शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२२० : #व्यंग्य_को_बनाया_विधा #हरिशंकर_परसाई_का_शुक्रिया




‘व्यंग्य’ की बात चले तो सबकी जुबान पर सबसे पहले नाम जो आता है वो हिंदी साहित्य के महारथी कलमकार ‘हरिशंकर परसाई’ जिन्होंने जब भी जो भी लिखा वो एक मुहावरा बन गया जिसे आज भी उन मौकों पर दोहराया जाता जिन्हें उन्होंने अपनी कलम से इतना प्रभावी बना दिया कि वे आज भी प्रासंगिक ही नहीं अर्थ की अनेक परतों को अपने में समेटे हैं और एक लेखक वही जो अपने शब्दों को अनंत काल तक के लिये अर्थपूर्ण बना दे कि जिसे जितनी भी पढ़ा जाये वो उतनी ही बार न केवल नवीनता का अहसास दे बल्कि, एक नया व अलग अर्थ प्रकट करे फिर वो लेखन सदा के लिये अमर हो जाता

इसी वजह से शब्द को ‘ब्रम्ह’ कहा गया है जो अनंतकाल तक अंतरिक्ष में तैरते रहते और किसी नये मायने के साथ अंतर में प्रवेश करते फिर कलम के जरिये पन्नों पर निकलते इस तरह वे अंतहीन यात्रा करते रहते है जैसे आज भी परसाई जी के लिखे अनगिनत प्रसंग व वाक्यांश घूम-फिरकर सामने आते जब कुछ वैसा ही आँखों के सामने आ जाता जिसके उल्लेख उनके द्वारा पहले ही किसी किताब में किया जा चुका है इस वजह से वे हिंदी साहित्य के उन लेखकों में भी शामिल जिनके लिखे गये चुटीले वाक्य और उद्धरणों को सर्वाधिक प्रयोग में लाया जाता है

उनकी लेखनी ने किसी भी विषय या घटना को अपनी कलम के जरिये सदैव अभिव्यक्त कर एक जागरूक नागरिक ही नहीं लेखक का भी फर्ज निभाया और समाज को व्यंग्य के आईने में उसका वो चेहरा दिखाया जो सदाचार के मुखोटे के पीछे छिपा रहता जिससे लोग भले ही अनजान नहीं लेकिन, उस तरह से उन्होंने भी उसकी वो छवि कभी नहीं देखी तो आश्चर्यचकित रह जाते कि बाहर से भला दिखाई देने वाला अंदर से इतना वीभत्स भी हो सकता यही उनकी खासियत थी कि किसी भी क्षेत्र की विषमताओं को उन्होंने सहजता से सबके सामने उजागर किया बिना किस लाग-लपेट या दुराव-छिपाव के क्योंकि, वे स्वयं एक अन्वेषक व दूरदर्शी थे

वे सदैव कुछ नया खोजते रहते फिर उसे व्यंग्य बनाकर सामने लाते उनके इस अनोखे लेखन ने ‘व्यंग्य’ को एक विधा के रूप में स्थापित कर दिया जिसके लिये आज उनकी पुण्यतिथि पर उनका शुक्रिया तो बनता हैं... नमन... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१० अगस्त २०१८

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