान में सर गर्व से तनकर खड़ा रहता हैं हम भारतवासी हर मौसम, हर तीज-त्यौहार के अनुसार अपने आपको बदलने का हुनर जानते हैं जिसमें कुछ भी गलत नहीं क्योंकि, जब जैसा माहौल हो उसी के रंग में रंग जाना ही हमें जीवंत बनाये रखता हमारे भीतर ऊर्जा का संचार करता परंतु, जब इन सब अहसासों में बनावटीपन शामिल हो जाता तो फिर चाहे वो कितना भी आकर्षक क्यों न हो पर, सामने वाले को प्रभावित नहीं कर पाता जैसा कि आज के इस तकनीकी युग में दिखाई दे रहा हैं

‘डिजिटाइजेशन’ के इस जमाने में पता न चला कि कब भावनायें भी डिजिटल हो गयी और नसों में सिग्नल्स की तरह बहने लगी जिसका परिणाम ये हुआ कि इंसान धीरे-धीरे ‘रोबोट’ में परिवर्तित होने लगा और जिस तरह की प्रोग्रामिंग मार्केट के द्वारा की जाती उसी के अनुसार उसका व्यवहार दिखाई देने लगता क्योंकि, अब वो खुद कुछ तय नहीं करता बल्कि, बाजारवाद के मार्फ़त जो उसे दिखाया जाता वो वैसा ही सोचने लगता है । इसका नतीजा ये हुआ कि कभी वो उसकी लहर में बहकर ‘वैलेंटाइन्स वीक’ मनाता तो कभी ‘होली’ और कभी ‘मदर्स’ या ‘फादर्स डे’ तो कभी ‘फ्रेंडशिप डे’ और कभी अपने राष्ट्रीय पर्व या सांस्कृतिक उत्सव जिसे किस तरह और किन वस्तुओं के द्वारा मनाना वो भी बाज़ार ही निश्चित करता और फिर उसका इतना प्रचार-प्रसार करता कि आदमी को लगने लगता यदि उसने इसे नहीं अपनाया या लिया तो उसका ये आयोजन अधूरा या बेकार है तो वो किसी भी तरह उसे ले लेता जिससे कि किसी से कम न दिखाई दे इस प्रतिस्पर्धा में वो अनजाने ही प्रवेश कर जाता फिर इस चलन का जो अनंत सिलसिला शुरू होता वो उसके अंत तक चलता रहता है ।

अब तो वो अपने मन की संवेदनाओं को ज़ाहिर करने के लिये शब्द भी उधार के लेता क्योंकि, लिखने की जहमत भी नहीं उठाना चाहता तो जो भी जैसा भी संदेश, विडियो या इमेज मिल जाती उसे फटाफट फारवर्ड कर खुद को अग्रणी साबित करना चाहता और कई बार तो ये भी होता कि जो मैसेज वो दूसरों को भेजता उसे खुद भी पूरा नहीं पढ़ता यदि वो बड़ा होता बस, एक बटन दबाकर उसे आगे खिसका अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है । ये सब तब बुरा नहीं जब अवसर एकदम औपचारिक हो तो इस तरह ही उसका निर्वहन किया जाता लेकिन, जब बात हमारे राष्ट्रीय पर्व या दिवस की हो तो उसे आत्मा से महसूस करना जरूरी हैं क्योंकि, बहुत सारे ज्ञात-अज्ञात बलिदानियों के प्राणोत्सर्ग के बाद हमें ये दिन देखना नसीब हुआ जिसे महज़ खानापूर्ति या रस्म निभाकर गुज़ार देना कृतध्नता है ।

हमें उन सबका न केवल स्मरण करना चाहिये बल्कि, इतिहास के उस सच को जानने का भी प्रयास करना चाहिये जो मिथ्या और भ्रामक संदेशों में धूमिल हो रहा और किसी भी सन्देश को सिर्फ तभी फारवर्ड करें जब उसे जानते-समझते हो क्योंकि, झूठ भी हजारों बार बोला जाये तो वो सच हो जाता फिर ये तो लिखित संदेश जो आगे जाकर गलत जानकारी का सुत्रवाहक बन सकते तो इन पर अंकुश लगाये जोक्स या साधारण बातें तो चलता है लेकिन, अपने देश के इतिहास के प्रति संजीदा हो सोशल मीडिया के झूठ व नफरत की आंधी में अंधे न हो यही आज के समय की सच्ची देशभक्ति होगी डिजिटल नहीं न्यूट्रल बने जब तक कि उसके बारे में निश्चिन्त न हो... स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर इतना ही कहना है...☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१४ अगस्त २०१८

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