झर रही
बूंदें जो
आसमां से
अमृत हैं वो
सिक्के की तरह
धरा की गुल्लक
में इनको
बंद कर के रख
लो
बना सकते नहीं
बादल और बरसात
कभी
न सूरज,
न चाँद
फिर करते किस
बात का घमंड
क्यों मिटाते
कुदरत का चमन
जिसे रचने की
कूवत नहीं
पानी ये वो
जीवन हैं
बूंद-बूंद इसकी
सहेज लो
वर्षा के पानी
का सरंक्षण करो
गंवाओ न ये
मोती व्यर्थ
कल इसे ही
ढूंढने में होगा कष्ट
रब ने ये खज़ाना
लुटाया
रोपो पौधे
नये-नये
जिनमें ये सब
जायेंगे रखे
सूद की तरह फिर
मिलेंगे कल
वृक्ष जब
एफ.डी. की तरह पक जायेंगे
उनकी शाखाओं से
हम
एक का दस
पायेंगे
मौसम अनुकूल आया
हैं
मरते हुयों ने
जीवन पाया हैं
देखो, बारिश का जादू
सब पर छाया हैं
।।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
२४ अगस्त २०१८
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