गुरुवार, 28 मई 2015

सुर-१४८ : "गंगा दशहरा... दूर करें दस पापों का पहरा...!!!"


दूर करती
मनसा वाचा कर्मणा
हर पाप मानवों के
दर्शन मात्र से तर जाते
कलुष भी मिट जाते
सभी देवता और दानवों के
‘गंगा’ सिर्फ़ नदी नहीं
जन्मदात्री माँ... पावन देवी हैं
पूजा कर दीप जलाते
साथ-साथ सब आरती गाते
मिलकर ‘गंगा दशहरा’ मनाते
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मित्रों...,

भारतभूमि ही एकमात्र ऐसी पावन पवित्र स्थली हैं... जहाँ पर पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और नदी-सागर को भी हम पूज्य मानते हैं और उतनी ही श्रद्धाभक्ति से उसकी पूजा करते हैं तभी तो हम सारे विश्व में अलहदा नज़र आते हैं हमारी सभ्यता और संस्कृति जितनी प्राचीन हैं उतनी ही उसकी जड़े गहराई तक जमी हैं जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें समय-समय पर प्रकृति द्वारा देखने को मिल ही जाता हैं जब-जब भी कोई आपदा आई तो इन्हीं आस्थाओं ने हमारे अस्तित्व को मिटने से बचाया हैं अतः हम सब कुछ खत्म होने पर भी पुनः खड़े होने की काबिलियत रखते हैं ‘फिनिक्स’ की तरह हर बार अपनी ही राख से फिर जन्म ले लेते हैं... ये अमरता हमारे जींस, हमारे रक्त में किसी एक दिन की रस्म अदायगी से नहीं बल्कि सदियों से हमारे पूर्वजों की द्वारा की जा रही अनवरत तपस्या से आई हैं जिसने हम सबको भी इसके प्रति जागरूक बनाया और हमने भी अपनी गौरवशाली परम्पराओं की अटूट डोर को उतने ही विश्वास से थामे रखा हैं इसलिये तो आधुनिकता या किसी अन्य संस्कृति का अनुकरण करने के बावजूद भी किसी भी ऐसे पर्व पर हमारी वो पुरातन प्रथा उतने ही गर्व से सर उठाये खड़े नज़र आती हैं जिसके साथ हम भी नूतन ऊर्जा से भरकर आगे बढ़ जाते हैं और इस तरह ही तो हम अपने उस सभ्यता के दामन को पकड़े चलते रहते हैं

यदि ऐसा न होता तो आज ये भी लुप्त होने की कगार पर होती पर ऐसा नहीं हैं अब भी सब ऐसे ही किसी पुण्य दिवस पर हर्ष-उल्लास से भर जाते और एक साथ मिलकर न सिर्फ उसे मनाते बल्कि एक दुसरे को शुभकामनायें देकर उस ख़ुशी को दुगुना कर लेते... तो हम भी अपने मित्रों को इस पवित्र दिवस की हार्दिक शुभकामना देकर इसे सहस्त्र गुना कर लेते हैं... :) :) :) !!!          
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२८ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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