शनिवार, 1 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३३१ : #अश्लील_वीडियोज_के_सागर_में_डूब #संयम_बहुत_जरूरी_एड्स_से_रहने_दूर




कोई हाथ ऐसा नहीं जिसमें मोबाइल नहीं और कोई मोबाइल ऐसा नहीं जिसमें यू-ट्यूब नहीं और ये भी सच कि, कोई ऐसा नहीं जो भले जान-बूझकर हॉट वीडियोज न देखता हो पर, सामने आने पर भी उसे इग्नोर कर दे चलो, माना सब ऐसे नहीं फिर भी सवाल ये उठता कि वो कौन लोग जो गूगल पर सबसे ज्यादा सेक्स या सनी लियोनी टाइप करते जिसकी वजह से ये दोनों शब्द सर्वाधिक सर्च किये जाने वाले शब्दों में अव्वल नम्बर पर रहते कहने का तात्पर्य ये है कि, कोई कुछ भी कहे पर ये एक सच्चाई कि मोबाइल आने के बाद वो सब वर्जित विषय जिनके बारे में जानना भी मुश्किल था अब न केवल आसानी से उपलब्ध बल्कि, ये तो किशोरों की जिज्ञासा के स्तर को उस मुकाम तक ले जाते कि वो दिखाये गये ज्ञान को प्रैक्टिकली कर के देखने उतावले हो जाते जो कि इस तकनीक का एक सबसे नकारात्मक पक्ष है

उस पर माहौल दिन-ब-दिन ऐसा होता जा रहा कि सरकार सेक्स के लिए लगातार नियमों में परिवर्तन करती जा रही जिसके कारण अब कोई भी किसी के साथ यौन संबंध बनाने आज़ाद है चाहे फिर वो शादीशुदा हो या नहीं पर, अपनी हवस पूरी करने पूरी आजादी यदि वो वयस्क है और जो नहीं तो उसको ही कौन रोक रहा अन्यथा, रेप के ज्यादातर केसेज में नाबालिग शामिल नहीं होते जिस तरह बाजारवाद, टी.वी.,सिनेमा, सोशल मीडिया सब एक साथ मिलकर ये साबित करने में लगे कि सेक्स ही जीवन का एकमात्र ध्येय व सच्चाई उसी तरह इसे करने वालों की संख्या बढ़ रही तो उम्र घट रही है क्योंकि, जिसके वश में न तो अपना मन, न तन और न ही हार्मोन्स वे किस तरह से उसे काबू करें अपने आस-पास यही सब देख वो जो सामने नजर आता उस पर ही अपनी वासना का तूफान उड़ेल देता है फिर चाहे वो लड़की हो या बकरी या फिर मासूम बच्ची उसे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि, उसके दिमाग में फीड किया जा रहा कि जिस तरह भूख लगने पर खाना खाते उसी तरह तन की तृष्णा मिटाने सेक्स किया जाता तो बिना ये सोचे-समझे कि क्या सही क्या गलत है वो सब कुछ कर गुजरते है

ऐसा करते समय वे ये भूल जाते कि, ‘सेक्स’ और ‘भूख’ में यही तो अंतर कि सेक्स किये बिना जिंदा रहा जा सकता इसके बावजूद ये भी एक सच कि, अति तो दोनों की ही बुरी होती ऐसे में हम कुतर्कों से गलत को सही साबित करने के चक्कर में अनजाने ही ‘नैतिकता’ और ‘मर्यादा’ जैसे शब्दों को अपने जेहन व शब्दकोश से मिटाते जा रहे है जिसने हमको सिर्फ ‘देह’ बना दिया और जब आप सिर्फ शरीर या किसी एक अंग विशेष में परिणित हो जाओगे तो ‘एड्स’ जैसे दुष्परिणामों से कैसे बचोगे अच्छा, इस वक़्त आपका शातिर दिमाग यही सोच रहा न कि, ‘कंडोम’ तो है न फिर क्या डर ‘सेफ सेक्स’ करेंगे मतलब आपका ख्याल कि जब आप कामुक वीडियो या दृश्य देखकर उत्तेजित होकर किसी को पकड़ोगे तो आपको इतना विचार करने का समय मिल जायेगा कि, “आप असुरक्षित हो” यदि नहीं तो फिर ये दलील किस काम की तब जबकि, आप सोच-समझकर ऐसा कुछ करोगे तो उस स्थिति में गलत का सवाल ही नहीं लेकिन, वास्तविकता ऐसी नही है

‘यूनिसेफ’ (UNICEF) की हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2017 तक करीब 1 लाख 20 हज़ार बच्चे और किशोर HIV संक्रमण से पीड़ित पाए गए है ‘यूनिसेफ’ की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अगर एचआईवी एड्स (HIV/AIDS) को जल्द रोकने की कोशिश नहीं की गई तो 2030 तक हर दिन इस वायरस से 80 किशोरों की मौत हो सकती है ये आंकड़े काफी भयवाह और भविष्य की खतरनाक तस्वीर दिखा रहे इसीलिए जरूरी है AIDS के लिए सतर्क रहना और ये समझना कि जीवन का सच क्या है और सिर्फ शराब, शबाब ही लक्ष्य नहीं जैसा कि सभी जगह दिखाया जा रहा है भारत देश जहां पर कि युवाओं का प्रतिशत अधिक साथ ही बेरोजगारी भी उसी अनुपात में उस पर लेटेस्ट मोबाइल या गैजेट्स व नासमझी में कमी नहीं तो फिर ये दावा खोखला ही नजर आता कि जानकारी ही बचाव है ऐसा कहने की वजह ये है कि, ये आंकड़े तब के है जब सब ये जानते तो इसका मतलब जानने और समझने में फर्क है तो ऐसे में एड्स से बचने के लिये क्या ज्यादा जरूरी है ये सोचने का वक़्त अब आ गया है

‘अमेरिका’ जैसे देश जहां सेक्स को लेकर इतना खुलापन है वहां भी अब युवा जागरूक हो रहे और अपनी ज़िंदगी की कीमत समझ रहे कि सिर्फ यही लाइफ नहीं और आज ही दैनिक भास्कर में पढ़ा कि भारतीय दिलों की धड़कन मिस वर्ल्ड ‘प्रियंका चोपड़ा’ जिस रॉकस्टार ‘निक जोनस’ से ब्याह करने जा रही उसने व उसके म्यूज़िक ग्रुप के साथियों ने अपनी उंगली में चांदी की अंगूठी इस कमिटमेंट के साथ पहनी कि वो शादी के पहले फिजिकल रिलेशन नहीं करेंगे जो एक सीख देता खास तौर पर युवा वर्ग को जो शादी को गैर-जरूरी समझ इस फिराक में रहते कि उनका काम चलता रहे और कोई जिम्मेदारी भी न उठाना पड़े बोले तो कोई झंझट नहीं चाहिए गर, फिर भी कुछ हो ही गया तो जिम्मेदार लड़की ही होती तो भुगतना भी उसे ही पड़ता

लेकिन, इसके बाद भी ये बंद नहीं होता जो सोचने पर मजबूर करता कि युवाओं को इसके प्रति जागरूक होने के अलावा अपने आपको भी धैर्यवान, संस्कारी, नैतिक, मर्यादित, संयमित, ब्रम्हचारी होना होगा जिस तरह से युवाओं के प्रणेता स्वामी विवेकानंद या भगत सिंह थे जिन्होंने अपने जीवन के असाधारण लक्ष्य को पाने खुद को इस तरह से दृढ़ किया कि कोई डिगा न सका चलो ये मान लिया कि, आपको ऐसा कोई काम नहीं करना पर, आदर्श तो ऐसा ही रखेंगे तब न कुछ संयम आयेगा कि ‘सनी लियोनी’ को देख-सोचकर इंद्रियों पर नियंत्रण करेंगे इसमें कोई दो रे नहीं कि, जैसा आपका आइडियल होगा वैसी ही आपकी सोच होगी तो एड्स से बचने आपको अपने आदर्श, नियम, संकल्प सबका पालन करना होगा अन्यथा ये संभव नहीं कि मोबाइल में दिन भर गंदे उत्तेजक जोक्स, टेक्स्ट, वीडियो, पिक्चर्स देखें और खुद को सच्चरित्र बताने का दावा करें अपने आपको गलत ख्यालों से बचाने प्रयास करना होगा ‘एड्स दिवस’ पर अपने आप से कमिटमेंट करना ही होगा कि, विवाह से पहले नहीं और विवाह के बाद किसी दूजे से नहीं तो न केवल खुद का आंतरिक बल, बढ़ेगा बल्कि, जीवन भी सुरक्षित होगा ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०१ दिसम्बर २०१८

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