शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

सुर-२०१८-२५१ : #यूँ_ही_नहीं_कोई_अमृता_प्रीतम_बनता #काँटों_भरी_राह_पर_नंगे_पांव_चलना_पड़ता




अमृता प्रीतम की लेखनी में भरे जज्बात और कसक कहाँ से आये?

‘अमृता प्रीतम’ उस दौर की ‘फेमिना’ है जब ‘फेमिनिज्म’ या ‘स्त्रीवाद’ अपनी जड़ें जमा रहा था तो उसके लिये आवश्यक खाद-पानी जुटाने का काम उन साहसी महिलाओं ने किया जो इस शब्द के मायने भले उस तरह से न समझती हो जिस तरह से आज की तथाकथित ‘फेमिनिस्ट’ आये दिन निकालकर नई पीढ़ी को बरगलाती रहती हैं । खुद घर के कामों और एकरस ज़िंदगी से ऊब चुकी तो उसे दूसरों के मत्थे मढ़कर स्वतंत्र लाइफ जीने को इस तरह की बातें गढ़ती जैसे सारी दुनिया की बोझ उनके सर पर ही डाल दिया गया और स्वयं को गिल्टी न महसूस कर सके तो अन्य महिलाओं को भी अपनी तरह बनाने में लगी रहती हो जो महज़ उनके घर के कामों से मुक्ति पाने के राग के सिवाय कुछ भी नजर नहीं आता
जबकि, वे चाहे तो अपने प्रयासों से घर व समाज की व्यवस्था बदलकर इस तरह से बना सकती कि सब मिल-जुलकर काम बांटकर कर खुश रह सके पर, इन्हें तो सब कुछ अपने हिसाब से चाहिये जहां न कोई बंधन हो न कोई रीति-रिवाज या कोई भी जबरदस्ती जैसा उनका मन चाहे वो कर सके उनकी इस कोरी सोच को अपने दम पर जीकर दिखाया ‘अमृता’ ने जो इस व्याख्या से नितान्त अपरिचित थी लेकिन, मन व आकांक्षाएं तो सबकी किसी धरातल पर मिलती तो उनके भीतर भी वही सब कुछ भरा पड़ा था अंतर केवल इतना कि सब कह नहीं पाती पर, उनके पास कहने को अपनी अद्भुत काबिलियत व लेखन का वरदान था जिसका उन्होंने भरपूर उपयोग किया

जिसके बूते उन्होंने न केवल अपने मन का जीवन ही जिया बल्कि, उसे खुलकर सबके सामने भी रखा जिसने ये साबित कर दिया कि स्त्री को अगर, अपने हिसाब से जीने की सुविधा मिले तो वो घर व अपने शौक के बीच सामंजस्य बिठाते हुये कठपुतली की तरह सबको साध सकती है क्योंकि, तब उनको मिली स्वतंत्रता उनके भीतर जवाबदारी का अहसास भी भरेगी और तब उन पर कोई दबाब नहीं होगा कि उन्हें घर के काम करना या अपनी इच्छाओं को मारकर सबका ख्याल रखना है वे खुशी-खुशी सब करेंगी क्योंकि, मल्टी टास्किंग की जैसी दक्षता उनके भीतर वैसी कंप्यूटर में भी नहीं कंप्यूटर तो फिर भी मशीन जो उसमें फीड किये गये निर्देशों के अनुसार काम करता पर, वो तो अपने नियम अपनी प्रोग्रामिंग खद लिखेगी और खुद के आदेश पर ‘रोबोट’ बनेगी न कि अपना रिमोट दूसरे को थमाकर बस, सबकी आज्ञा मानेंगी ।

‘अमृता’ ने अपने आस-पास व देश काल की परिस्थितियों को सिर्फ देखा नहीं भोगा इसलिये वो उसे लिख पाई और स्त्री मन होने के कारण स्त्रियों की समस्याओं को भी जानती थी तो उन सबको भी अपने लेखन का हिस्सा बनाया पर, किसी को भी अपने बनाये रास्ते या अपने उसूल अपनाने कहा नहीं केवल, खुद को झोंक दिया पूरी तरह से तो बदले में जो पाया वो हर किसी को नहीं मिलता गहन शोध व चिंतन-मनन से ही उसके नजदीक पहुंचा जा सकता तो उन्होंने अध्ययन भी खूब किया अन्यथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम करना इतना भी आसान नहीं था वो भी तब जब पग-पग पर कांटे उगे हो मगर जो ठान लेता मंज़िल को पाना वो राह में आने वाली मुश्किलों की परवाह कब करता तो उन्होंने भी कठिन घड़ी आने पर ऐसे निर्णय लिए जिसने उन्हें ‘अमृता’ बना दिया

ये सब सोचना या कर पाना उस एक साधारण नारी के लिए असंभव होता जो अक्सर घर की दहलीज पर ठहर जाती या किचन के सामानों के बीच गुम हो जाती और तय ही नहीं कर पाती कि वो आखिर चाहती क्या है ?

यही फर्क है एक आम औरत और ‘अमृता’ में जहां वे सुलझी थी वहीं हम सब उलझी है और जब तक इन उलझनों से न निकले अपने ख्वाब को नहीं पा सकते क्योंकि, ‘अमृता’ बनने की राह बहुत कठिन इश्क़ की तरह ही जो सबके बस की बात नहीं अब तो लोग इश्क़ भी करना नहीं जानते तो फिर भला जीवन जीना क्या जाने और केवल मजे लेने के लिए फेमिना बनने की बोगस लड़ाई लड़ रही जो सोशल मीडिया पर बेकार स्टेट्स लिखकर न जीती जायेगी जंग के सॉरी जीवन के मैदान में उतरना पड़ेगा तब ‘रसीदी टिकट’ जैसा कारनामा होगा अन्यथा इनबॉक्स में ही प्रेमालाप करती रहो और फेसबुक पर लड़ती रहो जिन्होंने ‘फेमिना’ या ‘फेमिनिज्म’ शब्द न सुना, न जाना वे ही उसकी मिसाल बन चुकी है गज़्ज़ब है न... जन्मदिन मुबारक अ-मृता... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३१ अगस्त २०१८

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