बुधवार, 29 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२३९ : #खेलोगे_कूदोगे_बनोगे_नवाब #जमाना_अब_बदल_गया_जनाब




खेल के मैदान में जिस तरह से युवा पीढ़ी की नई नस्ल कीर्तिमान रच रही और देश का ही नहीं अपने परिवार का भी मान-सम्मान बढ़ा रही वो काबिले तारीफ़ हैं इन सबने अपने हौंसलों व विश्व पटल पर अपनी जोरदार आमद से पुरानी कहावत पूरी तरह से बदल दी है जो कहती थी कि, ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब... खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब’ इन्होने तो खेल-कूद कर ही नवाबों से ऊंची शान हासिल कर ली हैं अपनी शानदार जीत से ये साबित भी कर दिया कि सिर्फ, पढ़ाई-लिखाई ही नहीं खेल-कूद में भी कमाया जा सकता नाम वो भी ऐसा कि अपने देश ही नहीं विदेशों में धूम मच जाये और जब उनके इस अद्भुत कारनामे से तिरंगा ऊंचाइयां छुये और बैकग्राउंड में राष्ट्रगान की धून बजे तो सबके सर गर्व से ऊंचे व सीना फ़ख्र से चौड़ा हो जाये कि ये खिलाड़ी उनका अपना, उनके अपने देश का हैं

शायद, ही अब कोई ऐसा खेल बाक़ी हो जिसमें हमारे यहाँ से कोई न कोई अपने आपको निखार न रहा हो यदि कोई शेष हैं भी तो जल्द ही उन पर फ़तेह हासिल कर ली जायेगी क्योंकि, ये जो न्यू जनरेशन है ये समझ गयी कि पढ़ना-लिखना भले जरूरी हैं पर, इतना भी नहीं कि उसके लिये अपने खेल के हुनर को दबा लिया जाये जैसा कि इससे पहले किया जाता रहा जिसकी वजह से बहुत लोगों ने इस डर से कि वो खराब की श्रेणी में न आ जाये चुपचाप नवाबों वाली लाइन का चुनाव कर लिया । फिर भी स्मार्ट लोगों के इस युग में इस तरह की बातें तब कोरी कहावत बनकर रह गयी जब उन्होंने देखा कि स्पोर्ट्स के क्षेत्र में आने वाले अधिकांश खिलाड़ी पढ़ाई में भले पिछड़ गये मगर, खेल में न सिर्फ अव्वल बल्कि, नाम, शोहरत, कमाई में भी शीर्ष स्थान पर जिसने उन्हें एक बार फिर से सोचने पर मजबूर किया जिसका नतीजा कि उन्हें अपना भविष्य साफ़ नजर आ गया ।

उन खिलाडियों की इस काम्याबी से उन्हें अहसास हो गया कि केवल आज्ञाकारी बनकर इन्हीं पंक्तियों को दोहराने और माता-पिता की ख़ुशी के लिये इस पर अमल करने से अच्छे-खासे कैरियर का खात्मा हो सकता है तो उन्होंने अपने भीतर की आवाज़ सुनकर क्लास रूम की जगह खेल के मैदान की तरफ कदम बढ़ा दिया जिसने उन्हें एजुकेशन में भले, निचले पायदान पर जगह दी हो लेकिन, नंबर वन स्पोर्ट पर्सन बना दिया तब उनके पेरेंट्स ने भी माना कि फैसला सही था । इसलिये अब तो अधिकांश माता-पिता स्वयं अपने बच्चों को बचपन से किसी न किसी खेल के प्रति जागरूक कर उसमें एक्सपर्ट बना रहे जिसके लिये बाकायदा उन्हें हर तरह का अच्छे-से-अच्छा प्रशिक्षण विशेषज्ञों से दिलवा रहे चाहे लड़की हो या लड़का बिना भेदभाव के इस फ़ील्ड में आने प्रेरित कर रहे जिससे स्पोर्ट भी एक भरोसेमंद कैरियर विकल्प के रूप में उभरा है ।

देश के राष्ट्रीय खेल हाकी के जादूगर ‘मेजर ध्यानचंद’ जिन्होंने गुलाम भारत में तीन बार ‘गोल्ड मेडल’ जीतकर ये मुकाम हासिल किया कि उनका जन्मदिन २९ अगस्त ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा इन सभी स्थापित या उभरते खिलाडियों के लिये न केवल प्रेरणा के स्त्रोत रहे बल्कि है । क्योंकि, उन्होंने तो प्रतिकूल परिस्थितियों में वो कर दिखाया जो ये सब अनुकूल स्थितियों में भी मुश्किल से कर पा रहे फिर भी जो लौ उन्होंने जलाई वो आज निश्चित तौर पर न केवल चिंगारी बल्कि, दूसरे शब्दों में कहे तो मशाल बन चुकी है । जिसे गर्व से हाथ में लेकर ये उस आग़ को उन सबके भीतर जला देना चाहते जिनमें कहीं न कहीं शोला बनकर भड़कने की जरा-सी भी संभावना छिपी हुई है जिससे कि उनके पेरेंट्स भी उन्हें ये न कहे कि, ‘खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे खराब’ बल्कि, कहे कि ‘पढ़ने-लिखने में करो कमाल, खेल-कूद में भी मचाओ धमाल’ तभी तो ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ सार्थक होगा... इसी के साथ सबको इस दिवस की शुभकामनायें व मेजर ध्यानचंद की जयंती की भी बधाइयाँ... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ अगस्त २०१८

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