शनिवार, 9 मई 2015

सुर-१२९ : "माँ... सबको नहीं मिलता आसमां...!!!"

नहीं जानता
कोई उसकी पीड़ा
जिसने दिया
उसको गम उम्र भर का
सदा रहती उसकी गोद सूनी
उसकी फरियाद तो...
रब ने भी अब तक नहीं सुनी
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मित्रों...,

हर रोज शाम को पार्क में कॉलोनी के सारे बच्चे इकट्ठे हो जाते और खूब धमाल-मस्ती करते... कुछ झूले पर चढ़ जाते... तो कुछ फिसलपट्टी पर फिसलने लगते... कुछ दौड़-भाग शुरू कर देते... तो कुछ आपस में लड़ने-झगड़ने लगते और इस तरह दिन भर खामोश रहने वाला वो बगीचा शाम ढले इन दो पैर पर दौड़ने वाले पक्षियों की आवाज़ से गूंजने लगता और जब तक उनके माता-पिता उनको बुलाने नहीं आते वो इसी तरह माहौल को गुलज़ार रखते और लोग उन्हें देख-देखकर निहाल होते रहते... दूसरी तरफ़ पार्क के बाहर भी होते कुछ गरीब बच्चे जो उतने अधिकारपूर्वक उस जगह पर जा तो नहीं पाते लेकिन बाहर से ही खड़े-खड़े उनको ललचाई नजरों से देखते या कुछ वही आकर मूंगफली या पॉपकॉर्न या गोली-टॉफ़ी बेचते और कुछ जो बहुत छोटे थे अक्सर अपने झुंझलाते माँ-बाप की गलियां या मार खाकर रोते-बिसूरते रहते... वही दूर कहीं नजर आती धरती पर ऑंधी पड़ी कोई कुतिया जिसके आस-पास न जाने कितने पिल्ले मचलते रहते तो कहीं किसी गाय के थन पर मुंह मारता कोई बछड़ा दिखाई दे जाता... और इन अनगिनत वात्सल्यता से भरे नज़ारों को देखकर छत पर खड़ी सुमन की आँखें अनजाने ही नित नम हो जाती क्योंकि उसे लगता कि वो कितनी अभागी हैं कि भगवान ने दुनिया में हर किसी को जो मातृत्व सुख सहज ही झोली में दे दिया वो उसे लाखों मिन्नतें करने या करोड़ों नाम जप करने या न जाने कितने ही साधू-महात्माओं के सामने गिडगिडाने उनको मनचाहा दान देकर और हर एक देवता के सामने फरियाद कर, हर मंदिर-मस्जिद में सर झुकाकर और हर तरह के व्रत-उपवास पूजा जतन कर और बेहिसाब धन इलाज़ पर खर्च करने के बावज़ूद भी नहीं मिल सका आख़िर उससे गलती क्या हुई... उसका कुसूर क्या हैं... क्यों रब ने उसे ही इस ख़ुशी से मरहूम रखा... सोच-सोचकर दिमाग की नसें तडकने लगती, हिम्मत तक जवाब दे जाती लेकिन न तो कहीं से कोई जवाब मिलता न ही कोई उम्मीद की ही किरण नज़र आती वो हर तरह से खुद को बहलाती अपनी नौकरी, घर-बाहर हर जगह जाकर समय व्यतीत कर भी इस विचार की भूल-भुलैया से नहीं निकल पाती जो दिन-रात- हर पल उसे कचोटता रहता

धीरे-धीरे अब वो उम्र की जिस दहलीज़ पर आ खड़ी हुई थी वहां तो लगभग सारे ही रस्ते उसे बंद नज़र आ रहे थे क्योंकि डॉक्टर्स ने कमी उसमें ही बताई थी और जिसे दूर करना विज्ञान के लिये भी संभव नहीं था और कोई भी उसकी मदद करने तक तैयार नहीं था तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसे में वो क्या करें... किस तरह अपनी मन की मुराद पूरी कर सकती हैं जिसकी चाहत उसके पति ही नहीं, सास-ससुर की आँखों में भी झलकती हैं... ???         

‘सुमन’ अकेली ही नहीं न जाने कितनी औरतें हैं... जो ईश्वर के इस प्राकृतिक वरदान से वंचित हैं और जिसके आगे चिकित्सा भी विफ़ल तो फिर वे क्या करें... उनके लिये तो ‘मातृ दिवस’ उदासी का सबब बन जाता... और वे ‘सेरोगेट मदर’ जो दूसरों की ख़ाली गोद भर देती पर ख़ुद तन्हां ही रह जाती... पर, सबके साथ तो ऐसा नहीं होता कुछ तो ख़ुशी-ख़ुशी दूसरों को आगे बढ़कर माँ कहलाने की सौगात देती... तो इस ‘मातृ दिवस’ उनके बारे में न सिर्फ़ सोचा जाये बल्कि समाधान भी किया जाये जिनके लिये अब तक ये महज औपचारिकता हैं... बेरंग और निरर्थक हैं क्योंकि उन्हें पता ही नहीं कि वो किस तरह से इस सुख को महसूस कर सकती हैं क्योंकि गोद लेना भी तो अब इतना आसां नहीं रहा... तो फिर ऐसे में जबकि हमारे देश के हर एक हिस्से में ‘सेरोगेट मदर’ का विकल्प भी सबके द्वारा आसानी से स्वीकृत नहीं हैं क्या ये संभव हैं कि कोई और माँ आगे आये... किसी के अधूरे ख़्वाब को सच कर जाये... तब शायद, हर कोई मिलकर इस जश्न में शामिल हो पाये... तो चलो मिलकर उन माँ की गोद भरने का उपाय सुझाये... या फिर जो खुद उनके लिये कुछ कर पाने में सक्षम हो वहीँ सामने आये... जिससे सब माँ कहला पाये... :) :) :) !!!
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०९ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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