शनिवार, 11 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२११ : #खुदीराम_बोस_उम्र_में_छोटे #मगर_हौंसलों_में_थे_सबसे_बड़े




आज ११ अगस्त २०१८ हैं और देश को आज़ाद हुये भी लगभग ७० से अधिक बरस हो गये इतने बरसों में देश में युवाओं की आबादी भी साल-दर-साल बढते हुये अपने चरम पर पहुँच गयी और माना जा रहा कि जितने युवा आज हमारे यहाँ हैं उतने विश्व में कहीं भी नहीं जो हमारे लिये गर्व की बात होना चाहिये पर, ऐसा नहीं हैं क्योंकि, हमारा युवा वर्ग अपनी जवानी व शक्ति को मोबाइल व मटरगश्ती में फ़िज़ूल ही गंवा रहा है उसे न तो अपने देश और न ही उसके इतिहास में कोई दिलचस्पी उसके लिये तो सिर्फ़ उसका अपना जीवन ही बेहतर बनाना एकमात्र लक्ष्य जिसके लिये वो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गुलामी कर के उसे सुविधाजनक बनने के लिये किसी भी स्तर तक जा सकता फिर भले देश का नुकसान हो या देश की तरक्की की गति धीमी हो जाये यदि वो चाहे तो अपने दम पर अपनी ऊर्जा का सही इस्तेमाल कर के अपने देश को विकास की दौड़ में आगे भी ला सकता मगर, उसका सोचना कि ये काम तो सरकार का है जिसके लिये उसका मात्र वोट देना ही पर्याप्त है तो मतदान के बाद वो अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेता है

अब चलते है ११ अगस्त १९०८ में आज से लगभग ११० साल पहले जब एक किशोर जिसकी उम्र महज़ १८ वर्ष ही थी जिसे हमारे यहाँ नासमझी या लड़कपन समझ जाता उस वय में वो बड़ी निडरता के साथ फिरंगी सरकार के आदेश पर अपने वतन की आज़ादी का अधुरा ख्वाब लेकर फांसी के फंदे पर झूल गया सिर्फ इसलिये कि मैं भले ही रहूँ या न रहूँ पर, मेरा बलिदान व्यर्थ न जाये और मुझे देखकर किशोर भी आगे आकर अपनी मातृभूमि के प्रति अपना फर्ज़ निभाये वैसे भी गुलामी में डर-डरकर जीने की बजाय सीना तानकर हंसते-हंसते मारना अच्छा हैं क्योंकि, उसमें जिल्लत का अहसास भरा जो सांसों पर भी बोझ-सा लगता है तब जिंदगी या उमर के बड़े होने की बजाय किस तरह मरे ये अधिक मायने रखता तो अपनी भारतभूमि को स्वतंत्र करने की इस मुहीम को तब तक चलाये रखना हैं जब तक कि ब्रिटिश सरकार हमारे पवित्र भूमि को छोडकर न चली जाये उसके लिये मेरे रक्त की अंतिम बूंद भी यदि काम आती हैं तो यही इस जीवन की सार्थकता होगी यदि मेरा ये बलिदान किसी एक को भी अपने देश के स्वाधीनता आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति देने को प्रेरित करता हैं तो मैं अपने जीवन को धन्य समझूंगा            

‘खुदीराम बोस’ भी तो एक नवजवान ही था पर, उसने जब देखा कि इस वक़्त देश को मेरी जरूरत है तो बिना अपने बारे में सोचे आगे बढ़कर अपने आपको माँ भारती के चरणों में समर्पित करने का फैसला ले लिया हमारे देश में माना आज हालात उतने बुरे नहीं और न ही हम किसी के गुलाम पर, युवाओं को देखो तो मोबाइल के गुलाम नजर आते और अपनी ऊर्जा को बेकार कामों में व्यय करते जबकि, अगर वे भी चाहे तो अपने हिसाब से निर्णय लेकर किसी भी तरह का योगदान दे सकते पर, उनके दिमाग में न जाने क्यों इस तरह की सोच निर्मित ही नहीं होती हाँ यदि नफरत का ज़हर फैलाना हो या फालतू के संदेशो को वायरल करना हो तो ऐसे उतवाले नजर आते मानो ऐसा कर के वो देश का बड़ा उद्धार कर रहे न तो वे उन संदेशों की वैधता की जाँच करते, न ही स्वयं अपने देश के इतिहास से परिचित और न ही इतने जागरूक कि दूसरों को गलत करने से रोक सके बस, भेड़ों की तरह अंधानुकरण करते नजर आते

ऐसे में उन्हें ‘खुदीराम बोस’ जैसे सच्चे देशभक्तों व वीरो के त्याग की कहानियां पढ़नी व शेयर करनी चाहिये ताकि दिग्भ्रमित पीढ़ी संभल सके ये भी देशभक्ति ही कहलायेगी इसी के लिये तो ये लोग जिन्होंने खुद आज़ादी का भोग नहीं किया उसे हमारे लिये छोड़कर खुद मौत को गले लगा लिया ऐसे में क्या हमारा ये कर्तव्य नहीं बनता कि हम उनके प्राणोत्सर्ग की इस कहानी को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाये और किसी भी संदेश या विडियो को फारवर्ड करने से पहले ये देखे कि वो सही है या गलत जिसके लिये खुद का जानकार होना जरूरी तो उसी दिशा में कदम बढ़ाये फिर देखें कौन युवाओं को बरगलता है... जय हिंद... वंदे मातरम... खुदीराम बोस को शत-शत नमन... !!!
        
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
११ अगस्त २०१८

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