शनिवार, 16 मई 2015

सुर-१३६ : "असफ़लता बन जाती ऐब... न रहता कोई हूनर शेष...!!!"

जीत
जाओ तो
अवगुण भी
गुण बन जाते हैं
...
हार
मिली तो
लोग आपको
पूछने भी नहीं आते हैं
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मित्रों...,

‘अहाना’ के यू.पी.एस.सी. मैन एग्जाम में चयनित न होने पर उसकी बड़ी बहन उसे सांत्वना देते हुये बोली, कोई बात नहीं तुमने तो पूरी कोशिश की थी इस बार भले ही न हो पाया अगली बार फिर कोशिश करना जरुर तुम्हारा सिलेक्शन हो जायेगा ।

एकदम जैसे ‘अहाना’ के भीतर कोई ज्वालामुखी फटा वो जोर से चिल्लाई... “आप तो नसीहत दो ही नहीं खुद तो कभी किसी कम्पटीशन एग्जाम में सेलेक्ट नहीं हुई बड़ी आई हमें उपदेश देने वाली हुंह...” और वो धडधडाती हुई कमरे से बाहर चली गयी ।

इधर पीछे रह गयी उसकी बड़ी बहन सोच रही थी कि---

क्या असफल व्यक्ति किसी को कोई सलाह नहीं दे सकता ?

क्या असफ़ल होने से भीतर के सारे के सारे हूनर ऐब बन जाते हैं ??

क्या ये इतना बड़ा दोष हैं कि उसके सामने उसके गुणों या अनुभवों को कोई मोल नहीं ??

यदि वो सफल हो जाती तो उसे सब सुनते उसे कुछ भी कहने का हक होता क्योंकि एक साधारण प्राइवेट जॉब में लगी हैं इसलिये अनगिनत किताबों को पढ़कर हासिल किया ज्ञान, अनेक परीक्षाओं में बैठने का अनुभव सब बेकार कोई भी उसके मर्म को बेधकर उसे एक नयी सोच अनोखा विचार देकर चला जाता जिसे वो किसी के साथ शेयर नहीं कर सकती क्योंकि वो तो असफल हैं... उसके लिखे हुए अमूल्य आलेखों को कोई पसंद नहीं करता क्योंकि अब तक वो किसी नामी गिरामी हस्ती द्वारा सराहे नहीं गये न ही कोई सम्मान हासिल हुआ । बिना ट्राफी जीते भले ही आपको कोई विशेष सबक मिल भी गया तो वो किसी काम का नहीं क्योंकि इंटरव्यू तो विजेता का छपेगा चर्चा तो उसी की होगी और जो कहीं लगातार ही हार मिली तो भूल जाओ कि कोई आपको सुनने भी तैयार होगा... यहाँ सिर्फ जीतने वाले की जय जयकार होती... वरना, आपने किसी की कमी बताने मुंह भी खोला या कोई मशवरा भी दिया तो तुरंत अगला कहेगा खुद पर ही क्यों न आजमा लिया... कोई क्यों नहीं सोचता कि लगातार पराजय प्राप्त किया और ‘लूज़र’ का ठप्पा लगा बंदा भी  एक अच्छा सलाहकार / मार्गदर्शक हो सकता हैं ।
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१६ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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