शनिवार, 31 जनवरी 2015

सुर-३१ : "सुखद पुरवैया... आवाज़ की मल्लिका... 'सुरैया' !!!"

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मित्रों...,

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गायिकी
अदाकारी
हर फन में थी लाजवाब...
.....
भूले न
आज तलक हम वो
बेमिसाल आवाज़... ‘सुरैया’ ।।
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सिनेमा के रुपहले पर्दे ने अभी बोलना शुरू ही किया था कि और संगीत प्रेमियों ने उसमें सुर की ऐसी रसधार बहा दी कि जिसके भी पास सुरीला गला और साथ अभिनय का हुनर भी था उसे तो सिनेमा जगत ने हाथों हाथ लिया ऐसे में बेपनाह हुस्न की मल्लिका ‘सुरैया’ ने जब रजतपट पर अपनी खनकती मधुर आवाज़ और उतने ही मर्मस्पर्शी अभिनय जिसे कि वास्तविकता ही कहे तो अधिक उपयुक्त होगा के साथ आगमन किया तो उन्हें देखने सुनने वाला हर एक बंदा उनका मुरीद हो गया । उनकी स्वप्निल आँखें, लहराते घुंघराले गेसू, मंदिर की घंटी सी मन को छूने वाली मधुर ध्वनि और उस पर उतनी ही भोली-भाली अदा के साथ किये जाने वाले सहज-सरल मंत्रमुग्ध कर देने वाले स्वाभाविक अभिनय ने हर एक को अपना ऐसा दीवाना बनाया कि उस दौर में हर एक उत्पाद, हर सामान पर उनकी तस्वीर उनका नाम होता था जो उनकी लोकप्रियता के पैमाना को स्वतः ही जता देता हैं ।

उनके प्रति लोगों की दीवानगी का वो आलम था कि सुनते हैं कि उस ज़माने में पाश्चात्य अभिनेता ‘ग्रेगरी पेक’ जिसकी कि वो स्वयं एक प्रशंसिका थी एक दिन सिर्फ उनको देखने और उनसे मिलने भारत चले आये थे और कहते हैं कि कोई एक दीवाना तो आजीवन अपनी सुध-बुध भुलाकर उनके दर पर बैठा रहा केवल उनकी एक झलक पाने रोज उनका दीदार करने के लिये । आज के समय में तो जबकि हीरो-हीरोइन या फिल्मों को देखना कोई बड़ी बात नहीं दिन-रात टी.वी. पर उनके गाने और फ़िल्में प्रसारित होती हैं यहाँ तक कि मोबाइल या कंप्यूटर पर जब जी चाहे हम उन्हें देख सकते हैं लेकिन उस वक़्त तो न सिर्फ फिल्मों में काम करना ही एक बड़ा साहसिक कदम माना जाता था बल्कि उनको देख पाना भी बहुत मुश्किल होता था इसलिये उस दौर के कलाकारों ने जो लोकप्रियता या मापदंड स्थापित किये उसकी कल्पना कर पाना भी हमारे लिये मुमकिन नहीं क्योंकि तब न तो मनोरंजन के इतने साधन थे न ही फ़िल्में देखना ही इतना सुलभ ।

ऐसे कठिन दौर में जब ‘सुरैया’ फ़िल्मी दुनिया में आई तो उन्होंने बहुत कम समय में ही कामयाबी का वो मुकाम हासिल कर लिया कि हर किसी की जुबान पर उनका नाम था, हर कोई उनकी निश्छल मुस्कुराहट के साथ उनके अभिनय को स्वर देती उनकी अलहदा आवाज़ में गाये जाते उनके मधुरतम गीतों को सुनने बार-बार सिनेमा हाल जाता था । उन्होंने १५ जून १९२९ को अविभाजित भारत के 'लाहौर' में जनम लिया और छोटी सी उम्र में अभिनय की दुनिया में कदम रख उस दौर के सभी नामचीन अभिनेताओं के साथ काम किया जहाँ वो अपनी पहली फिल्म 'इशारा' (१९४३) में अभिनय के पितामह ‘पृथ्वीराज कपूर’ की नायिका बनी तो दूसरी और उन्होंने उनके सुपुत्रों ‘राज कपूर’ और ‘शम्मी कपूर’ के साथ भी ‘दास्तान’(१९५०) और ‘शमा परवाना' (१९५४) में काम कर अपनी अपूर्व अभिनय क्षमता का परिचय दिया । फिल्म ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ ने उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचा दिया तथा उनके जीवन में एक अद्भुत संयोग आया जब उन्होंने अपनी अंतिम फिल्म ‘रुस्तम सोहराब’ में एक बार फिर ‘पृथ्वीराज कपूर’ के साथ काम किया और इस तरह उनके फ़िल्मी जीवन की शुरुआत और समाप्ति में उनका साथ देने वाले अभिनेता एक ही थे ।

उन्होंने सारी उमर अपनी जिंदगी अपने ही ढंग से जी और सभी लोगों से कटकर तन्हां ही रही ताउम्र और ३१ जनवरी २००४ को आज के ही दिन चुपचाप हम सबको अपने अनमोल गीतों और अभिनीत फिल्मों का बेशुमार खज़ाना सौंपकर इस दुनिया को अलविदा कहकर चली गई... अब तो वो सशरीर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन अपने सभी एक से बढ़कर एक तरानों और किरदारों के रूप में वो सदैव हमारे साथ रहेगी... जब भी उनकी याद आये तो जो भी आपका मन चाहे वही गीत उनकी खनकदार आवाज़ में सुन लीजिये---

● तू मेरा चाँद मैं तेरी चांदनी...
● नैनों में प्रीत हैं होंठो पे गीत हैं...
● तेरा ख्याल दिल से भुलाया न जायेगा...
● मन लेता हैं अंगडाई जीवन में जवानी छाई...
● मन मोर हुआ मतवाला किसने जादू डाला रे....  
● ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता...
● वो पास रहें या दूर रहें नजरों में समाये रहते हैं... 
● धडकते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम...
● मुरली वाले मुरली बजा सुन-सुन मुरली को नाचे जिया...
● तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया परदेसिया...
● बिगड़ी बनाने वाले बिगड़ी बना दे नैया हमारी पार लगा दे....
● ये कैसी अजब दास्ताँ हो गई हैं छुपाते-छुपाते बयाँ हो गई हैं...
● दिल धड़के आँख मोरी फड़के कहीं जाना न देखो जी बिछड़ के...
   
मित्रों बड़ी लंबी फेहरिस्त हैं उनके मधुर गीतों की... तो इसे यही खत्म करती हूँ... :) :) :) !!!
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३१ जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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