रविवार, 31 मई 2015

सुर-१५१ : "सोचने से नहीं... हौंसले से बनता कोई 'विजेता'...!!!"

ख्वाहिशें
तो कई होती
हर किसी की ही
पर, पूरी न होती सबकी
जिसने भी जान लिया
सपनों को सच करने का राज़
जिंदगी काम्याब होती बस... उसकी ॥
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मित्रों...,
रीनाबचपन से ही डॉक्टर बनाना चाहती थी तभी तो जब भी उससे कोई ये प्रशन पूछता कि बेटी, बड़ी होकर क्या बनोगी तो वो तपाक से बोलती, ‘डॉक्टर’... लेकिन हकीकत में बनकर रह गयी एक जेहनी मरीज... जिसे लगता कि यदि वो अपने ख़्वाब को पूरा नहीं कर पाई तो इसकी वजह वो नहीं बल्कि दुसरे लोग हैं जिन्होंने कभी तो उसे पढ़ने के लिये पर्याप्त अवसर न दिया और यदि अवसर दिया तो साधन न दिये और जब साधन थे तो तमन्ना ही न रही... मतलब कि उसमें कोई कमी नहीं थी पर, कोई न कोई उसकी राह में रोड़ा अटकाता रहा जिसके कारण वो अपनी मंजिल तक न पहुंच सकी... तभी अपनी हर असफ़लता के लिये वो किसी न किसी को दोषी बताती रहती जबकि असलियत ये थी कि उसके ही इरादों में मजबूती न थी इसलिये हर मुश्किल घड़ी में वो कमजोर पड़ जाती फिर ठीकरा दूसरे के सर पर फोड़ अपने आपको न सिर्फ तसल्ली दे लेती बल्कि मायूस भी होती कि इतनी बड़ी दुनिया में किसी ने भी उसकी काबिलियत को उभारने में उसकी सहायता नहीं की वरना वो तो आसमान ही छू लेती... उसने कभी भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उसे उसके माहौल के हिसाब से उतना समय एवं साधन मिले थे कि वो आसानी से न सही लेकिन थोड़ी-सी कोशिशों से अपनी हसरत को पूरा कर सकती थी लेकिन उसने ही उसे गंवा दिया क्योंकि कहीं न कहीं वो ही उतनी दृढ़ नहीं थी इसलिये उस सुनहरे अवसरों को वो न तो पहचान ही सकी, न ही उसकी कदर कर सकी... साथ ही साथ अपने आपको भी न जान सकी ऐसे में किसी और पर तोहमत लगाना उसे ज्यादा मुफ़ीद लगा ।
रीनाजैसे बहुत-से लोग होते जो बनना तो बहुत कुछ चाहते पर ये भूल जाते कि चाहने से ही कुछ हो जाना मुमकिन नहीं होता उसके लिये मेहनत स्वयं को करनी पडती किसी भी सफ़लऔर असफ़लव्यक्ति के बीच केवल यही अंतर होता जिसके कारण सब उस सीमा रेखा को पार कर उन शीर्षस्थ व्यक्तित्वों में अपना नाम दर्ज नहीं करा पाते... हम कहीं न कहीं कमजोर पड़ जाते जिसका फ़ायदा किसी और को मिले न मिले पर हम जरुर चूक जाते क्योंकि ऐसा कोई नहीं जिसके पास चलकर उसकी मंजिल खुद आये सबको उस तक अपने पैरों पर चलकर ही जाना पड़ता और मार्ग के अवरोधों को भी खुद ही हटाना पड़ता... जिसमें कभी मददगार मिल भी सकता हैं पर, ऐसा होगा ही ये जरूरी नहीं इसलिये न मिले तो भी रुकने की बजाय चलते ही रहना पड़ता बस, यही वजह होती कि जहाँ हम इंतजार में रुक जाते या फैसला ही नहीं कर पाते वहीँ दृढ़प्रतिज्ञत्वरित निर्णय लेकर आगे बढ़ जाते... इसलिये हकीकत यही हैं कि नामुमकिन नहीं कुछ भी बस, उसे पाने के लिये हौंसला चाहिये... जो सबके पास नहीं होता... इसलिये हर कोई विजेतानहीं होता... :) :) :) !!!
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३१ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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