शनिवार, 25 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२३५ : #भाभी_का_दर्द_जब_ननद_समझती #तब_उसकी_वो_प्रिय_सहेली_है_बनती




हेलो, भाभी मैं तो ट्रेन में बैठ गयी और रात तक पहुंच भी जाऊंगी कल अपने भाई को राखी बांधने अब आप बताओ आपकी तैयारी हुई या नहीं अपने मायके जाने की ख़ुशी में चहकती हुई ‘शिवानी’ ने मोबाइल पर वीडियो कॉल कर अपनी भाभी को चिढ़ाते हुये कहा तो उसकी भाभी ने भी झट उसे अपनी पैकिंग का नजारा दिखा दिया और दोनों खिलखिलाने लगी ।

फोन रखने के बाद ‘मेघा’ यादों में खो गयी जब वो शादी होकर इस घर आई थी तब उसकी ननद ‘शिवानी’ कॉलेज आई ही थी और वो कॉलेज की पढ़ाई खत्म कर गृहस्थी में प्रवेश कर रही थी । दोनों में उम्र का फासला ज्यादा नहीं था पर, नजदीकियां भी नहीं थी आखिर, ननद-भौजाई का रिश्ता वैसे भी कुछ खास आशाजनक होता नहीं तो उसे भी कोई उम्मीद नहीं थी । अगले दिन ही उसे रसोई में मीठा बनाने की रस्म के लिये भेजा गया तो उसे समझ नहीं आया कि वो किस तरह शुरुआत करे तब ‘शिवानी’ सामने आई और बोली, भाभी घबराओ नहीं मैं हूँ न इन तीन मैजिकल वर्ड्स ने मानो जादू कर दिया आत्मविश्वास लौट आया फिर उसने कहा, भाभी ये देखो यू-ट्यूब इसमें सब कुछ है जो भी बनाना है बताओ निकालती उसकी रेसिपी तब मैंने कहा, बस तुम देखती जाओ कोई गलती हो तो बताना इस तरह उस दिन इस रस्म ने इस रिश्ते में भी मिठास भर दी ।

फिर एक दिन मैं सरदर्द से परेशान थी और उस दिन मेहमान आये तो काम भी अधिक था ऐसे में फिर वो न जाने कैसे मेरी तकलीफ समझ गयी और चट-पट साथी हाथ बढ़ाना वाले भाव से मेरे साथ काम में जुट गयी । उसकी इस बात ने दूरियों को कुछ और कम कर दिया फिर भी रिश्ते में औपचारिकताएं कायम थी जो उस दिन टूट गयी जब शादी के बाद पहला रक्षाबंधन आया तो अचानक सासू मां ने फैसला सुना दिया कि अमरीका से बड़ी दीदी आ रही जो शादी के वक़्त नहीं आ पाई थी इसलिये मैं नहीं जा सकती उस समय मैं कुछ बोली नहीं, पर आंखों पर कहाँ नियंत्रण छलक गयी और आंसुओ को पोछने वही सामने आई बोली, मम्मी भाभी को जाने दो जैसे दीदी अपने भाई को राखी बांधने मायके आ रही वैसे ही भाभी का भी हक़ है रही बड़ी दीदी की बात तो यदि उन्हें मिलना है तो वो भाभी के आने तक रुके उस दिन हम भाभी-ननद से सहेलियां बन गये और आज तक वो दोस्ती बदस्तूर कायम है ।

यहाँ तक कि वो अपने घरवालों के उतने करीब नहीं जितने मेरे है और अपने जीवन की हर बात वो मुझसे शेयर करती यहाँ तक कि कॉलेज में जब उसे प्यार हुआ तो उसने सबसे पहले मुझे ही बताया फिर उसकी शादी की जिम्मेदारी मैंने अपने उपर लेते हुये उसका रिश्ता करवाया था ऐसी न जाने कितनी अनगिनत यादें हैं जो हम दोनों को इस तरह जोड़ती जैसे दो सहेलियों को आपसी बातें एक अटूट बंधन में बाँध देती जिन्हें दोहराकर वे वापस उस दौर में पहुँच जाती जब उन्होंने वे दिन गुज़ारे थे अपनी और शिवानी की ऐसी अनेक स्मृतियाँ उसके जेहन में तैरती चली गयी और वो मुस्कुरा उठी कि कभी उसने ननद-भाभी के रिश्ते के बारे में कितना गलत सुनकर एक धारणा बना ली थी अच्छा हुआ वो निर्मूल सिद्ध हुई यदि वो उस पर ही विश्वास करती तो इतनी प्यारी सहेली को खो देती   

सच, दोस्ती जैसा नाता कोई नहीं और जब वो ननद-भाभी के बीच हो तो फिर उनके बीच के सारे रिश्ते भी मधुर बन जाते और ऐसे में पराये घर आने पर भी एक लड़की को अजनबीपन का अहसास नहीं होता क्योंकि, दो लडकियाँ जिस तरह से सहेलियां बनकर आपस में अपने सुख-दुःख सांझा कर सकती उस तरह से ननद-भाभी के रूप में नहीं और वो ख़ुशकिस्मत कि उसे ‘शिवानी’ जैसी दोस्त मिली जिसने उसके लिये ससुराल को घर बना दिया काश, ऐसी ननद सबको मिले उसके मुस्कुराते हुये बुदबुदाते लबों ने एक दुआ हवा में उछाल दी

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ अगस्त २०१८

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