सोमवार, 11 मई 2015

सुर-१३१ : "राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी दिवस... हमारी तकनीकी सक्षमता का प्रतीक...!!!"

भारत भी
दम-ख़म रखता हैं
पूरे विश्व में
अपनी साख़ रखता हैं
हर तकनीक से
ख़ुद को वाकिफ़ रखता हैं
तभी तो...
कदम से कदम मिलाकर
सबके साथ-साथ चलता रहता हैं
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मित्रों...,

दिन  : ११ मई १९९८
स्थान : पोखरण (राजस्थान)

तत्कालीन प्रधानमंत्री ‘अटल बिहारी वाजपेयी’ के नेतृत्व में एक के बाद एक पांच परमाणु परीक्षण किये गये जिसके साथ ही हमारा देश भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र बन गया और इस उल्लेखनीय सफलता से संपूर्ण देश में हर्ष की लहर दौड़ गयी और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 'जय जवान, जय किसान' और 'जय विज्ञान' का नारा देकर इस उपलब्धि को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया इसी के साथ ये दिन हम सबके लिये अपने मुल्क पर गौरव करने की एक और बड़ी ख़ुशी लेकर आया जिसने हमें तकनीकी रूप से और भी अधिक समृद्ध बना दिया जो हम सबके लिये तकनीकी संबल बनाकर उभरा और इस तरह हमने विश्व परिदृश्य पर सबके समक्ष अपनी उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का परिचय देकर खुद को दुनिया के ताकतवर देशों के समूह में शामिल कर लिया हालांकि भारत ने इस अभियान को  ‘मुस्कुराते बुद्ध’ नाम देकर उसी वक़्त समस्त विश्व के सामने ये स्पष्ट कर दिया कि उसका उद्देश्य जंग नहीं हैं और वो केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये ही परमाणु परीक्षण का उपयोग करेगा क्योंकि वो इसके जरिये उसका ‘नाभिकीय हथियार’ बनाने का कोई भी इरादा नहीं रखता है तब भी उस वक़्त भारत की परमाणु शक्ति का यह प्रदर्शन दुनिया को चौंकाने के लिये किसी चमत्कार से कम न था तब से ही प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त होने के उपलक्ष्य में आज के दिन को स्मरणीय बनाने के लिये ही ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ मनाया जाता है इसके अतिरिक्त यह भी उल्लेखनीय है कि घरेलू स्तर पर तैयार किये गये एयरक्राफ्ट 'हंस-३' ने भी आज ही के दिन परीक्षण के लिये उड़ान भरी थी साथ ही इसी दिन भारत ने ‘त्रिशूल मिसाइल’ का भी सफल परीक्षण किया था तो इस तरह यह दिवस हमें प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियों पर न सिर्फ गर्व करने का एक अवसर प्रदान करता हैं बल्कि हमें अपनी ताकत को और अधिक बढ़ाने के लिये भी प्रेरित करता हैं इसके अलावा अपनी कमज़ोरियों को जानने-समझने एवं अपने नूतन लक्ष्य निर्धारित करने के लिये भी इसे मनाया जाता है जिससे कि हम सब मिलकर अपने देश को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अव्वल स्थान पर विराजमान कर सकें क्योंकि यही वो हमारी कमजोर कड़ी हैं जिसकी वजह से अमूमन हमें दूसरों पर निर्भर करना पड़ता हैं जबकि हमारे यहाँ हर तरह की प्रतिभा उपलब्ध हैं लेकिन हम ही उनका सही तरह से उपयोग नहीं कर पाते जबकि यही लोग जब दूसरे देश में जाते हैं तो कीर्तिमान रचकर आते हैं जिससे साफ़ ज़ाहिर होता हैं कि हम हर तरह से काबिल हैं और हमारे पास हर तरह के ज्ञान से संपन्न विलक्षण बुद्धि के धनी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व हैं जिनके मन में भी अपने वतन को शीर्ष पर देखने की कामना हैं लेकिन सही अवसर और सुविधा न मिल पाने के कारण अक्सर वे अनदेखे रह जाते हैं जिसका फ़ायदा कोई और मुल्क उठा लेता अतः इस दिन के साथ ही सरकार को इसकी तरफ भी ध्यान देना होगा जिससे कि हम अपने इन वैज्ञानिक, शोधार्थी की सृजनात्मक क्षमता का हमारे लिये ही भरपूर लाभ ले सके ।

यूँ तो ‘भारत’ के परमाणु शक्ति संपन्न होने की दिशा में अपना पहला कदम उसी वक़्त बढ़ा दिया था जब उसने ‘होमी जहांगीर भाभा’ ने ‘इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ की नींव रखी लेकिन सही मायनों में इस दिशा में हमारे देश की सक्रियता १९६२ के ‘भारत-चीन युद्ध’ के बाद बढ़ी जब इस युद्ध के दौरान हमको अपने कई इलाके केवल तकनीकी अयोग्यता की वजह से ‘चीन’ के हाथों गंवाने पड़े थे जिसके बाद १९६४ में ‘चीन’ ने ‘परमाणु परीक्षण’ कर अपने आपको अधिक ताकतवर दिखाना शुरू कर दिया तो ज़ाहिर हैं कि अपने पड़ोसी की ये हरकतें भारत को चिंतित व विचलित कर देने वाली थीं वो भी तब जब वो दोस्त नहीं बल्कि दुश्मन के नाते ऐसा काम कर रहा था लिहाजा सरकार के निर्देश पर ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र’ ने ‘प्लूटोनियम’ व अन्य बम उपकरण विकसित करने की दिशा में सोचना शुरू किया । भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज किया करते हुये १९७२ में इसमें दक्षता हासिल कर ली तथा १९७४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री ‘इंदिरा गांधी’ ने इन परमाणु परीक्षण के अपनी स्वीकृति भी दे दी जिसका समापन १९९८ में सफल परिक्षण के साथ हुआ और हमने जो भी स्वपन देखा था उसे खुद के दम पर पूरा भी कर पाने में सफल हुये अतः इस दिन को केवल याद ही नहीं करना हैं बल्कि और आगे भी बढ़ने की जरुरत हैं ताकि हमने जो कुछ अभी अर्जित किया हैं केवल उसका दोहन या दिखावा ही न करते रहें बल्कि उसमें और अधिक बढ़ोतरी भी करें ताकि हमें किसी भी साधन या तकनीक के लिये कभी भी किसी के सामने हाथ न फ़ैलाना पड़े । भले ही ऐसा लगता हो कि ‘भारत’ ने परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनकर आज के दिन पूरी दुनिया के सामने अपने आपको सिद्ध कर दिया हो और अपना परचम लहरा दिया है लेकिन हम अब भी अनेक मामलों और क्षेत्रों में दूसरे देशों से कुछ कदम पीछे हैं । हमने धीरे-धीरे अपने दम पर ‘मिसाइल रक्षा’ कवच विकसित करने में भी सफ़लता हासिल कर ली हैं लेकिन अभी भी अमरीका, चीन जैसी व्यवस्था स्थापित करने के लिए इसे बहुत मेहनत करनी होगी साथ ही हमें विश्वशक्ति बनने के लिए दूसरों से सबकी तुलना में उच्च तकनीक से युक्त हथियार और यंत्र बनाने होंगे जो तभी संभव हैं जब हम सब एक साथ मिलकर इस दिशा में सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ आगे कदम बढ़ाये  तो इस तरह हम शीघ्र ही आत्मनिर्भर बन सकते हैं अतः अगर हम एक पूर्ण विकसित देश बनना चाहते हैं तो हमें अंदर और बाहर की सभी जगह की चुनौतियों से लड़ना होगा और हमारी यही कामयाबी स्वदेशी तकनीक के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की तरफ़ बढ़ते कदमों की गवाही देती है ।

जब १९४७ में हमने स्वतंत्रता प्राप्त की उस वक़्त तकनीकी और वैज्ञानिक रूप से इतने अधिक संपन्न नहीं थे जितने कि आज के समय में हैं... सभी तरह के योग्य उच्च शिक्षित और युवाओं के इस देश में हम चाहे तो कुछ भी हासिल कर सकते हैं... लेकिन तभी जब हम अपने आप से हटकर अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को याद कर सकें केवल सरकार से अपेक्षा करने के स्थान पर स्वयं ही जो कुछ कर सकते हैं जो भी योगदान दे सकते हैं उसका प्रयास करें न कि जो तकनीक हमारे हाथों में हैं उसमें खोकर अपना भविष्य और सुनहरा समय फ़िज़ूल ही गंवाते रहें तब जबकि सब कुछ इसी तकनीक से पाया भी जा सकता हैं... यदि हम सब सही मायनों में अपने देश को विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं तो केवल इस ख़्वाब को सोते-सोते देखना नहीं हैं बल्कि इसे पूरा करने का माद्दा भी तो दिखाना होगा जब सब कुछ हमारे पास हैं तो फिर उसी तकनीक से जिससे हम अपना टाइमपास करते उसी से अपने देश के लिये भी अकल्पनीय भविष्य गढ़ सकते हैं... तो इस तरह इस ‘राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी दिवस’ को मायने दे सकते हैं... सबको इस दिन की बधाई... जिसने हमारी तकनीकी शक्ति बढाई... :) :) :) !!!
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११ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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