सोमवार, 20 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२३० : #सावन_का_आखिरी_सोमवार #शिव_का_करो_मनोयोग_से_ध्यान




देखते-देखते समय बीत गया और सावन का चौथा व आखिरी सोमवार आ गया शिव की भक्ति में लीन भक्तों का सेवा भाव भी चरम पर आ गया । आदिनाथ भोले तो है ही इतने कृपालु जो सावन ही नहीं प्रति पल भक्तों पर अनवरत अपने आशीष की वर्षा करते भले हम उन्हें भूल जाये पर वे न कभी हमें भूलते । हम जो भी दुख या तकलीफ पाते उसकी वजह हम ही होते न कि ईश्वर हमें कोई दंड देता जैसा कि लोग कहते क्योंकि, उन्होंने तो कहा ही है कि ये संसार कर्म प्रधान जिसमें हमें वही वापस मिलता जो हमने दिया याने कि हमारे ही कर्म फलीभूत होकर हमारे अंचल में आते जिसे फैलाकर हम भगवान से दुआ मांगते ।

इसलिये हमें हर क्षण सजग होकर अपने प्रत्यर्क कार्य करना चाहिये मनसा, वाचा कर्मणा केवल कथन नहीं अपनी करनी में उतारना चाहिये । जिस वक्त हमारे तन-मन में एका हो जाता हमारे भीतर की सुप्त शक्तियां जागृत हो जाती । इसके लिये ये पावन चातुर्मास मानो वो चाबी जो खुल जा सिम-सिम की तरह प्रकृति के अनबुझ रहस्यों की कंदरा पर लगे ताले एक झटके-से ख़ोल देती । हमारी देह ही वो गुफा जिसके भीतर हम प्रवेश नहीं करना चाहते क्योंकि, इसमें जाने का रास्ता आंख बंद करने से खुलता और हम जो बाहरी दृश्यों में भरमा चुके उस सहज रास्ते पर चलना नहीं चाहते जबकि, दुनिया के टेढ़े-मेढ़े दुर्गम पथ पर मजे से चलते रहते । हमारे मन की इस चंचल प्रवृति के कारण ही बरसात के इन चार महीनों को एकांत वास के लिए चुना गया ताकि, हम सब तरफ से ध्यान हटाकर अपने भीतर उतर सके जहां सारा ज्ञान भरा पड़ा ।

कस्तूरी मृग की तरह हम आजीवन भटकते रहते उसकी तलाश में जो हमारे ही अंदर छिपा हुआ बस, हमें ही नहीं पता जब सारे जहां में उसे खोजकर थक-हारकर बैठते और आंख बंद करते तो आश्चर्य से भर जाते कि अरे, जिस शांति को ढूंढते उम्र गुजरी वो तो हमारे अंदर ही कुंडली मारकर बैठी थी । जीवन की विडंबना ही यही कि जो पास उसकी फिक्र नहीं और जो असंभव उसे पाने दुनिया भर की खाक छानते फिरते और एक दिन खाक में मिल जाते । काश, पंचतत्वों से बने शरीर को पुनः इनमें मिलने से पहले ही हम इसकी तासीर को समझ ले और करोड़ों के तन को कौड़ियों में न गंवाये शिव को देखो हमेशा ध्यान में मग्न यही कहते परम आनंद पाना है तो आंख खोलो नहीं बंद करो और फिर सदा खुश रहो नहीं तो आंख खोलकर प्रतिस्पर्धा में लगे रहो और बैचेन रहो । शिव-शंकर जटा-जूट बेल-पत्र पाकर पहाड़ में मगन खुश रहते और हम तमाम सुख-सुविधाओं के साथ महल में भी दुखी तो फिर सोचना क्या जब जीने का सहज ढंग पता जिसे अपनाकर कुछ भी न असंभव न जानने को शेष बचा... महादेव की बड़ी कृपा... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० अगस्त २०१८

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